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नया धमाका

1/04/2011

125 साल का इतिहास बताने वाली कांग्रेस पहले पार्टी तो बने

जो किया सो भोगना ही पड़ता है। कर्मफल अवश्यम्भावी है। सो कांग्रेस अपने पापकर्मों से बेहद डरी और सहमी है, उसे अपनी छाया से भी डर लगता है। 1975-77 की आपातकालीन तानाशाही बर्बर थी, अमानवीय थी, संविधान और लोकतंत्र का मुंह कुचलने वाली यातना थी। श्रीमती इन्दिरा गांधी और कांग्रेस ही इसकी जिम्मेदार थी। देश का जनमानस पुलिस बूट के नीचे था। सम्पूर्ण विपक्ष जेल में था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे राष्ट्रभक्त संगठन पर प्रतिबंध था। संघ के लाखों कार्यकत्र्ता जेल में थे और पुलिस उत्पीड़न के निशाने पर थे। मूल अधिकार कांग्रेस की जेब में थे। विपक्ष की गैरहाजिरी में संविधान में 53 संशोधन किए गये, न्यायपालिका के पंख कतरे गये। घोर तानाशाही के इस दौर में पूरी कांग्रेस एकजुट, एक साथ थी, वरिष्ठ कांग्रेसजन ने "इन्दिरा को इण्डिया" बताया। चन्द्रशेखर जैसे कतिपय कांग्रेसजन को भी जेल में डाला गया। देश ने कांग्रेस को इसके लिए कभी माफ नहीं किया। आपातकाल का भूत कांग्रेस का पीछा कर रहा है। कांग्रेस ने इसी प्रेत से अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए "कांग्रेस एण्ड दि मेकिंग आफ दि इण्डियन नेशन" नामक किताब जारी की है। इस किताब के अनुसार जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाला आन्दोलन "अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक" था। वही आपातकाल लागू करने का मुख्य कारण था।

आपातकाल का महाझूठ
कांग्रेस की सफाई सरासर महाझूठ है। आपातकाल लागू करने का कारण जे.पी. आन्दोलन नहीं था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीमती गांधी के चुनाव को अवैध ठहराया था। कांग्रेस भ्रष्टाचार का पर्याय थी ही, सारे देश में जनजागरण था, "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" की अनुगूंज थी। इन्दिरा गांधी पर इस्तीफे का जन-दबाव था। इसी से बचने के लिए कांग्रेस ने आपातकाल लगाया था। कायदे से कांग्रेस को आपातकालीन तानाशाही के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए थी, लेकिन कांग्रेस इतिहास के तथ्यों को ही बदलने पर आमादा है। भारत प्राचीन राष्ट्र है। कांग्रेस द्वारा प्रकाशित किताब के शीर्षक में ही कांग्रेस "भारतीय राष्ट्र" का निर्माण करने का दावा कर रही है। 1947 के आसपास जवाहर लाल नेहरू सहित उस दौर की पूरी कांग्रेस भारत को निर्माणाधीन राष्ट्र बता रही थी। गांधी जी ने "हिन्द स्वराज" (पृष्ठ 48-49, सर्वसेवा संघ प्रकाशन) में ऐसे लोगों को डांटा है, "आपको अंग्रेजों ने सिखाया है कि आप एक राष्ट्र नहीं थे ......जब अंग्रेज हिन्दुस्थान में नहीं थे तब भी हम एक राष्ट्र थे।" अंग्रेज ही क्यों मुगलों के भारत पर हमला करने और हुकूमत करने के पहले भी हम एक राष्ट्र थे। अशोक के समय भारत एक विशाल राष्ट्र-राज्य था। इसकी सीमाएं अफगानिस्तान तक थीं। अशोक चिन्ह को अपने लेटरहेड पर प्रयोग करने वाले कांग्रेसी मंत्री इतिहास का ऐसा सामान्य तथ्य भी नहीं जानते कि भारत एक प्राचीन राष्ट्र ही है।
मनचाहा इतिहास
मनचाहा इतिहास लिखने की कांग्रेसी कोशिश नई नहीं है। श्रीमती इन्दिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल (1972) में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् की स्थापना हुई। संस्था के ज्ञापन पत्रक के अनुसार, "वैज्ञानिक इतिहास लेखन को बढ़ावा देना" इसका लक्ष्य था। परिषद् के अध्यक्ष को प्रधानमंत्री द्वारा व शेष 24 सदस्यों को मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा मनोनीत करने का प्रावधान हुआ। प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने स्वतंत्र भारत (1947-1973) तक का विशेष इतिहास लिखवाने का सरकारी निर्णय लिया कि "इस कालखण्ड का भारतीय इतिहास वैज्ञानिक और वस्तुपरक ढंग" से लिखा जाए। इतिहास लेखक एस. कृष्णास्वामी और मुख्य सम्पादक सर्वपल्ली गोपाल ने मात्र "10 हजार शब्दों" में 26 वर्ष का ऐसा ही इतिहास लिख दिया। इसे अंग्रेजी में "टाइम कैप्सूल" और हिन्दी में "कालपात्र" कहा गया। 15 अगस्त 1973 के दिन यह "कालपात्र" लाल किले की जमीन में गाड़ दिया गया। इस "कालपात्र" में इन्दिरा-विरोधी संगठन कांग्रेस पर अशोभनीय टिप्पणियां थीं। जनसंघ को "उग्र हिन्दूवादी" बताया गया था। 1977 में सत्ता बदली, "कालपात्र" खोद कर बाहर कर दिया गया। इसे राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया। कांग्रेसी तर्ज के इतिहास लेखन का यह एक दिलचस्प नमूना है।
1972-73 में ही इतिहास अनुसंधान परिषद् ने एक और बड़ा फैसला लिया। अंग्रेजी में उपलब्ध इतिहास ग्रंथों के भारतीय भाषाओं में अनुवाद का निर्णय हुआ। योजना का नाम था- "ट्रांसलेशन ऑफ कोर बुक्स ऑफ हिस्ट्री
क्या-क्या छुपाएगी कांग्रेस?
कांग्रेसी तर्ज के इतिहास लेखन का कोई तो लक्ष्य होगा। एक अंग्रेज प्रशासक ए.ओ. ह्रूम काग्रेस के संस्थापक थे। ताजा किताब में उनसे भी पिण्ड छुड़ाने का प्रयास किया गया है। जैसे आपातकाल कांग्रेसी दमन का काल था, वैसे ही 1982 में हुआ सिख नरसंहार कांग्रेस की प्रत्यक्ष हिंसक कार्रवाई थी। कांग्रेस के नेताओं ने सिख नरसंहार पर अशोभन टिप्पणी की थी कि बड़ा पेड़ गिरता है, तो कुछ न कुछ नुकसान होता ही है। यहां बड़ा पेड़ इन्दिरा की हत्या थी। लेकिन सिख निर्दोष थे। कांग्रेस सामूहिक नरसंहार के उस पाप से कैसे मुंह छुपाएगी?
कांग्रेस क्या-क्या छुपाएगी? गांधी जी ने कांग्रेसी चरित्र पर ढेर सारी टिप्पणियां की हैं। स्वाधीनता संग्राम के वक्त भी कांग्रेस में पदों की होड़ थी। गांधी जी ने कहा, "इसके मूल में झूठा आत्मसंतोष है कि जेल भोग लेने के बाद कांग्रेसियों को आजादी के लिए और कुछ नहीं करना है, कृतज्ञ कांग्रेस संगठन को चीजों और पदों के बंटवारे में उन्हें उच्चतम प्राथमिकता देकर पुरस्कृत करना चाहिए। इसीलिए आज तथाकथित पुरस्कार-पदों को प्राप्त करने की अशोभनीय और भौंडी होड़ है।" (सम्पूर्ण गांधी वाड.मय, 84.413) गांधी जी कांग्रेस से अलग हुए, उन्होंने 5 जुलाई 1942 को चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को पत्र लिखा, "तुम्हारे लिए शोभनीय यही होगा कि तुम कांग्रेस से अपना सम्बन्ध तोड़ लो।" (वही, 76.306) उन्होंने के.एम. मुंशी को भी यही राय दी। (वही 74.125) कांग्रेस अनुशासनहीन थी, गांधी जी ने कार्यसमिति में कहा, "छोटी सी अनुशासनपूर्ण कांग्रेस को लेकर मैं पूरे विश्व से लड़ सकता हूं किन्तु यह कांग्रेस दुर्वह और लचर है।" (वही, 71.380-381) इतिहास से सबक लेना ही ठीक रहता है, झूठा इतिहास पढ़ाना आम जनता को मूर्ख समझना और मूर्ख बनाना ही है।
कांग्रेस का मायाजाल
कांग्रेस की 125 वर्षीय उम्र का दावा किया गया है। मूलभूत प्रश्न यह है कि यह कौन सी कांग्रेस है? यह ए.ओ. ह्रूम द्वारा स्थापित कांग्रेस है? नहीं। यह गांधी और सुभाष चन्द्र बोस की अध्यक्षता-विरासत वाली कांग्रेस भी नहीं हो सकती। क्या यह श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा तोड़कर बनाई गई कांग्रेस(आई) का नया संस्करण है? लेकिन बीच में सीताराम केसरी भी इसके अध्यक्ष थे। श्रीमती सोनिया गांधी उन्हें ही जबर्दस्ती हटाकर कांग्रेस अध्यक्ष बनी थीं। कांग्रेस आखिरकार है क्या? क्या इसकी कोई विचारधारा भी है? क्या राष्ट्रवाद इसकी विचारधारा है? तो यह वन्देमातरम् से क्यों तुनकती है? भारतीय संस्कृति के प्रतीक और प्रतिमान भगवा को आतंकवाद से जोड़ने का काम कांग्रेस ने ही किया है। राष्ट्रीय संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक बताने का सिद्धांत कांग्रेस की देन है। भारतीय संस्कृति को मिलीजुली खिचड़ी यानी "कम्पोजिट" बताने का पाप कांग्रेस ने किया है। जम्मू-कश्मीर को संविधान में भारतीय राज्यों से भिन्न "विशिष्ट" लिखवाकर अलगाववाद पालने-पोसने का काम कांग्रेस ने किया है। कांग्रेस दरअसल पार्टी नहीं एक परिवार की "प्रापर्टी" है, नेहरू से पुत्री इन्दिरा गांधी, इन्दिरा गांधी से पुत्र राजीव गांधी, राजीव गांधी से पत्नी सोनिया गांधी और सम्प्रति पुत्र राहुल गांधी के स्वामित्व वाली "प्रापर्टी" ही है कांग्रेस। और "प्रापर्टी" का कोई इतिहास नहीं होता। बेशक वंशों और कुलों का इतिहास होता है। कांग्रेस अपना इतिहास न बताए, पहले पार्टी बने, विचारधारा तय करे तब पार्टी की तरह अपने किये-धरे का बखान करे।

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