अहिंसा के सबसे बड़े प्रवर्तक महात्मा गांधी ने कश्मीर में सेना भेजने के फैसले की हिमायत की थी और स्पष्ट तौर पर कहा था कि भारतीय सेना हमले के इरादे से कश्मीर नहीं गई, बल्कि शेख अब्दुल्ला और कश्मीर के महाराजा की अपील पर वहां पहुंची।
अपने निधन से कुछ दिन पूर्व 20 जनवरी, 1948 को एक प्रार्थना सभा में दिए और प्रार्थना प्रवचन में प्रकाशित भाषण में बापू ने कहा कि मुझे कश्मीर फ्रीड़ा लीग के अध्यक्ष का लाहौर से एक तार मिला है, जिसमें उन्होंने कश्मीर में भारतीय सेना के प्रवेश को हमले के रूप में पेश किया और सेना की वापसी की मांग की है।
उन्होंने कहा कि इस तार ने मुझे विचलित किया है। अगर कश्मीर का कोई समाधान नहीं निकलता तो स्थिति को क्या ऐसे ही छोड़ दिया जाए और मुसलमान, हिन्दू तथा सिख एक-दूसरे के दुश्मन बने रहें।
महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि हमारी सरकार का कश्मीर में सेना को भेजना किसी तरह का हमला था। सशस्त्र बलों को कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला और महाराजा की अपील पर भेजा गया था।
उन्होंने दलील दी थी कि यह सही है कि कश्मीर उसी के साथ होना चाहिए जिसका यह है। इस स्थिति में जो लोग भी बाहर से आए हैं चाहे वह अफरीदी हो या कोई अन्य, उन्हें कश्मीर से निकल जाना चाहिए। मैं पुंछ में लोगों के विद्रोह के खिलाफ नहीं हूं लेकिन मैं विद्रोह के जरिए पूरे कश्मीर पर कब्जा करने का विरोध करता हूं।
उन्होंने कहा था कि मैं यह तब समझ सकता हूं जब बाहर से आए सभी लोग कश्मीर से चले जाएं और कहीं से कोई बाहरी हस्तक्षेप या मदद या शिकायत नहीं हो। लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आता कि बाहर से आए लोग कश्मीर में मौजूद हों और अन्य लोगों को बाहर जाने को कहें। कश्मीर किससे जुड़ा हुआ है, अभी मैं यह कह सकता हूं कि यह महाराजा का है क्योंकि महाराजा अभी भी हैं।
बापू ने कहा था कि सरकार की नजर में महाराज अभी भी वैध शासक है। और अगर महाराज दुष्ट शासक है तो मेरी नजर में उन्हें हटाना सरकार का काम है। लेकिन अभी तक ऐसी स्थिति नहीं आई है। कश्मीर के मुसलमान भी इस विषय पर अपना मत रखेंगे तो किसी को कोई शिकायत नहीं होगी।
गांधी जी के मुताबिक इस विषय पर उनका रूख स्पष्ट है और वह मुसलमानों के दुश्मन नहीं हो सकते।
अपने निधन से कुछ दिन पूर्व 20 जनवरी, 1948 को एक प्रार्थना सभा में दिए और प्रार्थना प्रवचन में प्रकाशित भाषण में बापू ने कहा कि मुझे कश्मीर फ्रीड़ा लीग के अध्यक्ष का लाहौर से एक तार मिला है, जिसमें उन्होंने कश्मीर में भारतीय सेना के प्रवेश को हमले के रूप में पेश किया और सेना की वापसी की मांग की है।
उन्होंने कहा कि इस तार ने मुझे विचलित किया है। अगर कश्मीर का कोई समाधान नहीं निकलता तो स्थिति को क्या ऐसे ही छोड़ दिया जाए और मुसलमान, हिन्दू तथा सिख एक-दूसरे के दुश्मन बने रहें।
महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि हमारी सरकार का कश्मीर में सेना को भेजना किसी तरह का हमला था। सशस्त्र बलों को कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला और महाराजा की अपील पर भेजा गया था।
उन्होंने दलील दी थी कि यह सही है कि कश्मीर उसी के साथ होना चाहिए जिसका यह है। इस स्थिति में जो लोग भी बाहर से आए हैं चाहे वह अफरीदी हो या कोई अन्य, उन्हें कश्मीर से निकल जाना चाहिए। मैं पुंछ में लोगों के विद्रोह के खिलाफ नहीं हूं लेकिन मैं विद्रोह के जरिए पूरे कश्मीर पर कब्जा करने का विरोध करता हूं।
उन्होंने कहा था कि मैं यह तब समझ सकता हूं जब बाहर से आए सभी लोग कश्मीर से चले जाएं और कहीं से कोई बाहरी हस्तक्षेप या मदद या शिकायत नहीं हो। लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आता कि बाहर से आए लोग कश्मीर में मौजूद हों और अन्य लोगों को बाहर जाने को कहें। कश्मीर किससे जुड़ा हुआ है, अभी मैं यह कह सकता हूं कि यह महाराजा का है क्योंकि महाराजा अभी भी हैं।
बापू ने कहा था कि सरकार की नजर में महाराज अभी भी वैध शासक है। और अगर महाराज दुष्ट शासक है तो मेरी नजर में उन्हें हटाना सरकार का काम है। लेकिन अभी तक ऐसी स्थिति नहीं आई है। कश्मीर के मुसलमान भी इस विषय पर अपना मत रखेंगे तो किसी को कोई शिकायत नहीं होगी।
गांधी जी के मुताबिक इस विषय पर उनका रूख स्पष्ट है और वह मुसलमानों के दुश्मन नहीं हो सकते।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके सुझाव, राय और मार्गदर्शन टिप्पणी के रूप में देवें