4 जून, 2011 की आधी रात को दिल्ली में रामलीला मैदान में 50 हजार से भी ज्यादा सो रहे सत्याग्रहियों पर सोनिया-कांग्रेस की पुलिस ने धावा बोल दिया। इन सत्याग्रहियों में महिलाएं थी, बूढ़े थे और बच्चे भी थे। शिविर में मंच पर योग गुरु और सन्यासी बाबा रामदेव भी सो रहे थे। शिविर से बाहर निकलने का शायद एक ही रास्ता था। ऐसा कहा जाता है कि 10 हजार से भी ज्यादा पुलिस वालों ने शिविर को रात्रि के अंधकार में घेर लिया था। इनमें ‘रेपिड एक्शन फोर्स’ के हजारों जवान भी थे। शिविर में घुसते ही पुलिस का एक दल बाबा रामदेव को पकड़ने के लिए मंच की ओर बढ़ा और दूसरे दल ने सत्याग्रहियों पर हल्ला बोल दिया। बाबा रामदेव को उनके अनुयायियों ने घेर लिया तो पुलिस ने सत्याग्रहियों पर आंशु गैस के गोले बरसाने शुरू कर दिए और शिविर में फंसे सत्याग’हियों पर अंधाधुन लाठी चार्ज करना शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप सैकड़ों सत्याग्रही गंभीर रूप से घायल हुए। कुछ इस भगदड़ में इधर-उधर भटक गए और बचे अपने माता-पिता से अलग हो गए। 3 से 4 घंटे चले इस तांडव के उपरांत शिविर स्थल पर घायल सत्याग्रहियों की कराहें सुनायी दे रही थी। कुछ बेहोश पड़े थे और शेष को पुलिस के लोग घसीट-घसीट कर बाहर निकाल रहे थे। महिला सत्याग्रहियों के साथ ऐसे वक्त पर पुलिस के जवान जिस प्रकार का व्यवहार आमतौर पर करते हैं, उसी प्रकार का व्यवहार यहां हो रहा था। पुलिस ने मंच पर आग लगा दी जिसे यदि सत्याग्रही तुरंत बुझा न देते तो वहां भयंकर नरसंहार हो सकता था। बाबा रामदेव का कहना है कि यह आग उन्हें मारने के लिए जानबुझकर लगाई गई थी।
प्रश्न यह था कि रामलीला मैदान एकत्रित हुए ये लाखों सत्याग्रही ऐसा कौन सा काम कर रहे थे जिसके कारण सोनिया गांधी की पुलिस को आधी रात को उनपर आक’मण करना पड़ा? ये सत्याग्रही बाबा रामदेव के साथ ही सरकार से मांग कर रहे थे कि देश के जिन भ’ष्टाचारियों ने अपनी हजारों करोड़ों की काली कमाई विदेशी बैंकों में छुपा रखी है, उसे वापिस मंगवाया जाए और इस संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए और साथ ही भ’ष्टाचारियों को कठोरतम दंड दिया जाए। शुरु में सरकार ने देश के एक जाने-माने वकील, जो आजकल केंद्रीय सरकार में मंत्री भी हैं, को बाबा को पटाने के लिए नियुक्त किया था। कपिल सिब्बल वकील हैं, उन्होंने आजतक अपने शब्द चातुर्य और बुद्धि कौशल से अनेकों मुकदमें जीते हैं। इस क्षेत्र से वाकिफ लोग अच्छी तरह जानते हैं कि वकील पैसा लेकर अपने मुव्वकिल का मुकदमा लड़ता है। उसे इस बात की चिंता नही होती की मुव्वकिल का काम उचित है अथवा अनुचित है उसे तो पूरी इमानदारी से अपने मुव्वकिल के लिए कानूनी दांव पेच लड़ाकर मुकदमा जितना होता है। इस बार केंद्र सरकार ने उन्हें शायद सबसे कठिन मुकदमा दिया था। उन्हें बाबा रामदेव के आक्रमण से उन भ्रष्टाचारियों की रक्षा करनी थी जिनके खिलाफ रामदेव अपने लाखों अनुयायियों के साथ भारत माता की जय का घोष करते हुए रामलीला में आ बैठे थे। सोनिया-कांग्रेस को भी और कपिल सिब्बल को भी पूरी आशा थी कि वे बाबा रामदेव को अपने शब्द चातुर्य से घेर लेंगे और भ्रष्टाचारियों को राहत मिलेगी। कपिल सिब्बल की शायद एक और चिंता भी हो सकती है। यदि भ्रष्टाचारियों का विदेशी बैंकों से पैसा लाने का अभियान सफल हो जाता है तो सोनिया गांधी के नजदीकी रहे क्वात्रोची का मामला फिर उठ सकता है आखिर क्वात्रोची ने भी भारत में दलाली से अर्जित की अपनी संपत्ति विदेशी बैंकों में ही रखी हुई थी, जिसे शायद सोनिया गांधी के दबाव में सीबीआई ने अत्यंत चतुराई से निकलवा लेने का रास्ता प्रदान किया था। इसलिए कपिल सिब्बल के लिए भ्रष्टाचारियों के पक्ष में यह मुकदमा जीतना अत्यंत आवश्यक था। परंतु शायद बाबा रामदेव कपिल सिब्बल से भी ज्यादा चौकन्ने निकले। वैसे भी अन्ना हजारे और उनके सहायकों ने भी समय रहते ही बाबा रामदेव को चौकन्ना कर दिया था कि सरकार उनसे धोखा करेगी। जाहिर है कपिल सिब्बल और सोनिया-कांग्रेस यह मुकदमा हार गए और बाबा रामदेव जीत गए, उन्होंने तब तक सत्याग्रह बंद करने से इंकार कर दिया जब तक भ्रष्टाचार की काली कमाई विदेशी बैंकों से भारत लाने और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने के लिए अध्यादेश जारी नही कर दिया जाता। कपिल सिब्बल और उनकी मुव्वकिल सोनिया गांधी भी अच्छी तरह जानती है कि यदि काली कमाई वाले भ’ष्टाचारियों का नाम उजागर हो जाता है तो भारत में बहुत परिश्रम से उनका सत्ता का खड़ा किया दुर्ग रेत के महल की तरह भरभरा जाएगा।
अब प्रश्न था मुकदमा हार जाने के बाद जीतने वाले पक्ष से कैसे निपटा जाए? इसके लिए सरकार ने पूर्व काल में ऐसी ही परिस्थिति में चीन की तानाशाही सरकार द्वारा अपनाई गई पध्दति का अनुसरण करना श्रेयस्कर समझा। आज से लगभग 20 वर्ष पहले चीन में भी ऐसी ही परिस्थिति उत्पन्न हो गई थी। वीजिंग के केंद्रीय स्थल थ्यान मेन चौक पर हजारों चीनी लोकतंत्र की मांग करते हुए कई दिनों से शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे थे। चीनी सरकार ने एक रात बिना किसी पूर्व चेतावनी के उनपर सेना की सहायता से आक’मण कर दिया जिसमें हजारों सत्याग’ही मारे गए और रात्रि में ही सेना ने थ्यान मेन चौक को खाली करवा दिया। सोनिया-कांग्रेस की सरकार की प्रधानमंत्री एवं अन्य महत्वपूर्ण लोग भी पिछले कुछ सालों से वकायदा चीन आ जा रहे हैं। सरकार का यह भी कहना है कि प्रगति के रास्ते पर चलने के लिए भारत को चीन से बहुत कुछ सिखने की जरूरत है। लगता है शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आंदोलन को पशुबल से कैसे कुचला जाता है इसको मनमोहन सिंह सरकार ने चीन से बखूबी सीख लिया है। 20 साल पहले के वीजिंग के थ्यान मेन चौक की बरबर्ता की पुनरावृत्ति सोनिया-कांगेस ने 4 जून, 2011 की रात्रि को दिल्ली के रामलीला मैदान में करके लोकतंत्र से निपटने की अपनी भविष्य की रणनीति का संकेत दे दिया है।
आपात स्थिति में भी जयप्रकाश नारायण को हस्पताल में निरंतर धीमा जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी। जयप्रकाश नारायण भी शासन की तानाशाही के खिलाफ लड़ रहे थे। 2011 तक आते-आते सोनिया गांधी के शासन ने इतनी प्रगति अवश्य की है कि धीमा जहर देकर मारने की कच्छुआ गति से बढ़कर वह मंच पर आग लगाकर तुरंत मारने की रणनीति तक पहुंच गया है। दिल्ली में सोनिया गांधी की पार्टी ने जो अपना असली रूप दिखाया है उसकी तुलना इटली में मुसोलिनी द्वारा अपने विरोधियों को कुचलने के लिए अपनाए जाने वाले फासीवादी तरीकों से की जा सकती है। लोकतंत्र संवाद से चलता है और मुसोलिनी का फासीवाद एकालाप और आदेश से चलता था। सोनियां गांधी के एजेंटों ने बाबा रामदेव से निपटने के लिए वही इतालबी तरीका अपनाया। यदि आप हमारे साथ हैं तो हवाई अड्डे पर चार-चार मंत्री आपकी आगवानी करने के लिए तैयार मिलेंगे। लेकिन यदि आप हमारे स्वर में स्वर नहीं मिलाते तो वही एजेंट आधी रात को सशस्त्र बल लेकर आपकी खोपड़ी पर निशाना भी साध सकते हैं। दिल्ली के रामलीला मैदान में इसी का नंगा प्रदर्शन हुआ। जिन लोगों के हाथों में सत्ता चली गई है, हो सकता है उनके जीवन मूल्य अलग हों, उनकी चेतना फासीवादी हो, उनके संस्कार तानाशाही हों, परंतु उन्हें ध्यान रखना चाहिए की भारत लोकतांत्रिक मूल्यों से अनुप्राणित है। संवाद यहां की आत्मा है। इस देश में लोगों को शांतिपूर्ण सत्याग्रह करने का पूर्ण अधिकार है। इसी अधिकार के लिए यहां के लोगों ने विदेशी यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों से लंबी लड़ाई लड़ी। लेकिन दिल्ली में अहिंसक सत्याग्रहियों पर कायराना आक्रमण को देखता है कि शायद हिन्दुस्थानियों को अभी यह लड़ाई और लड़नी पड़ेगी। क्या सोनिया गांधी सुन रही हैं?
सच, सच, सच, सच, सिर्फ़ सच कहा है, यह लडाई अभी लम्बी चलेगी?
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