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नया धमाका

5/20/2011

दिग्विजय के 'ओसामाजी मारे गए' : दो गज जमीन भी नसीब नहीं हुई

पूरे विश्व को इस्लाम के झण्डे तले लाने का सपना देखने और दिखाने वाले ओसामा बिन लादेन को आखिरकार इस पूरी धरती पर 2 गज जमीन भी नसीब नहीं हुई। अमरीकी सैनिक उसके शव को पाकिस्तान से अपने साथ ले गए, उसका डीएनए टेस्ट करवाया ताकि स्पष्ट हो जाए कि यही ओसामा बिन लादेन है, उसके बाद उसके शव को अरब सागर में दफना दिया। डर था कि यदि उसके शव को कहीं भी विधिवत् दफनाया गया तो जिहादियों के लिए वह जगह प्रेरणा का केन्द्र बन सकती है। ओसामा बिन लादेन विश्व भर में फैले इस्लामी कट्टरवादियों के बीच कितनी पूछ रखता था, यह भारत के 'स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ  इंडिया' (सिमी) की पत्रिका में प्रकाशित एक कविता की इन पंक्तियों से स्पष्ट हो जाता है-
'मेरे अरब मुजाहिद न घबरा कर देंगे तुझपे जान फिदा
अमरीका उल्टा लटक जाए तुझे हमसे नहीं कर सकता जुदा
तू मुस्लिम है हम मुस्लिम हैं मजबूत हमारा है बंधन
इस्लाम का गाजी कुफ्र  शिकन, मेरा शेर ओसामा बिन लादेन।'
यही कारण है कि कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने में लगे उसके महासचिव और सोनिया के कथित प्रवक्ता दिग्विजय सिंह ने दु:खी होकर कहा- 'ओसामा जी के शव को उनकी विचारधारा के अनुसार सम्मानपूर्वक दफनाया जाना चाहिए था।' यहां तक एक मुम्बई हमले में मारे गए 9 आतंकवादियों को दिग्विजय सिंह आतंकवादी नहीं, '9 लोग' कह रहे थे और बता रहे थे कि 'उन 9 लोगों का भी हमने सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया।' यह है मुस्लिम वोट बैंक के लिए 'बौखलाई' कांग्रेस और उसके 'बौराए' महासचिव दिग्विजय सिंह का असली चेहरा, जो कभी 'हिन्दू आतंकवाद' की बात कहते हैं कभी बाबा रामदेव को लांछित करते हैं तो कभी मुम्बई हमले में हिन्दू संगठनों की भूमिका तलाशते हैं तो कभी बटला हाउस कांड को फर्जी बताते हैं, और जिहादी आतंकवाद के सबसे बड़े सरगना को सम्मानपूर्वक कहते हैं- 'ओसामा जी।'
ओसामा और अल कायदा सऊदी अरब के रियाद में 10 मार्च, 1957 को ओसमा बिन मुहम्मद बिन अवाद विन लादेन का जन्म हुआ था। सऊदी अरब में पढ़ाई के दौरान वह कट्टरवादी इस्लामी शिक्षकों व छात्रों के सम्पर्क में आया। कविता लिखने के शौकीन ओसामा ने कुरान और जिहाद की नए तरीके से व्याख्या की, जिसमें कट्टरवाद का प्रभाव था। वह शरीयत (इस्लामी कानून) के आधार पर चलने वाले मुस्लिम मुल्कों का ही भविष्य उज्ज्वल मानता था। अफगानिस्तान में कुछ समय के लिए मुल्ला उमर के नेतृत्व में स्थापित हुए तालिबान शासन को वह आदर्श बताता था। पूरे विश्व को 'दारुल इस्लाम' बनाने और शरीयत का कानून लागू करने के लिए वह आम नागरिकों, महिलाओं और बच्चों की हत्या का समर्थन करता था। दिसम्बर, 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया तब से पाकिस्तान आकर लादेन मुजाहिदीनों के साथ मिल गया। प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान और परोक्ष रूप से अमरीका का समर्थन पाए इन मुजाहिदीनों का लक्ष्य अफगानिस्तान से सोवियत संघ को वापस खदेडऩा था। अफगान युद्ध के दौरान ओसामा की मुलाकात मुजाहिदीनों के फिलीस्तीनी कट्टरवादी नेता अब्दुल्ला आजम से हुई, ओसामा ने उसे अपना सरपरस्त बनाया। 1984 में आजम और ओसामा ने मिलकर मकतब-अल-खिदमत नामक संगठन बनाया। यह संगठन अरब देशों से अफगान युद्ध के लिए हथियार और धन जुटाता था तथा मुजाहिदीनों की भर्ती करता था। शीत युद्ध के दौरान अमरीका की गुप्तचर संस्था सीआईए ने अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ  मुजाहिदीनों की हथियार और गोलाबारूद देकर मदद की, इस दौरान ओसामा बिन लादेन और मुल्ला उमर सीआईए के नजदीक आए। अफगानिस्तान में तालिबान का शासन स्थापित होने के बाद ओसामा बिन लादेन बहुत मजबूत हुआ, लेकिन इराक पर अमरीका के आक्रमण से वह उससे नाराज हो गया। उसने अफगानिस्तान के बर्बर तालिबानी राज के समर्थन से अल कायदा नामक खतरनाक संगठन बनाया, जिसमें विश्व भर के चुने हुए और सबसे खतरनाक आतंकवादियों की भर्ती की गई। 1992 में ओसामा के इशारे पर अल कायदा ने अदन (यमन) के एक होटल में पहला बम विस्फोट किया। 1993 में इस संगठन के एक आतंकवादी ने विस्फोट भरे एक ट्रक को न्यूयार्क के वल्र्ड ट्रेड सेंटर की जुड़वां बहुमंजिला इमारतों के बीच ले जाकर जोरदार टक्कर मारी ताकि दोनों भवन बुनियाद से ही गिर जाएं और हजारों लोग मरें। पर उस दिन ये भवन बच गए और केवल 6 लोग मरे।  इसके 8 साल बाद, 11 सितम्बर, 2001 को इन दोनों गगनचुम्बी इमारतों को अपहृत विमान टकराकर ध्वस्त करवा दिया, क्योंकि ये अमरीका की शक्ति और समृद्धि के प्रतीक थे। इस हमले में 3000 से अधिक लोग मारे गए। 1998 में तंजानिया और केन्या स्थित अमरीकी दूतावासों पर श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट कर 300 से अधिक निर्दोष लोगों को अल कायदा के आतंकवादियों ने मौत की नींद सुला दिया।                           (साभार पांचजन्य)

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