- मुलखराज विरमानी
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सरकार आंकड़ों में हेर-फेर करती ही है ताकि आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा न देना पड़े। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो का कहना है कि 1999 से 2005 के अंतराल में 1.5 लाख किसानों ने आत्महत्याएं कीं। सरकार मुआवजा न देने के सौ बहाने बनाती है। अगर जमीन बाप के नाम पर है और सारा काम बेटा करता है और भूखमरी के हालत में आत्महत्या कर लेता है तो सरकार उस किसान की आत्महत्या को गणना में नहीं लेती है क्योंकि खेती की भूमि उसके नाम न होके उसके बूढ़े बाप के नाम है। फिर सरकार कहती है कि इस हालत में किसान के बेटे ने कर्ज से उत्पन्न समस्याओं के कारण आत्महत्या नहीं की। परिवार का बड़ा लड़का बाप के बूढ़े होने के कारण खेती का काम तो संभाल लेता है परंतु उसको विचार यह कभी नहीं आ सकता कि बाप के होते हुए भूमि अपने नाम करवा ले। सरकार के मंत्री किसानों की आत्महत्या को रोक नहीं पाये और न ही उनके पास प्रबल इच्छा और समय है। परंतु यह समस्या हर साल बढ़ती ही जा रही है। किसान आत्महत्या न करें इसके लिए उनको आमदनी के साधन बढ़ाने होंगे। भारत इतना बड़ा देश है और साधन संपन्न होने के कारण किसानों को खुशहाल बनाना संभव है। परंतु कारगर नीतियां बनाने के लिए हमारे मंत्रियों को इस ओर ध्यान और समय देने की आवश्यकता है। नीतियां बदलने की इच्छा हुई तो किसानों को खेती के साथ-साथ आमदनी के दूसरे साधन जुटाने होंगे। कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत के किसानों को दूध की उत्पादन से बहुत अधिक आमदनी हो सकती है। इसके लिए हमारे उद्योगपतियों को डेरी फार्मिंग में अधिक रुचि लेनी चाहिए। वह किसानों से दूध अधिक-से-अधिक और अच्छे दामों में खरीदें। इस समय की स्थिति यह है कि कई छोटे देश भी दूध और दूध से बनी वस्तुओं का निर्यात कर अपने किसानों की खुशहाली बढ़ा रहे हैं। और फिर हमारे देश में तो देशी गाय का दूध तो अमृत तुल्य माना जाता है। हमें चाहिए कि दूध और दूध से बनी वस्तुओं का आयात करनेवाले देशों को ठीक-ठीक बताएं कि वास्तव में दूध तो देशी गाय का पौष्टिकता के साथ-साथ शरीर के किसी प्रकार के रोग को पास फटकने नहीं देता और बुध्दिवर्धक तथा सर्वांगीण विकास में भी मदद करता है। इस समय न्यूजीलैंड के दूध और उससे बनी वस्तुओं का निर्यात 86 खरब डॉलर का है। खेद है कि भारत में उल्टी गंगा बहती है। जिस देश में कभी दूध की नदियां बहती थीं और आज भी बह सकती हैं, अगर नीतियों में बदलाव किया जाए और मंत्रियाें को कहा जाए कि हम राजनीति न करके ऐसी नीतियां बनाएं जिससे किसानों को लाभ हो। आज की परिस्थिति में किसान को गरीबी से निकालने के लिए उद्योगपतियों को डेरी फार्मिंग के काम में जाना चाहिए। भारत सरकार को हमारे उद्योगपतियों की मीटिंग बुलानी चाहिए जिसमें उद्योगपतियों को ऐसा सुझाव दिया जाए कि वे डेरी फार्मिंग के धंधे में सक्रिय भाग लें ताकि किसान दूध को बेचकर अपनी आमदनी बढ़ाएं और उनको आत्महत्या का सहारा न लेना पड़े।
* लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
साभार प्रवक्ता डॉट कॉम http://www.pravakta.com/story/15063
किसानों की हालात दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। किसानों के सामने कितनी समस्याऐ है ? इसकी गिनती नहीं की जा सकती। किसान का संबंध जिस-जिस चीज के साथ आता है, चाहे वो बिजली हो, पानी हो, खाद हो, बीज हो या अन्य कुछ वह चीज उसके लिए समस्या बन जाती है। और जिस व्यक्ति के साथ उसका सम्बध आता है वह व्यक्ति भी उसके लिए समस्या बन जाता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर मण्डी समिति के चपरासी तक जिस किसी के साथ किसान का सम्बंध आता है वह उसके लिए समस्या बन जाता है। हर प्रदेष से एक ही वृत्त सुनाई देता है कि हर दिन कितने किसानों ने आत्महत्या कर ली है। कोई भी खुषी से आत्महत्या नहीं करता। जब देखता है कि खुद के परिवार की, पत्नी है, बच्चे है, इनको रोटी खिलाने के लिए पैसा अपने पास नहीं है, परिवार को जिंदा रखने का उपाय नहीं है तो विवष होकर किसान आत्महत्या करते है। हर प्रदेष में हर दिन किसानों की आत्महत्याऐं हो रही है, इतनी गिरावट किसानों की स्थिति में आ रही है। सरकार को इसके लिए प्रबंन्ध करने चाहिए।
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