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नया धमाका

10/29/2011

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

अमेरिका के मित्र देश मिश्र के बाद अगला कौन? पाकिस्तान, भारत या चीन? इस पर विचार विमर्श शुरू हो गया है। जो कुछ मिश्र में हुआ, वैसी स्थिति पाकिस्तान में है। लेकिन डर भारत और चीन को भी है। चीन ने तो मिश्र की खबरों को नागरिकों तक पहुंचने पर पाबंदी लगा दी है। जो कुछ मिश्र में हुआ उसकी सूचना भारत और पाकिस्तान में पहुंच रही है। पर चीन में पाबंदी है। एक गहन चर्चा है कि जो कुछ मिश्र में हो रहा है, उसका फोटोस्टेट कुछ समय बाद पाकिस्तान में नजर आएगा। गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी तो भारत में भी है, लेकिन हालत उतने बदतर नहीं, जितने पाकिस्तान के है।


इसलिए पहले टयूनिशिया और उसके बाद मिश्र और अब शायद अगला पाकिस्तान। खुद यह आशंका अब रेडक्रास ने जता दी है। पिछले साठ सालों से फौजियों के बूटों तले रौंदे जाने वाले पाकिस्तानियों में भी अब मिश्र की आग धीरे-धीरे पहुंचने लगी है। धार्मिक कट्टरपन के मुखौटे ने अभी तक लोगों को समस्याओं को लेकर होने वाले विरोध से रोका है। लेकिन शायद अब स्थिति बदले।

हुस्नी मुबारक के तीस साल का शासन का अंत नजर आ रहा है। लोगों ने महंगाई और बेरोजगारी पर सरकार को घेर लिया। वे लोकतंत्र चाहते है। सेना भी अब विरोधियों के साथ हो गई है। वे अपनी जनता के साथ है। उनपर गोली चलाने से इंकार कर रही है। लेकिन जो हाल मिश्र में है वही हाल आज पाकिस्तान में है। लोकतंत्र पिछले साठ सालों से पाकिस्तान में नहीं है। जो लोकतंत्र सामने आया, वो मुखौटा है। वो भी फौज से डरती है। दूसरी तरफ महंगाई और बेरोजगारी ने गरीबों की हालत खराब कर दी है। लोगों को खाने के लिए रोटी नहीं है। महंगाई की दर बीस प्रतिशत है तो बेरोजगारी की दर 14 प्रतिशत है। पाकिस्तान इसलिए बचा रहा है कि फौज ने जेहादियों का एक ग्रुप सामने ला रखा है। ये जेहादी लोगों को भूख और बेरोजगारी जैसे मसलों से दूर रखे हुए है। वे धार्मिक कट्टरपन के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहे है। लेकिन अब इन जेहादियों से भी लोग परेशान है। क्योंकि ये जेहादी आम लोगों को भी मारने लगे है। दूसरी तरफ जिस  सेना ने इन जेहादियों की कभी मदद दी, उसी सेना पर भी ये जेहादी हमला कर रहे है। इसलिए आने वाले दिनों में आम लोगों की बगावत पाकिस्तान सरकार को भी देखने को मिलेगी।

पिछले साल पाकिस्तान में भयानक सैलाब आया। इसमें दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए। लाखों लोग बेघर हो गए। विदेशों से जो सहायता मिलनी थी वो नहीं मिली। चाहिए था 13 अरब डालर की सहायता राशि, मिली सिर्फ 2 अरब डालर की सहायता राशि। सिंध में हालत खराब है। अभी भी बाढ़ पीड़ितों को घर नहीं मिला है। वे कैंपों में रहने के योग्य है। इन इलाकों में कभी भी रिवोल्ट हो सकता है। पाकिस्तान में चरमपंथ के बढ़ते प्रभाव से लोग परेशान है। चरमपंथ ने उनकी बेरोजगारी, गरीबी और भूखमरी दूर नहीं की। सिर्फ बंदूक पकड़ा दिए। इससे मासूमों की जान गई है। फौज अमीर हो गई, दुबई में उनके मकान है, लंदन में उनके मकान है। जो नेता चुनकर आए वे महाभ्रष्ट निकले। आखिर पाकिस्तानी जनता जाए तो कहां जाए।

मिश्र ने उन्हें एक नया रास्ता दिखाया है। मिश्र के लोग इस्लामी जेहाद की जगह गरीबी और भूखमरी के खिलाफ विद्रोह कर दिया है। यह विद्रोह ईरान के विद्रोह और अफगानिस्तान के तालिबानी विद्रोह से अलग है। टयूनिसिया में भी जो विद्रोह था वो जेहादी विद्रोह से अलग था। वहां भी बेरोजगारी, भूख ने लोगों को सड़कों पर ला दिया। पाकिस्तानियों को पिछले साठ सालों में बंदूकें मिली, तालिबान मिला, मौत मिली। लेकिन भूख दूर नहीं हुई। सरकारें गरीब होती गई, नेता और सेना अमीर होते गए। आज पाकिस्तान दिवालिया होने के कागार है। विदेशी मदद अब कम मिल रही है। लोग मदद को आगे नहीं आ रहे है। देश का रक्षा बजट बढ़ रहा है। छ अरब डालर का रक्षा बजट है जो पाकिस्तान की पूरी बजट का साठ प्रतिशत है। इसमें कटौती की मांग विदेशी मददगार कर रहे है। अगर विदेशी मदद नहीं मिली तो आने वाले दिनों में नोट छापने पड़ेंगे। इससे महंगाई और बढ़ जाएगी। यह मुल्क प्रति सेकेंड साठ हजार रुपये का कर्ज ले रहा है।

हालांकि हालात तो अच्छे भारत में भी नहीं है। मनमोहन सिंह के आर्थिक उदारीकरण ने गरीबों की कमर तोड़ दी है। लेकिन यहां के हालत उतने खराब नहीं है। महंगाई और बेरोजागरी से लोग बेहाल तो है, लेकिन पाकिस्तान की तरह नहीं है। खाद्य महंगाई दर ही अभी सिर्फ 15 प्रतिशत से उपर पहुंची है। सामान्य महंगाई दर दस प्रतिशत से नीचे है। लोगों को रोजगार मिले या न मिले, अखबारों में रोजगार के अवसर रोज पैदा हो रहे है। बाकी भ्रष्टाचार को लेकर तो सारों को पता ही है। हालात मिश्र से भी ज्यादा खराब है। आम आदमी को दो टाइम खाने के लिए नहीं है। लेकिन 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये कुछ लोग ही खा गए। फिर यहां पर लोकतंत्र है। जनता अपना फैसला बदल सकती है। महंगाई के जिम्मेदार लोगों को बदल सकती है। लोकतंत्र की यही शक्ति लोगों को उन्मादी विद्रोह से रोकती है।

पर शासन को मिश्र के विद्रोह से सबक लेना चाहिए। देश के नेताओं, अधिकारियों को तुरंत जनता के हितों में कदम उठाना चाहिए। महंगाई और बेरोजगारी के कारण अगर भूखमरी बढ़ी तो आने वाले दिनों में भारत में भी वही होगा जो मिश्र और टयूनिसिया में हुआ। हां यहां भी हर धर्म के अंदर कुछ जेहादी हो गए है, जो लोगों को मुख्य समस्या भूख, महंगाई और बेरोजगारी से दूर करते है। कोई मौलाना मदनी की शरण में जाता है तो कोई तिरंगा को लेकर उड़ता है। कुल मिलाकर लोगों की भूख की चिंता नेताओं को नहीं, राजनीतिक दलों को नहीं।सिर्फ अपनी राजनीति और कुर्सी की चिंता है। तो फिर यह भी स्थिति आएगी कि सिंहासन खाली करो, जनता आती है। हालात कुछ चीन के भी अच्छे नहीं है। महंगाई ने वहां भी लोगों के हालत खराब कर रखी है। लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं है। लोग कम्युनिस्ट शासन से परेशान हो बौद्व धर्म की तरफ खूब मुखातिब हो रहे है। कभी भी विद्रोह की ज्वाला भड़क सकती है। यही तो कारण है कि मिश्र के विद्रोह के बाद सारे सूचना के तंत्र चीन में बंद है। क्योंकि इससे मिश्र की ज्वाला बीजिंग तक पहुंच सकती है। यह तो दुनिया के हुक्मरानों को चेतावनी है। अभी भी सम्हलने का मौका है।

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