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नया धमाका

11/27/2010

कांग्रेसी नसों में दौड़ता है भ्रष्टाचार

कांग्रेस और भ्रष्टाचार पर्यायवाची हैं। यह कोई नई बात नहीं, बल्कि वर्षों से रही कांग्रेसी संस्कृति से परिपुष्ट तथ्य है। दर्शन, विज्ञान और तत्वज्ञान में विश्वगुरु भारत का आज इस कांग्रेस की वजह से भ्रष्टाचार में भी खासा नाम उछल रहा है। यहां घोटाले दर घोटाले हैं। हर दफा नया घोटाला, पहले से ज्यादा सनसनीखेज, हिंसक और चौंकाऊ। "ट्रांसपेरेन्सी इण्टरनेशनल" ने भ्रष्टाचार के मामले में भारत को 87वां देश बताया है। क्रमांक भ्रष्टाचार की बढ़त का है। राष्ट्रमंडल खेल का भ्रष्टाचार ताजा है, अंतरराष्ट्रीय स्तर का है, देश की राजधानी का है। यहां कांग्रेस रहती है, सोनिया गांधी रहती हैं, प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह रहते हैं। सबकी नाक के नीचे ही नहीं, सबके सामने, सबके साझे हजारों करोड़ का खेल राष्ट्रमंडल खेलों में हो गया। भ्रष्टाचार का धन कांग्रेसजनों का "कामनवेल्थ" (सबका धन) क्यों न हो? दूरसंचार मंत्री ए. राजा के भ्रष्टाचार से देश को 1,76,379 करोड़ रु. का नुकसान हुआ। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ने उन्हें क्यों संरक्षण दिया? देश की सर्वोच्च न्यायपीठ ने सी.बी.आई. को डांटा - "दूरसंचार मंत्री अब तक पद पर क्यों हैं? प्रधानमंत्री तब भी मौन रहे। केन्द्र सरकार ने अदालत में हलफनामा दिया कि इस मामले में राजस्व की कोई हानि नहीं हुई। गौर कीजिए कि अब तो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी उन्हें दोषी ठहराया है।
न खेद, न क्षमायाचना
कांग्रेस ने भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाया है। न खेद, न पश्चाताप, न क्षमायाचना और न लोकलाज। एक प्रख्यात पत्रकार की टिप्पणी है, "चूंकि सरकार राजा के पक्ष में खड़ी रही, इसलिए सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की प्रजा असहाय बनी रही।" महाराष्ट्र के कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने "आदर्श घोटाला" किया। ए. राजा की ही तरह उन्हें भी हटाने का फैसला विपक्ष और मीडिया की भारी पोल-खोल के बाद हुआ। शशि थरूर भी आसानी से कहां हटे। आई.पी.एल. घोटाले में सरकार ने त्वरित कार्रवाई नहीं की। सरकारी घटनाओं में विपक्ष और मीडिया ने शोर मचाया, तभी उन्हें पदमुक्त करने जैसी हल्की-फुल्की कार्रवाई हुई। कांग्रेसी भ्रष्टाचार की कथा अनंत है। भ्रष्टाचार के आरोपी "व्यक्तिगत दोषी" नहीं हैं। भ्रष्टाचार जैसा समाजद्रोह व्यक्तिगत रूप से नहीं बढ़ता। समाज विज्ञानियों के अनुसार, "यह देखा-देखी बढ़ता है।" समाज इनकी निन्दा करता है, राज्यव्यवस्था दण्डित करती है। लोकलाज और राजभय ही भ्रष्टाचार को रोकते आये हैं।
लेकिन भ्रष्टाचार कांग्रेसी सभ्यता और राजनीतिक संस्कृति का अविरल प्रवाह है। कांग्रेस ही भ्रष्टाचार की प्रेरणा है। महात्मा गांधी युगपुरुष थे। वे "सत्याग्रही - सत्य-आग्रही थे। उन्होंने 1934 ई. में एक वक्तव्य में कहा था- "हरिजन" में प्रकाशित मेरे लेखों से यह साफ हो चुका है कि कांग्रेस तेजी से एक भ्रष्ट संगठन बनती जा रही है।" (सम्पूर्ण गांधी वांग्मय, खण्ड 68, पृष्ठ 396) गांधी जी की दृष्टि में कांग्रेस 1934 में ही भ्रष्ट हो रही थी, वह भी धीरे-धीरे नहीं, तेजी से। भारत स्वतंत्र नहीं हुआ था, लेकिन कांग्रेसजनों में पद, प्रतिष्ठा और सत्ता प्राप्ति की होड़ थी। गांधी जी ने इसी होड़ के बारे में कहा, "इसके मूल में झूठा आत्मसंतोष है कि जेल भोग लेने के बाद कांग्रेसियों को आजादी हासिल करने के लिए और कुछ नहीं करना है और कृतज्ञ कांग्रेस संगठन को चीजों और पदों के बंटवारे में उन्हें उच्च प्राथमिकता देकर पुरस्कृत करना चाहिए। इसलिए आज तथाकथित पुरस्कार-पदों को प्राप्त करने के लिए एक अशोभनीय और भौंडी होड़ है।" (सम्पूर्ण गांधी वांग्मय, खण्ड 84, पृष्ठ 413)
गांधी जी ने भारत को भारत की संस्कृति, परम्परा, रीति, नीति और सभ्यता के अनुसार विकसित करने के लिए "हिन्द स्वराज" (1909) लिखा था। लेकिन उनके उत्तराधिकारी नेहरू ने "हिन्द स्वराज" का सांस्कृतिक अधिष्ठान खारिज कर दिया। गांधी जी मर्माहत थे। उन्होंने नेहरू को पत्र लिखा, "पहली बात तो हमारे बीच में जो बड़ा मतभेद हुआ है, उसकी है। अगर ये भेद सचमुच है तो लोगों को भी जानना चाहिए, क्योंकि उनको अंधेरे में रखने से हमारा स्वराज का काम रुकता है। मैंने कहा कि "हिन्द स्वराज" में मैंने लिखा है, उस राज्य पद्धति पर मैं बिल्कुल कायम हूं। यह सिर्फ कहने की बात नहीं है। लेकिन जो चीज मैंने 1909 में लिखी है, मैंने अनुभव से आज तक उसी चीज का सत्य पाया है। आखिर में मैं उसे मानने वाला एक ही रह जाऊं, उसका मुझको जरा भी दुख नहीं होगा।"
नेहरू की छत्रछाया में भ्रष्टाचार
नेहरू अपनी राह चले। रेलवे के कामकाज पर आचार्य कृपलानी की रपट आयी और प्रशासन पर गोरेवाला रपट। भ्रष्टाचार चर्चा में था। बेईमान पूंजीपति-राजनेता का मिलन जारी था। कृपलानी ने रिश्वत को नागरिकता बोध की कमजोरी से जोड़ा। गोरेवाला और कृपलानी की रपटों पर आदर्शमूलक चर्चा थी कि एक प्रायोजित एपलबाई रपट ने भारत सरकार को दुनिया की 10 ईमानदार सरकारों में से एक बता दिया। नेहरू ने इस रपट का प्रचार करवाया। हालांकि 1956 से 1964 के बीच सरकार के निगरानी विभाग ने भ्रष्टाचार के लगभग 80 हजार मामले जांच के लिए गृह मंत्रालय को भेजे थे। जबकि नेहरू की निगाह में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। नेहरू की आंखमूंदू दृष्टि को फिरोज गांधी ने चुनौती दी, मूंदड़ा काण्ड (1957) उठाया। वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी त्यागपत्र को विवश हुए, लेकिन उन्हें फिर से मंत्रिपरिषद में जगह मिली। 216 करोड़ रु. का जीप घोटाला कृष्णा मेनन से जुड़ा। संसद की लोक लेखा समिति की प्रतिकूल टिप्पणियों के बावजूद कृष्णन मेनन को मंत्री पद मिला। कुछ दिन बाद रक्षा विभाग की वापसी भी हो गयी। शिराजुद्दीन मामले (1956) में नेहरू के सहयोगी ऊर्जा मंत्री के.डी. मालवीय आरोपित हुए। धमरतेजा नाम के जहाजरानी उद्योगपति को बिना किसी जांच-पड़ताल ही 20 करोड़ रुपये का कर्ज दिलाने (1960) का आरोप भी नेहरू पर ही लगा।
पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो का भ्रष्टाचार प्रकरण (1964) भी कांग्रेस आलाकमान के गले का फंदा बना। एस.आर. दास जांच आयोग ने आरोप सही पाए। बाबू जगजीवन राम ने लगातार 10 साल तक आयकर अधिकारी को अपनी सम्पत्ति नहीं बताई। वे प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी के निकट थे। बाद में उनकी अपार सम्पत्ति भी राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनी। श्रीमती गांधी के वक्त बहुचर्चित नागरवाला काण्ड हुआ। भारतीय खुफिया विभाग के लिए काम कर चुके नागरवाला को भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य रोकड़िया वेद प्रकाश ने प्रधानमंत्री के "फोन निर्देश" पर 60 लाख रुपये (24 मई, 1971) दिये की बात कही। संसद में हड़कम्प मचा। नागरवाला ने बाद में कहा कि उन्होंने श्रीमती गांधी की आवाज में खुद फोन किया था। नागरवाला पर मुकदमा चला। अदालत ने महज तीन दिन की कार्यवाही में ही उन्हें 4 साल की सजा सुना दी। जेल में नागरवाला ने बयान बदल दिया। उन्होंने नए सिरे से कार्यवाही- सुनवाई की मांग की, लेकिन तभी उनकी मृत्यु (1972) हो गयी। इस पर भी बावेला मचा। इसी बीच नागरवाला काण्ड की जांच करने वाला पुलिस अधिकारी भी एक दुर्घटना में मारा गया।
मर्माहत है भारत
महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ए.आर. अंतुले के मामले (1982) ने भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाने का मार्ग खोला। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह चुरहट लाटरी काण्ड (1982-83) में आरोपित हुए। भ्रष्टाचार की गटर संस्कृति ने प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर ग्राम पंचायत में तैनात सिपाही, ग्रामसेवक और पंचायत सेवक तक अपना जाल फैलाया। फिर बोफर्स काण्ड आया। क्वात्रोकी को सुविधा और संरक्षण देने की बातें ताजी हैं। इसी तरह भोपाल गैस काण्ड के आरोपी को भगाने वाले कांग्रेसजनों की खुली कलई अभी भी राष्ट्रीय चर्चा में है। शेयर घोटाला, चीनी घोटाला, दूरसंचार घोटाला, चारा घोटाला, हवाला और आवास घोटाला, यूरिया घोटाला आदि ने भारत के राष्ट्रजीवन को आंतरिक मर्म तक तोड़ा। प्रधानमंत्री नरसिंहा राव पर लक्खूभाई पाठक काण्ड (1983 व "84), सेण्ट किट्स घोटाला, यूरिया घोटाला और हर्षद मेहता काण्ड छाए रहे। आज भी स्थितियां त्रासद ही हैं। संप्रग सरकार-1 के भ्रष्टाचार के कारण ही महंगाई बढ़ी, संप्रग-2 उसी का विस्तार है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. Shahi hai Kagresh Bhut Bhrst Hai Esme Netao Ko Bina Pesa Khaye To Kam Hi Nahi Kar Sakte Hai

    KAILASH PUROHIT

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  2. hijado ki sarkar hai congress jaha sonia jaisi kutia ke upar chadne se fursat hi nahi hai unhay

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  3. congress is desh ka beda grak karke dam legi, ab samay aa chuka hai yaaro muh tod jawab dene ka nahi to pachhtanne ke siwa kuch nahi bachega

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