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नया धमाका

11/20/2010

संत, मंदिर और संघ से ही देश की सुरक्षा सुनिश्चित

संत, मंदिर और संघ इस राष्ट्र की सुरक्षा की "गारंटी" हैं। केन्द्र सरकार और सेकुलर दल देश को छिन्न-भिन्न कर इसकी एकता को तोड़ना चाहते हैं। केन्द्र सरकार हिन्दू समाज के हर मानबिंदु को खत्म करना चाहती है। वह झूठे आरोप लगाकर, संघ, संत और एकता के प्रतीक मंदिरों को बदनाम कर रही है। संघ और हिन्दू समाज इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। हिन्दू समाज, भगवा रंग और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ "आतंक" के विरुद्धार्थी शब्द हैं। हिन्दुत्व के मूल में अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह ही हैं, ये बदल नहीं सकते। उसी हिन्दुत्व का प्रतीक भगवा रंग है जो अपने राष्ट्र ध्वज का सिरमौर है। हिन्दुत्व हम सबकी पहचान है, जो सभी पंथों, उपासना पद्धतियों संप्रदायों को केवल मान्यता ही नहीं देता है वरन् स्वीकार भी करता है, उनकी सुरक्षा का अभिवचन देता है। इसी विचारधारा के आधार पर संपूर्ण समाज को संगठित करने वाले संघ के साथ आतंकवाद शब्द को जबरदस्ती, छल-कपट से चिपकाने की चेष्टा चल रही है।
अपने देश में हुए कुछ बम विस्फोटों में कुछ व्यक्ति पकड़े गये, जो हिन्दू हैं। कहा जा रहा है कि वे सभी संघ के हैं। पहला असत्य तो यही है। पकड़े गये अधिकतर लोग उग्र प्रकृति के हिन्दू तो हो सकते हैं, परंतु वे संघ से दूर गये लोग हैं या उग्र प्रकृति के कारण संघ ने जिनको दायित्व से मुक्त कर अपने से दूर कर दिया है। लेकिन इसका लाभ लेकर पहले बात चलायी गयी "हिन्दू आतंकवाद" की और जब ध्यान में आया कि जनमत इसका विरोध करेगा तो शब्द बदल दिया, कहा-"भगवा आतंकवाद"।
"भगवा आतंकवाद" कहने वाले अनेक लोगों के गुरु भगवा पहनते हैं, इसलिए ऐसे नामों का लाभ उठाकर कई लोगों का नाम उछाल दिया गया। यह सिद्ध करने का प्रयास हो रहा है कि ये लोग भी "आतंकवादी" हैं। जिन पर ये आरोप लगाए जा रहे हैं उनका चरित्र तो समाज के सामने खुला हुआ है, ये सेवा करने वाले लोग हैं, मनुष्य को सद्गुणों की शिक्षा देने वाले लोग हैं। मैं यहां उन्हें संघ के स्वयंसेवक नहीं कह रहा हूं क्योंकि साजिश केवल संघ के खिलाफ नहीं हो रही है। यह एक सोचे-समझे षड्यंत्र के तहत प्रवर्तित की गयी घटनाओं की श्रृंखला है। 2003 के पश्चात् सबसे पहला हाथ कांची के शंकराचार्य पर डाला गया। उन पर बहुत घृणित आरोप लगाए गये, बहुत दुष्प्रचार किया गया। एक के बाद एक सभी आरोपों से वे बरी होकर मुक्त हो गये, उसका कहीं कोई जिक्र नहीं, कोई चर्चा नहीं। कोई पश्चाताप भी नहीं। षड्यंत्र रचने वाले षड्यंत्र रचकर खुले घूम रहे हैं। सब आरोप झूठे थे। उड़ीसा में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या की गयी। स्वामी जी वहां के वनवासियों के बीच रहकर उनकी बड़ी सेवा करते थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि सुधार, ग्राम विकास का काम करते थे। वह 80 साल की वृद्धावस्था में भी युवकोचित उत्साह से काम करते थे। वनवासी बंधुओं को स्वावलम्बन और स्वाभिमान की शिक्षा देते थे। उनसे किन्हें खतरा था, उनकी हत्या के पीछे कौन षड्यंत्रकारी थे, यह सबके सामने स्पष्ट है। पूर्व में आठ बार उनकी हत्या का प्रयास किया गया अंतत: 9वीं बार किया गया प्रयास सफल हो गया। ऐसा प्रयास होने वाला है, यह सूचना वहां की सरकार के पास थी, फिर भी उनकी सुरक्षा वापस ले ली गयी। उनकी हत्या के बाद उसके षड्यंत्रकारी खुलेआम घूम रहे हैं। ये कौन लोग हैं, वहां का समाज जानता है। स्वामी लक्ष्मणानंद के सेवा कार्यों के कारण वहां हिन्दुओं का मतांतरण रुक गया था।

षड्यंत्रपूर्ण आरोप
संतों पर षड्यंत्रपूर्वक आरोप लगाने का लंबा सिलसिला चला आ रहा है। तिरुपति के मंदिर की जमीन हड़पने की साजिश की गयी। वहां की जनता जागृत हुई, उसने आंदोलन चलाया और जमीन हड़पने का षड्यंत्र विफल हो गया। लेकिन यह षड्यंत्र करने वाले कौन लोग थे, हड़पे जाने के बाद उस जमीन का कौन लोग इस्तेमाल करते, यह सबको मालूम है। तिरुपति मंदिर मुक्त होकर धर्म जागृति का अपना काम करने लगा तो वहां किसका मतांतरण रुका, यह भी सबको मालूम है। जम्मू-कश्मीर के मामले में सरकार किसी दबाव में आकर कोई देश विरोधी समझौता न कर ले इसकी चिंता करते हुए संत, मंदिर और संघ ही जन जागृति के माध्यम से उसे ऐसा न करने के लिए बाध्य करते हैं। बाबा अमरनाथ की जमीन की वापसी भी संत, मंदिर और संघ के दबावों के कारण हुई। अपने देश में जात-पांत और संप्रदाय को लेकर झगड़े फैलाये जाते हैं, इसे भी संत, मंदिर और संघ रोकते हैं, गुंडागर्दी को रोकने का काम भी यही तीनों करते हैं। इन पर आरोप लगाने वाली ताकतें सब उल्टा काम करती हैं। कश्मीर के मसले को लेकर वहां के अलगाववादी, राष्ट्रविरोधी लोग दिल्ली तक में सभाएं करते हैं और कहते हैं कि "कश्मीर अलग है"। वहां के मुख्यमंत्री कहते हैं कि "कश्मीर के मामले में जो भी करें, वह पाकिस्तान को मंजूर होना चाहिए"। उनसे पूछा जाना चाहिए कि वे भारत के एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं या पाकिस्तान के राज्य के? इन बातों के खिलाफ आवाज उठाने वाले संत, मंदिर और संघ हैं। आश्चर्य यह है कि ऐसी सब बातें बोलने पर उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, उन पर कोई अंगुली नहीं उठती है, उलटा उन्हें प्रमाण पत्र दिया जाता है कि वे जो कुछ कह रहे हैं, वह ठीक है। ऐसी षड्यंत्रकारी ताकतों की बाधा बनने वाले संत, मंदिर और संघ को चुप कराने की कोशिश की जा रही है। हिन्दुस्थान में विविधता में एकता का झंडा लेकर चलने वाले सदियों पुराने जीवन मूल्यों के नष्ट होने से ही उनके स्वार्थ की दुकान चल सकती है और हिन्दू समाज के मनोबल को गिराने से इस देश का अस्तित्व मिट सकता है, ऐसा चाहने वाली दुनिया की ताकतें इनके पीछे हैं। ऐसी ताकतें नहीं चाहतीं कि हिन्दुस्थान अपने पुराने वैभव को प्राप्त कर सके। चुनावी स्वार्थ के लिए समाज को बांटकर वोटों की खेती करने वाले लोग इसके पीछे हैं।

समाज के मन की बात
30 सितम्बर को रामजन्मभूमि पर न्यायालय का निर्णय आया। हिन्दू समाज और संघ परिवार के मत को मैंने अपनी प्रतिक्रिया में प्रकट किया था। मैंने सबसे एक होने का आह्वान किया था, कहा था कि यह विजय-पराजय की बात नहीं है। संपूर्ण समाज ने उसे इसलिए स्वीकार किया क्योंकि वह सारे समाज के मन की बात थी, क्या हिन्दू, क्या मुसलमान। एक अच्छा वातावरण पैदा करने का माहौल बना था, लेकिन ऐसा वातावरण अगर निर्माण हो गया तो (उनके) वोटों की खेती नहीं हो सकेगी, इसलिए कल तक जो बोल रहे थे कि राम मंदिर पर न्यायालय का फैसला स्वीकार होगा, दूसरे दिन से उन्होंने ही मुसलमानों को भड़काने का काम शुरू कर दिया। इस मामले में झगड़े हों, इसकी उनको कतई परवाह नहीं है। जो करने से उनको वोट मिलेगा, वह करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं, चाहे देश का कुछ भी हो जाए। ऐसे लोग हम पर अंगुली उठायें, जबकि अंगुली के पीछे कुछ भी नहीं है। हवा भी नहीं है, राई का पहाड़ होता है, लेकिन यहां तो राई भी नहीं है।

संघ के एक लाख सत्तावन हजार के ऊपर छोटे-बड़े सेवा केन्द्र पूरे देश में चलते हैं, वहां कोई भेदभाव नहीं होता है, संघ सबको अपना मानता है। हिन्दू किसी पूजा-पद्धति का नाम नहीं है, वह हमारे देश की साझा पहचान है। परंपरागत पहचान है। इस देश के ईसाई-मुसलमान, सभी को हम हिन्दू मानते हैं। मैं इतिहास की याद दिलाना चाहता हूं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना करने वाले सर सैयद अहमद खां, जिन्हें पाकिस्तान के निर्माण की कल्पना का जनक माना जाता है, की कहानी बताता हूं। 1880 में वह विलायत से बैरिस्टर बनकर भारत आ गये। देश में उनका स्थान-स्थान पर अभिनंदन हुआ। लाहौर में अभिनंदन के दौरान एक वक्ता ने कहा कि अब तक बहुत से हिन्दू विलायत से बैरिस्टर पदवी प्राप्त कर चुके हैं, सर सैयद पहले मुसलमान बैरिस्टर बने हैं, इसलिए उनका स्वागत किया जा रहा है। अपनी बारी आने पर सर सैयद ने इस पर घोर आपत्ति करते हुए कहा था- "मुझे इस बात का दुख हुआ कि मेरा परिचय कराने वाले वक्ता ने मेरी गिनती हिन्दुओं में नहीं की। हमारी पूजा-पद्धति अलग है तो क्या हुआ, हम भारत माता के पुत्र नहीं हैं क्या? आप हमको हिन्दुओं से दूर क्यों रखते हैं।" अगर उनके इस प्रश्न का सही उत्तर उस समय दिया गया होता तो न इस देश का बंटवारा होता और न ही ये दिन हम सबको देखने को मिलते। भारत कभी का विश्व गुरु बन चुका होता। अंग्रेजों ने "बांटो और राज करो" की नीति अपनायी, उन्होंने सर सैयद जैसे मुसलमानों को भी बहकाया। आगे चलकर इसका नतीजा देश के बंटवारे के रूप में आया। "बांटो और राज करो" की यह दुनीर्ति अभी रुकी नहीं है। स्वतंत्रता के बाद सत्ता ने उसी नीति का अनुगमन किया। आज भी अपने समाज को छोटे-छोटे तबकों, मत-संप्रदाय, जात-पांत में बांटकर राज करने की राजनीति चल रही है। संघ सबको सिखाता है कि इन भेदों को छोड़ो। वह अपने यहां की विविधता में एकता के दायरे से भी ऊपर उठने का पक्षधर है। कोई किसी भी जाति, पंथ, मत, संप्रदाय का हो, उसके लिए भारतमाता अपनी माता है। दुनिया में सबको समा लेने वाली यह संस्कृति हमें हमारे पूर्वजों से विरासत में मिली है।
समान पूर्वजों के वंशज
संघ जो बात 1925 से कह रहा है वह आज का विज्ञान भी कहता है कि कम से कम 40 हजार वर्ष पूर्व से हम सब लोगों का "डीएनए" एक है यानी हम समान पूर्वजों के वंशज हैं। उन पूर्वजों के प्रति गौरव प्रकट करना चाहिए। हमें आज दुनिया हिन्दू कहती है, इसलिए हम हिन्दू हैं। इसमें किसी को कुछ बदलने की जरूरत नहीं है। जिसकी पूजा करते हो, जिस प्रकार से करते हो, ईमानकारी से करो, अच्छे, पक्के, सच्चे बनो। लेकिन संघ का यह संदेश देशभर में जाता है और लोग उसको स्वीकार करने लगते हैं तो राजनीतिक स्वार्थ के आधार पर चलने वाली सभी दुकानें बंद होने लगती हैं। इसलिए आपने देखा होगा, जब-जब संघ पर आघात हुआ, उसके पहले ऐसी परिस्थिति आ गयी थी कि दिल्ली की सत्ता डोलने लगी थी, डोलने वाली सत्ता को स्थिर करने के लिए संघ पर निशाना साधा जाता रहा। 1948 में भी देश के बंटवारे के कारण दुनिया की जो भावना बनी थी, देश की जो भावना बनी थी, उससे देश के उस समय के सत्ताधारियों को लगा कि जब तक हिन्दुत्व की भावना को नहीं दबाते, तब तक आगे सत्ता की राजनीति कठिन है। उसी तरह आपातकाल के समय सत्ता को अंदर से जब खतरा पैदा हो गया तो सत्ता को बदलने का षड्यंत्र चल रहा है, ऐसा भ्रम पैदा करने के लिए संघ कार्य के संदर्भ में लकड़ी की तलवारें दिखायी गयीं और झूठे आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

इधर फिर से केन्द्रीय सत्ता में अंदरूनी खींचातानी बढ़ गयी है। लोगों में सत्ता के प्रति तीव्र असंतोष बढ़ गया है, इससे घबराकर चुनाव के समय कैसे जीत मिले, इस पर विचार होने लगा है। वे लोग रामजन्मभूमि प्रकरण का सहारा ले सकते थे, लेकिन न्यायालय ने निर्णय दे दिया तो उनके सारे गणित गड़बड़ हो गये। अब खोया वोट वापस कैसे मिले, इस पर विचार होने लगा। तय किया गया है कि संघ का हौव्वा खड़ा करो, उसे आतंकवादी कहो, मुसलमानों में उसका डर पैदा करो और फिर वोट के रूप में उस डर को भुनाओ। आज देश को खतरे में डालकर राजनीति करने वाले संघ पर अंगुली उठा रहे हैं। संघ के संविधान में कहा गया है कि हिंसा में विश्वास करने वाले का संघ में प्रवेश वर्जित है। संघ देश की कानून-व्यवस्था का समर्थन करता है, सहयोग करता है। संघ पर प्रतिबंध लगा तो कानून के आदेश के अनुसार संघ को विसर्जित कर दिया गया और बाद में न्यायालय में जाकर लड़ाई लड़ी। विस्फोटों के प्रकरण में भी संघ जांच में पूरा सहयोग कर रहा है। जब हमसे कहा गया कि आपके कुछ लोग शक के दायरे में हैं, तो हमने कहा कि उनको बुलाओ, उनसे पूछताछ करो, हमने उन सब लोगों को बताया कि तुम सबको जो कुछ मालूम है, सच-सच बता दो। लेकिन खबरें "लीक" की जा रही हैं, अभी न्यायालय में आरोपपत्र तक नहीं, न्यायालय ने कुछ कहा भी नहीं, लेकिन मीडिया के द्वारा संघ के नाम को उछाला जा रहा है। ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है जैसे संघ दोषी है, अपप्रचार किया जा रहा है। ऊलजलूल बातें कही जा रही हैं, ऐसी हास्यास्पद बातें हो रही हैं जो उल्लेख करने लायक नहीं हैं। निराधार, बेवजह की बातें करते हैं, आरोपपत्र में इंद्रेश जी का सिर्फ नाम उल्लेख में आया है, लेकिन आरोपियों की सूची में उनका नाम नहीं है। जांच एजेंसियां भी कह रही हैं कि अभी देखना बाकी है। उनका नाम आया कि लाया गया, पता नहीं। लाया गया, इसकी ही संभावना अधिक है।
अब तो हद हो गई
इसके पीछे कौन लोग हैं, इस झमेले में हमें जाने की जरूरत नहीं। लेकिन आम आदमी सचाई समझ रहा है। वह मानता है कि संघ को बेवजह घसीटा जा रहा है। इंद्रेश जी के बारे में उल्टी-सीधी बातें, संघ के बारे में दुष्प्रचार हो रहा है इसलिए संघ के अधिकारियों ने उचित ही समझा कि अब चुप रहना ठीक नहीं है। जनता के सामने इन बातों को लाना चाहिए। इसलिए चुनाव और छठ पर्व के आयोजन में व्यस्त बिहार को छोड़कर सारे देश में हर राज्य में 10 नवम्बर को धरना दिया गया। बिहार में 16 नवम्बर को धरने का कार्यक्रम है। धरना-प्रदर्शन संघ की कार्यपद्धति में नहीं है। स्वयंसेवकों का ऐसा स्वभाव भी नहीं है। संघ इसका अभ्यस्त नहीं है। लेकिन यह केवल संघ पर संकट नहीं है, संपूर्ण हिन्दू समाज को बदनाम कर उसके मनोबल को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। यह धरना संघ पर आये संकट के कारण ही नहीं है, कांची के शंकराचार्य को बदनाम करने से शुरू होकर ऐसे षड्यंत्रों की पूरी श्रृंखला है। हम तो देश के कानून में पूरी तरह विश्वास करते हुए अपना काम करते रहे, शांति से चलते रहे, आगे बढ़ते रहे, लेकिन अब तो हद हो गयी। हमने सोचा कि संघ की ओर से यह बात बतायी जाए कि यह सब पर संकट है। यह प्रचलित भाषा में हिन्दू कहे जाने वालों पर ही संकट नहीं है वरन् यह अपने देश की शांति, सुव्यवस्था, अखंडता और एकात्मता के लिए खतरा है। ऐसी नीतियां देश को तोड़ती हैं, देश की गरिमा को घटाती हैं, आपस में बैर पैदा करती हैं।

कोई देशभक्त नागरिक ऐसा कदापि नहीं चाहेगा इसलिए इस संकट को पहचानिये। हमें खुशी है कि अब जनता पहचानने भी लगी है। इसलिए ऐसी बातें ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकेंगी। जो ऐसी बातें कर रहे हैं, उन्हें तो इसका लाभ कतई नहीं मिलेगा। सत्य को दबाया नहीं जा सकता है। सत्य एक दिन सिर पर चढ़कर बोलेगा। संघ ने सभी अग्नि परीक्षाओं से निकल इतना विस्तार पाया है। आगे भी ऐसा होगा, हम निर्दोष निकलेंगे। हम समाज को सावधान करना चाहते हैं कि षड्यंत्रों को पहचानकर चौकसी रखने की जरूरत है। सतर्कता रखने की जरूरत है। इस सबका मुकाबला तो हम करेंगे ही। कानून-व्यवस्था को सहयोग देते हुए हम न्यायालय में लड़ेंगे। हम भागेंगे नहीं, हम प्रचार के स्तर पर भी लड़ेंगे। हम जनता के पास भी जाएंगे। अगर ऐसी ताकतें देश को खंडित करने से बाज नहीं आयीं तो अपने कुचक्रों का पूरा परिणाम उन्हें भुगतना पड़ेगा। न्यायालय में दूध का दूध, पानी का पानी होने ही वाला है। लेकिन राष्ट्रीय एकात्मता को बल देने वाली शक्तियों को सजग रहने की जरूरत है। देश का परम वैभव चाहने वाले और देश को एकताबद्ध करने वाले लोगों को ऐसे षड्यंत्र को न चलने देने के लिए एकजुट होना होगा।
(साभार पांचजन्य)

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