सम्राट चंद्रगुप्त एवं चाणक्य की वीरता एवं बुद्धिमता का लोहा सभी मानते है , चाणक्य की कुटनीति विश्व की सर्वश्रेष्ठ कुटनीति मानी जाती है , फिर भी एक बार उनसे गलती हो गई थी और जिसके फलस्वरूप उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था । दरअसल नन्द राज्य को जीतने के लिये उन लोगों ने सीधा पाटलीपुत्र पर ही हमला कर दिया था और इस कारण उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा और मारे - मारे जंगलों में भी भटकना पड़ा था ।
इसी प्रकार जब वो भूखे - प्यासे एक दिन जंगल में भटक रहे थे तो उन्हें एक झोपड़ी दिखी । झोपड़ी के पास पहुँच कर जब उन्होंने आवाज दी तो अंदर से एक वृद्धा निकली । वह अत्यंत ही गरीब थी परन्तु उसका हृदय अत्यंत विशाल एवं प्रेम से परिपूर्ण था ।
जब उस वृद्धा ने अपने द्वार पर दो - दो अतिथितियों को देखा , तो वह खुशी से जैसे पागल हो गई । उसे यह नहीं पता था कि उसकी कुटिया में सम्राट चंद्रगुप्त एवं उनके बुद्धिमान मंत्री चाणक्य आये है । वह वृद्धा उन्हें केवल अतिथि मान कर उनकी आवाभगत करने लगी । उन्हें बड़े सम्मान से टूटी खाट पर बिठाया और ठंडा पानी पिलाया ।
कुछ देर बाद वृद्धा ने देखा कि अतिथि तो वहीं पर बैठे है और कुछ परेशान से लग रहे है । तो उसने अपने अतिथियों से कहा - ' तुम लोग थके परेशान से लग रहे हो । यही बैठकर आराम करो , तब तक मैं कुछ खाना बनाती हूँ । '
शाम होने को थी । वृद्धा ने अपनी कुटिया के एक कोने में बने चूल्हे को जलाया और उस पर खिचड़ी बनाने को रख दी । थोड़ी ही देर बाद वृद्धा का लड़का खेत से लौटा और अपनी माँ से बोला - ' मुझे कुछ खाने को दो , बहुत जोर से भूख लगी है । ' खिचड़ी बनकर तैयार हो चुकी थी । वृद्धा ने अपने पुत्र के सामने खिचड़ी भरी थाली परोस दी । पुत्र बहुत भूखा था । उसने शीघ्रता पूर्वक अपना हाथ खिचड़ी में डाल दिया और जोर से चीख पड़ा । वृद्धा अपने पुत्र की चीख सुनकर घबराते हुये उसके पास पहुँची और पूछा - ' क्या हुआ , तुम चीखे क्यों थे ? ' , ' कुछ नहीं माँ , खिचड़ी बहुत गर्म थी । मेरा हाथ जल गया । ' लड़के ने उत्तर दिया । पुत्र की व्याकुलता की भर्त्सना करते हुए वृद्धा बोली - ' अरे अभागे ! क्या तू भी चंद्रगुप्त और चाणक्य जैसा ही बेवकूफ है । '
वृद्धा की जुबान पर अपना नाम सुनते ही चन्द्रगुप्त और चाणक्य के कान खड़े हो गये । उन्होंने वृद्धा से पूछा - ' अम्मा , चंद्रगुप्त एवं चाणक्य आखिर मूर्ख कैसे है , उन्होंने क्या मूर्खता की है ? और फिर आपने अपने पुत्र को उनका उद्दाहरण क्यों दिया ? '
वृद्धा हास्यपूर्ण मुद्रा में बोली - ' देखों बेटा , राजा चंद्रगुप्त और चाणक्य ने गलती की थी , तभी तो मैं उनका उदाहरण अपने पुत्र को दे रही थी । चंद्रगुप्त एक शक्तिशाली राजा है और चाणक्य उनका बुद्धिमान मंत्री है । वो लोग नन्द वंश का नाश करना चाहते थे पर उनमें इतनी भी बुद्धि नहीं थी कि पहले आसपास के छोटे - मोटे राजाओं को जीतते , तब राजधानी पर आक्रमण करते । इससे जीते हुये राजाओं का भी उन्हें सहयोग प्राप्त हो जाता । परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया । उन मूर्खो ने सीधे ही बीच में जाकर राजधानी पाटलीपुत्र पर चढ़ाई कर दी और किसी की सहायता न मिलने के कारण वो हार गये ।
ठीक इसी प्रकार मेरे पुत्र ने भी आचरण किया । उसने भी गर्म खिचड़ी में ही सीधे हाथ डाल दिया । उसे चाहिये था कि पहले आस पास यानि की थाली के किनारों की खिचड़ी लेकर ठंडा करता और फिर उसे खाता । '
वृद्धा की बात सुनकर चंद्रगुप्त और चाणक्य की आखें खुल गई । उन्होंने उसकी बात को सीख मानकर और अपनी बुद्धि का उपयोग करके , अंत में नन्द पर विजय प्राप्त कर नन्दवंश का नाश कर दिया ।
राष्ट्र सेवा के संकल्पी मित्रों यदि हमें सच में माँ भारती और इसकी संस्कृति की रक्षा करनी है , तो वेकिटन या अरबपंथीयों पर विजय करने से पूर्व हमें अपने देश के छद्म सेक्यूलर दरिंदों पर विजय प्राप्त करनी होगी । हमें असली खतरा इन्ही गद्दारों से है , यदि ये गद्दार न होते तो भारत कदापि बाहर से आई कुछ मुठ्ठीभर साम्राज्यवादी साम्प्रदायिक ताकतों का गुलाम न बना होता ।
वन्दे मातरम्
जय जय माँ भारती ।
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