पृष्ठ

नया धमाका

11/29/2011

हाट नहीं अब वालमार्ट....!

मल्टी ब्रांड खुदरा निवेश में 51 फीसदी और एकल ब्रांड में 100 फीसदी प्रत्यक्ष की अनुमति देकर अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी सरकार की नीति और नीयत का देशवासियों के सामने खुलासा कर दिया है कि वो किस हद तक विदेशी ताकतों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के समक्ष नतमस्तक है.


खुदरा बाजार में एफडीआई के अध्ययन के लिए बनी दो स्थायी संसदीय समितियों ने एफडीआई विरोध में विचार व्यक्त किये थे, लेकिन सब सुझावों ओर विरोधों को दरकिनार रखकर सरकार ने अमेरिका की चमचागिरी और बहुराष्ट्रीय कंपनियोंं की स्वामीभक्ति की अनूठी मिसाल पेश करने में कोई कोताई नहीं बरती.
खुदरा बाजार में एफडीआई की मंजूदी देकर सरकार ने छोटे-मझोले व्यापारियों, किसानों, दुकानदारों, फेरीवालों और खुदरा व्यापार से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े और रोजी-रोटी कमाने वाले करोड़ों लोगों के पेट पर सीधे लात मारने का घिनौना काम किया है. गौरतलब है कि देश का रिटेल सेक्टर 23,562 करोड़ रूपये का है. इसमें 90 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी छोटे दुकानदारों की है.
देश में वर्तमान में थोक व्यापार में 100 फीसदी एफडीआई की इजाजत है वहीं सिंगल ब्रांड रिटेलिंग में 51 फीसदी एफडीआई की अनुमति मिली हुई है इसे यूपीए सरकार ने बढ़ाकर 100 फीसदी कर दिया है. फिलहाल मल्टी ब्रांड रिटेलिंग में एफडीआई की इजाजत नहीं है, प्रस्तावित बिल में मल्टी ब्रांड रिटेलिंग को 51 फीसदी की इजाजत का प्रावधान किया गया है, जिस पर सारा हंगामा और बहस हो रही है.
भारतीय बाजारों में दिख रहे भारी मुनाफे को कमाने के लिए विदेशी कंपनियां किस कदर बेचैन है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खुदरा बाजार में वि’व की बड़ी कंपनी वालमार्ट ने मल्टी ब्रांड रिटेल क्षेत्र में एफडीआई का मार्ग प्रशस्त करने के लिए अमेरिकी रिटेल चेन वाल मार्ट द्वारा भारतीय मसलों की लॉबिंग पर लगभग 70 करोड़ रूपए खर्च किए हैं. सरकार ने खुदरा बाजार में एफडीआई को मंजूदी दे दी है आने वाले दिनों में वालमार्ट, टेस्को, केयर फोर, मेट्रो एजी और शक्चार्ज अंतर्नेमेंस जैसी तमाम बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में अपने मेगा स्टोर खोल सकेंगी.
एनएसएसओं के ताजा सर्वेक्षण के अनुसार खुदरा व्यापार में कुल श्रमशक्ति के आठ फीसदी अर्थात 3.31 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इसका अर्थ यह हुआ कि यदि एक व्यक्ति के परिवार में औसतन पांच सदस्य मानें तो कोई सोलह करोड़ से अधिक लोगों की रोजी-रोटी खुदरा व्यापार पर टिकी हुई है. देश में लगभग 1.25 करोड़ से अधिक खुदरा कारोबार करने वाली दुकानें हें और इसमें सिर्फ चार फीसदी दुकानें ऐसी हैं जो पांच सौ वर्ग मीटर से ज्यादा बड़ी हैं. इसके विपरित अमेरिका में सिर्फ नौ लाख खुदरा दुकानें हैं जो भारत की तुलना में तेरह गुना बड़े खुदरा बाजार की जरूरतों को पूरी करती हैं.
खुदरा दुकानों की उपलब्धता के मामले में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है. एसी नेल्सन और केएसए टैक्नोपैक के अनुसार भारत में प्रति एक हजार व्यक्तियों पर ग्यारह खुदरा दुकानें हें. इससे स्पष्ट है कि भारत में खुदरा व्यापार सिर्फ एक आर्थिक गतिविधि या कारोबार भर नहीं है बल्कि यह करोड़ों लोगों को लिए जीवन-मरण का प्रश्न है. 1997 में थोक व्यापार (कैश ऐंड कैरी) में 100 फीसदी और 2006 में एकल ब्रांड खुदरा व्यापार में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति पहले ही दी जा चुकी है.
खुद सरकारी आंकड़ों के मुताबिक थोक व्यापार में अब तक लगभग 777.9 करोड़ रूपए और एकल ब्रांड खुदरा व्यापार में 900 करोड़ रूपए का एफडीआई आ चुका है जो कि सरकार के अनुमान से बेहद कम है. फिर रिटेल क्षेत्र कृषि के बाद अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र है. जीडीपी में भले ही खुदरा व्यापार का योगदान लगभग आठ फीसदी के आसपास है लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि इसमें कृषि क्षेत्र के बाद सबसे अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है.
रिटेल में एफडीआई समर्थक आपूर्ति श्रृंखला से जिन बिचैलियों को हटाने की बात कर रहे हैं वे कोट-पैंट-टाई पहनने वाले नहीं हैं. भारत में बिचैलिए बैलगाड़ी-ट्रैक्टर-टेम्पू चलाने वाले, ट्रांसपोर्टर, एजेंट और छोटे कारोबारी हैं. दूसरी ओर वैश्विक दिग्गज कंपनियों के लिए ब्रांड एंबेसडर बिचैलियों का काम करते हैं जो कंपनियों से करोड़ों रूपए लेते हैं. इसके अलावा बिजली खपत, गोदाम और ट्रांसपोर्टर के उनके खर्चे भी बहुत ज्यादा होते हैं.
हमारे बिचैलिए न केवल अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हैं बल्कि देश के सामाजिक ढांचे को भी ठीक रखने में सहायता करते हैं. देखा जाए तो भारत में मंहगाई बेलगाम बनी है जब से बड़े कारोबारी घरानों का खुदरा कारोबार में प्रवेश (2005 से) हुआ है. इन कंपनियों के पास बड़े-बड़े गोदाम होते हैं जिनमें बड़े पैमाने पर जमाखोरी की जाती है इसीलिए मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली 42 सदस्यीय संसदीय समिति ने स्पष्ट कहा था कि खुदरा बाजार में संगठित वर्ग और विदेशी कंपनियों के निवेश की अनुमति से छोटे स्तर के व्यवसायी बुरी तरह प्रभावित होंगे और उनके लिए बाजार में अपना अस्तित्व कायम रख पाना कठिन होगा.
संसदीय समिति ने यह भी सुझाव दिया कि सरकार एक राष्ट्रीय खुदरा माल नियामक कानून लाए जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा के मार्ग विधिवत रूप से खुले रहें और कोई भी कंपनी बाजार पर अपना एकाधिकार जमा कर मनमानी न कर सके. बिक्री की एकाधिकारी प्रवृत्तियों से उत्पादकों की आय घटती है क्योंकि उन्हें अपना उत्पाद बेचने के लिए सीमित विकल्प रहते हैं. 1997 से 2002 के बीच कॉफ़ी बीन की फुटकर कीमतें 27 फीसदी घटी जबकि किसानों को चुकाई जाने वाली कीमतें 80 फीसदी तक गिर गईं. दुनिया में 50 करोड़ कॉफ़ी उपभोक्ता हैं लेकिन कॉफ़ी के व्यापार का 45 फीसदी चार बड़ी एग्रीबिजनेस कंपनियों के हाथ में है.
वाणिज्य मंत्रालय के स्थायी समिति की रिपोर्ट मंे एफडीआई के विरोध में कड़ी टिप्पणी की गई है. इस समिति ने विस्तृत अध्ययन के बाद कहा है कि बहुराष्ट्रीय और घरेलु कंपनियां सिंगल ब्रांड रिटेल में एफडीआई के नियमों का सही तरीके से पालन नहीं कर रही हैं. एक ही शोरूम में कई ब्रांड बेचे जा रहे हैं. इसके लिए ब्रांडों की बंडलिंग की रणनीति अपनाई जा रही है. यह भी एक तथ्य है कि सिंगल ब्रांड रिटेल में एफडीआई की अनुमति देने के बाद अप्रैल 2006 से मार्च 2010 तक चार साल में मात्र 901 करोड़ रूपए की एफडीआई आयी है.
समिति ने कहा था कि बिना किसी रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के निजी क्षेत्र की बड़ी घरेलु रिटेल चेन के विस्तार पर भी अंकुश लगाया जाना चाहिए. लेकिन सरकार ने अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. पिछले चार साल में रिटेल स्टोर की ओर से कृषि उपज के भंडारण व उससे जुड़ी बुनियादी सुविधाओं के लिए कोई खास पहल नहीं की गई है.
कैश एंड कैरी बैक एंड आपरेशन में सौ फीसदी एफडीआई के बावजूद कंपनियों ने बुनियादी सुविधाओं के विकास में बड़ा निवेश नहीं किया. यही नहीं इन कंपनियों ने अनुबंध खेती के नाम पर किसानों के साथ संबंध स्थापित करने की कोशिश तो की, लेकिन करार की अनुचित शर्तों के कारण यह कोशिश भी विफल हो गई. इस अनुभव को झेल चुके किसानों का अनुबंध खेती से मोहभंग हो चुका है.

स्रोत : http://visfot.com/home/index.php/permalink/5350.html

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपके सुझाव, राय और मार्गदर्शन टिप्पणी के रूप में देवें

लिखिए अपनी भाषा में