एक बड़े से हॉल में देवी देवताओं की मूर्तियों के सामने फ़र्श पर बैठकर 50 से ज़्यादा मर्द, औरतें और बच्चे ढोल मजीरे की धुन पर हिंदी में भजन गा रहे हैं. |
हॉल में धूप-अगरबत्ती की ख़ुशबू फैली हुई है और मूर्तियों के आगे दिए टिमटिमा रहे हैं.
अगर सिर्फ़ आवाज़ें सुनी जाएँ तो लगेगा कि आप उत्तर भारत के किसी मंदिर की पूजा में शामिल हैं. लेकिन आँख खोलकर वहाँ मौजूद भक्तगणों पर नज़र डालें तो चौंके बिना नहीं रह सकते.
ये घाना की राजधानी अकरा के छोर पर ओडोरकोर बस्ती में बना एक हिंदू मंदिर है लेकिन यहाँ पूजा करने आए लोगों में से एक भी भारतीय नहीं है.
संगमरमर के फ़र्श पर बैठकर भजन गा रहे सभी श्रद्धालु अफ़्रीक़ी मूल के हैं. एक भक्त लेबनान का भी है जिसने इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया है. हिंदू भजनों के साथ-साथ यहाँ सिखों के सतनाम वाहेगुरू का उच्चार भी लगातार सुनाई पड़ता है.
सभी का हिंदी उच्चारण इतना स्पष्ट कि ये यक़ीन करना मुश्किल होता है कि भजन गाने वाले हिंदी भाषा का एक शब्द नहीं बोल सकते और न ही समझ सकते हैं. लेकिन धार्मिक विश्वास के कारण उन्होंने तमाम भजन कंठस्थ कर लिए हैं.
एक ओर रखी बड़ी सी कुर्सी पर बैठे हैं भगवा वस्त्र पहने हुए स्वामी घनानंद सरस्वती जिन्होंने 1975 में द हिंदू मॉनेस्ट्री ऑफ़ अफ़्रीक़ा और इस मंदिर की स्थापना की थी.
गाइड
स्वामी घनानंद घाना के ही एक गाँव में पैदा हुए. उनके माता-पिता एक परंपरागत अफ़्रीक़ी धर्म को मानते थे. असली नाम पूछने पर जवाब मिलता है, “मेरा नाम गाइड है. दिशा देने वाला.”
स्वामी घनानंद बताते हैं कि बचपन से ही वो ब्रह्माण्ड के रहस्यों के बारे में सोचते रहते थे. स्कूल में उन्हें ईसाई धर्म की शिक्षा मिली लेकिन उन्हें अपने किसी सवाल का जवाब नहीं मिला.
संयोगवश उन्होंने हिंदू धर्म और दर्शन संबंधी कुछ किताबें पढ़ीं जिसके बाद वो ऋषिकेश की यात्रा पर निकल पड़े जहाँ स्वामी श्रद्धानंद के आश्रम में उन्होंने हिंदू धर्म को समझा.
स्वामी घनानंद कहते हैं, “मेरे गुरू स्वामी श्रद्धानंद ने मुझे घाना लौटने और वहाँ एक मंदिर की स्थापना करने की सलाह दी.”
शुरुआत में उन्हें कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन धीरे धीरे मंदिर में आने वाले स्थानीय लोगों की संख्या बढ़ती चली गई.
स्वामी घनानंद ने बताया कि “अब लगभग दो हज़ार अफ़्रीक़ी मूल के लोग हिंदू धर्म में दीक्षित हुए हैं और इस मंदिर से जुड़े हैं.”
शुरुआत
घाना की कुल आबादी लगभग 22 करोड़ है और यहाँ हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या पंद्रह हज़ार के क़रीब है. इनमें से तीन हज़ार अफ़्रीक़ी मूल के लोग अफ़्रीक़ा हिंदू मठ से जुड़े हुए हैं.
घाना में हिंदू धर्म की शुरुआत 1947 के बाद से हुई जब भारत के विभाजन के बाद सिंधी समुदाय के कुछ लोग यहाँ आकर बसे और उन्होंने राजधानी अंकरा में एक मंदिर की स्थापना की. ये मंदिर आज भी मौजूद है.
घाना में रहने वाले भारतीय मूल के हिंदुओं का अफ़्रीका हिंदू मठ से नज़दीकी संबंध है और वो यहाँ के कार्यक्रमों में लगातार शामिल रहते हैं.
इस मंदिर की अदभुत बात ये है कि यहाँ शिव-पार्वती, गणेश, काली, राम और कृष्ण के साथ-साथ ईसा मसीह की तस्वीर भी रखी हुई है. पूछने पर स्वामी घनानंद इसका दार्शनिक जवाब देते हैं.
उन्होंने कहा, “हिंदू देवी देवताओं के साथ ईसा मसीह और मरियम की तस्वीर रखने में बुराई क्या है? समुद्र में जाओ तो वहाँ रेखाएँ खिंची नहीं मिलतीं. ये इंसानों ने ही बनाए हैं अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर. ठीक वैसे ही ईश्वर एक है पर हम उसे अलग-अलग रूपों में पूजते हैं.”
शाम की आरती का समय हो चला है. कई भजन गाने के बाद अचानक सभी भक्तगण उठ खड़े होते हैं और हॉल में समवेत स्वर गूँज उठते हैं: ओम् जय जगदीश हरे....!
bahut achchi jankari
जवाब देंहटाएंjay sri ram
हिंदू देवी देवताओं के साथ ईसा मसीह और मरियम की तस्वीर रखने में बुराई क्या है?
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