करीब महीना भर पहले दिग्विजय सिंह ने यह बयान देकर सनसनी पैदा कर दी थी कि मुंबई हमले से थोड़ी देर पहले हेमंत करकरे ने उनसे बात की थी और हिन्दू चरमपंथियों से अपनी जान को खतरा बताया था. दिग्विजय सिंह के इस बयान के बाद कांग्रेस के अंदर और बाहर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी और उनके ऊपर फोन कॉल्स की डिटेल्स देने का दबाव बढ़ गया था. उन्होंने फोन काल्स की डिटेल तो जरूर दी लेकिन ऐसा लगता है कि एक बार फिर दिग्विजय सिंह झूठ बोल रहे हैं, और कमजोर कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.
उस वक्त चौतरफा उठ रहे सवालों से दिग्विजय सिंह बैकफुट पर चले गये और कांग्रेस के अंदर ही उनकी फजीहत शुरू हो गयी. महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर आर पाटिल ने तो मजाक ही उड़ा दिया था. लेकिन ऐसा लगता है उसके बाद दिग्गीराजा का भाग्य उदय हो गया. उनको काल डिटेल्स भी मिल गयी. बातचीत करने का समय भी मिल गया और आज दिल्ली में उन्होंने सबको माफी मांगने की चुनौती भी पेश कर दी. लेकिन क्या ऐसा नहीं लगता कि दिग्विजय सिंह एक बार फिर झूठ बोलकर अपनी खाल बचाने की कोशिश कर रहे हैं?
पहला सवाल अगर उस वक्त बीएसएनल काल डिटेल देने में असमर्थ था तो आज महीने भर बाद काल डिटेल कहां से पैदा हो गयी? क्या बीएसएनएल ने कॉल डिटेल पैदा कर दी? अगर ऐसा नहीं है तो फिर काल डिटेल आयी कहां से? दिग्विजय सिंह के ताजा सफाई अभियान पर सवाल और भी उठते हैं. दिग्विजय सिंह बता रहे हैं कि फोन एटीएस कार्यालय से आया था. अगर ऐसा है तो इसकी क्या गारंटी है कि फोन हेमंत करकरे ने ही किया था? एटीएस कार्यालय से कोई और भी तो दिग्विजय सिंह से बात कर सकता है? खुद दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि उन्हें उस नंबर से फोन आया जो एटीएस की वेबसाइट पर मौजूद है? अब आप ही सोचिए कि एटीएस चीफ भला उस नंबर से फोन क्यों करेंगे जो सार्वजिनक रूप से वितरित किया गया हो और जिसका इस्तेमाल रिसेप्शन से होता हो? क्या महाराष्ट्र सरकार की स्थिति इतनी दयनीय है कि उसने अपने एटीएस चीफ को एक प्राइवेट नंबर तक नहीं दे रखा है? राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में रहनेवाले लोग जानते हैं कि कोई भी ब्यूरोक्रेट या आला अधिकारी सार्वजनिक नंबरों से राजनीतिक संपर्कों को फोन नहीं करता है. क्या हेमंत करकरे ने जानबूझकर उस नंबर से फोन किया था जो घोषित तौर पर एटीएस का नंबर है ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर दिग्विजय सिंह इसको प्रमाण के रूप में इस्तेमाल कर सकें.
दिग्विजय सिंह की सफाई में कमजोरियां कई हैं. उनका यह कहना कि फोन उनके उस नंबर पर आया था जिसे राज्य कांग्रेस की ओर से उन्हें दिया गया है. अब जरा कोई दिग्विजय सिंह से पूछे कि वे अपने नौकराशाही और राजनीतिक संपर्कों पर सिर्फ उन्हीं नंबरों पर बात करते हैं जो कांग्रेस कार्यालय ने उन्हें उपलब्ध करवाया है? अगर ऐसा होता तो दिग्विजय सिंह की राजनीति कब की खत्म हो गयी होती. और दिग्विजय सिंह की माली हालत देखकर कोई यह नहीं कहेगा कि दिग्गी राजा के पास इतना पैसा नहीं है कि वे अपने फोन का बिल भर सकें इसलिए वे कांग्रेस कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराये गये नंबर का इस्तेमाल करते हैं. झूठ की इंतहा लगती है.
दिग्विजय सिंह एक बार फिर झूठ बोलकर अपनी खाल बचाने की कोशिश कर रहे हैं
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