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नया धमाका

12/01/2010

रामलला विराजमान ने सुप्रीम कोर्ट से मांगा ''न्याय''

जन्मभूमि के बंटवारे के आदेश के खिलाफ भगवान श्रीराम विराजमान सुप्रीमकोर्ट पहुंच गए हैं। भगवान की ओर से सुप्रीमकोर्ट में दायर अपील में जन्मभूमि की जमीन का तीन हिस्सों में बंटवारा करने के हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करने की मांग की गयी है। अपील में कहा गया है कि ईश्वर का बंटवारा नहीं हो सकता। मालूम हो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन न्यायाधीशों की लखनऊ पीठ ने 30 सितंबर को दो-एक के बहुमत से फैसला सुनाते हुए जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इसमें एक हिस्सा भगवान राम विराजमान को मिला था। दूसरा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को दिए जाने का निर्देश था।

हाईकोर्ट के इस फैसले को मुस्लिम समुदाय पहले ही सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दे चुका है। अब रामलला की ओर से भी उनके निकट मित्र ने अपील दाखिल कर दी है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करने की समय अवधि आज समाप्त हो गयी। भगवान राम की ओर से सोमवार 29 नवंबर को ही अपील दाखिल कर दी गयी थी। दाखिल अपील में कहा गया है कि जब हाईकोर्ट ने यह मान लिया कि मुसलमानों का जमीन पर दावा नहीं बनता और इस बात के साफ साक्ष्य हैं कि पहले वहां उत्तर भारत की नगर प्रकृति का मंदिर था तो फिर जमीन के बंटवारे का आदेश देना ठीक नहीं है। जब एएसआई की खुदाई में साबित हो गया कि वहां पहले मंदिर था तो हाईकोर्ट को सुप्रीमकोर्ट के इस्माइल फारुखी केस के मुताबिक फैसला करना चाहिए था।
अपील में कहा गया है कि जब एक बार जमीन को राम जन्मभूमि घोषित कर दिया गया है तो फिर उसे अंदर का हिस्सा बाहर का हिस्सा या केंद्रीय गुंबद आदि में बांटना असंगत है। यह भी कहा गया है कि न्यायामूर्ति एसयू खान के फैसले में यह कहना गलत है कि समयसीमा (लिमिटेशन) के मामले में भगवान हमेशा नाबालिग नहीं माने जा सकते। जब वक्फ बोर्ड व अन्य लोग जमीन पर मालिकाना हक साबित करने में नाकाम रहे हैं तो फिर सिर्फ कब्जे के आधार पर उनका मालिकाना हक नहीं बनता। हाईकोर्ट का यह मानना भी गलत है कि कोई भी पक्षकार अपना मालिकाना हक नहीं साबित कर पाया क्योंकि फैसले में माना गया है कि ना जाने कितने समय से इस जगह को राम जन्म स्थान माना जा रहा है। कहा गया है कि वक्फ बोर्ड ने जमीन पर कभी मालिकाना हक का दावा नहीं किया उसने तो सिर्फ जमीन को सार्वजनिक मस्जिद घोषित करने की प्रार्थना की थी।
विवादित स्थल के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार अर्जी लखनऊ : अयोध्या के विवादित स्थल के मालिकाना हक के मामले में विशेष पूर्णपीठ के फैसले के खिलाफ मोहम्मद इसमाइल फारुकी ने एक और पुनर्विचार अर्जी प्रस्तुत की है। अर्जी हाईकोर्ट लखनऊ पीठ में बनाए गए रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद अनुभाग में दायर की गई है। पहले भी दो पुनर्विचार अर्जियां मो. इसमाइल ने दायर कर रखी हैं। गत 30 सितंबर को अयोध्या मामले का फैसला सुनाया गया था। डॉ. इसमाइल ने गत दो दिन पूर्व दो पुनर्विचार अर्जियां प्रस्तुत कर कहा था कि पहला दावा 1950 में दायर किया गया था। उस समय मामले का कारण उत्पन्न नहीं था। दूसरा दावा निर्मोही अखाड़ा ने दायर किया जिनको दावा दायर करने का अधिकार नहीं था।

1 टिप्पणी:

  1. अयोध्या नगरी का कण-कण भगवान श्रीराम का है तो फिर वहां मंदिर भी रीराम का ही बने ऐसी आकांक्षा कोटि-कोटि हिन्दुओं की है। लेकिन राम के देश में राम की कोर्ट में न्याय मांगने जाये यह समझ से परे है!

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