कहा जाता है कि कामयाबी पाने के लिए ख्वाब देखना जरूरी है लेकिन वह ख्वाब नहीं जो सोते में देखा जाए बल्कि वह ख्वाब जिसे देखने के बाद फिर नींद न आए।
संयुक्त अरब अमीरात में बसे भारतीयों की आंखों ने शायद ऐसा ही ख्वाब देख रखा है, यही वजह है कि यहां तो बस उनकी ही जय है। पचास लाख की आबादी वाले इस देश में भारतीयों की तादाद 17 लाख का आंकड़ा पार कर गई है। यहां अब वो सिर्फ श्रमिक नहीं रहे, बल्कि सभी क्षेत्रों में अपनी धाक जमा ली है।
अपनी काबिलियत के बल पर आज की तारीख में वे संयुक्त अरब अमीरात की जरूरत बन चुके हैं। साथ ही एक मजबूत ताकत भी। उनकी ताकत की ताईद 'इंडिया सोशल एण्ड कल्चरल सेंटर' और 'इंडियन इस्लामिक सेंटर' जैसे संगठन भी करते हैं।
भारतीय राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल भी अबूधाबी में मंगलवार को 'इंडियन इस्लामिक सेंटर' के भवन का उद्घाटन करते हुए यह कहने से खुद को नहीं रोक सकीं कि 'यह केंद्र प्रवासी भारतीयों की ताकत का परिचायक है कि वे किस तरह अपनी मातृभूमि से जुड़े रहकर स्थानीय परिस्थितियों से बेहतर तरीके से तालमेल बिठाते हैं।' 'इंडिया सोशल एण्ड कल्चरल सेंटर' संयुक्त अरब अमीरात में प्रवासी भारतीयों का सबसे बड़ा संगठन है। इस संगठन के लिए खुद संयुक्त अरब अमीरात की तरफ से जमीन उपलब्ध कराई गई है। यह संगठन यहां भारत के अलग-अलग राज्यों और धर्मो के लोगों को साझा मंच उपलब्ध कराता है।
भारत के लोगों की इच्छा शक्ति का अगर एक और उदाहरण देखना हो तो 'अबूधाबी इंडियन स्कूल' से बेहतर कोई और कोई उदाहरण नहीं हो सकता। 35 साल पहले सिर्फ तीन शिक्षकों और 53 बच्चों के साथ शुरू हुआ यह स्कूल अब अबूधाबी का सबसे बड़ा स्कूल बन चुका है। इसमें पढ़ने वाले छात्रों की तादाद पांच हजार से ज्यादा हो चुकी है। यहां कक्षा 12 तक की पढ़ाई होती है। यह स्कूल सिर्फ और सिर्फ यहां बसे भारतीयों के बच्चों के लिए है और यह किसी प्रकार की कोई सरकारी सहायता नहीं लेता। यह स्कूल चलाने का मकसद भी सिर्फ यही है भारतीय बच्चे स्थानीय शिक्षा तो ग्रहण करें ही, साथ ही अपनी संस्कृति से भी जुड़े रहें। मंगलवार को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल यह स्कूल देखने गई।
उन्होंने यहां के बच्चों का सांस्कृतिक कार्यक्रम देखा, उन्हें संबोधित भी किया। संयुक्त अरब अमीरात में अब भारतीयों का यह अकेला स्कूल नहीं रहा। अब तक तमाम स्कूल भारतीयों द्वारा स्थापित किए जा चुके हैं। अकेले शारजाह में ही सात ऐसे स्कूल हैं जो भारतीयों द्वारा चलाए जा रहे हैं। यहां के नामी उद्योगपतियों में तो भारतीय शुमार हैं ही, जितने नामी डाक्टर, इंजीनियर और दूसरे प्रोफेशनल्स यहां हैं, उनमें भारतीय ही सबसे ज्यादा हैं।
संयुक्त अरब अमीरात में बसे भारतीयों की आंखों ने शायद ऐसा ही ख्वाब देख रखा है, यही वजह है कि यहां तो बस उनकी ही जय है। पचास लाख की आबादी वाले इस देश में भारतीयों की तादाद 17 लाख का आंकड़ा पार कर गई है। यहां अब वो सिर्फ श्रमिक नहीं रहे, बल्कि सभी क्षेत्रों में अपनी धाक जमा ली है।
अपनी काबिलियत के बल पर आज की तारीख में वे संयुक्त अरब अमीरात की जरूरत बन चुके हैं। साथ ही एक मजबूत ताकत भी। उनकी ताकत की ताईद 'इंडिया सोशल एण्ड कल्चरल सेंटर' और 'इंडियन इस्लामिक सेंटर' जैसे संगठन भी करते हैं।
भारतीय राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल भी अबूधाबी में मंगलवार को 'इंडियन इस्लामिक सेंटर' के भवन का उद्घाटन करते हुए यह कहने से खुद को नहीं रोक सकीं कि 'यह केंद्र प्रवासी भारतीयों की ताकत का परिचायक है कि वे किस तरह अपनी मातृभूमि से जुड़े रहकर स्थानीय परिस्थितियों से बेहतर तरीके से तालमेल बिठाते हैं।' 'इंडिया सोशल एण्ड कल्चरल सेंटर' संयुक्त अरब अमीरात में प्रवासी भारतीयों का सबसे बड़ा संगठन है। इस संगठन के लिए खुद संयुक्त अरब अमीरात की तरफ से जमीन उपलब्ध कराई गई है। यह संगठन यहां भारत के अलग-अलग राज्यों और धर्मो के लोगों को साझा मंच उपलब्ध कराता है।
भारत के लोगों की इच्छा शक्ति का अगर एक और उदाहरण देखना हो तो 'अबूधाबी इंडियन स्कूल' से बेहतर कोई और कोई उदाहरण नहीं हो सकता। 35 साल पहले सिर्फ तीन शिक्षकों और 53 बच्चों के साथ शुरू हुआ यह स्कूल अब अबूधाबी का सबसे बड़ा स्कूल बन चुका है। इसमें पढ़ने वाले छात्रों की तादाद पांच हजार से ज्यादा हो चुकी है। यहां कक्षा 12 तक की पढ़ाई होती है। यह स्कूल सिर्फ और सिर्फ यहां बसे भारतीयों के बच्चों के लिए है और यह किसी प्रकार की कोई सरकारी सहायता नहीं लेता। यह स्कूल चलाने का मकसद भी सिर्फ यही है भारतीय बच्चे स्थानीय शिक्षा तो ग्रहण करें ही, साथ ही अपनी संस्कृति से भी जुड़े रहें। मंगलवार को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल यह स्कूल देखने गई।
उन्होंने यहां के बच्चों का सांस्कृतिक कार्यक्रम देखा, उन्हें संबोधित भी किया। संयुक्त अरब अमीरात में अब भारतीयों का यह अकेला स्कूल नहीं रहा। अब तक तमाम स्कूल भारतीयों द्वारा स्थापित किए जा चुके हैं। अकेले शारजाह में ही सात ऐसे स्कूल हैं जो भारतीयों द्वारा चलाए जा रहे हैं। यहां के नामी उद्योगपतियों में तो भारतीय शुमार हैं ही, जितने नामी डाक्टर, इंजीनियर और दूसरे प्रोफेशनल्स यहां हैं, उनमें भारतीय ही सबसे ज्यादा हैं।
हिन्दुस्तानियों की धाक विश्व के प्रत्येक स्थान पर है
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