राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सहयोगी संगठन गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र द्वारा गाय के मूत्र से बनाई एक कैंसररोधी दवा को अमेरिकी पेटेंट हासिल हुआ है। इस दवा को अपने एंटी-जीनोटॉक्सिटी गुणों के कारण यह पेटेंट मिला है।
"कामधेनु अर्क" नाम की इस दवा को अनुसंधान केंद्र तथा नेशनल एनवायर्नमेंटल इंजीनियर रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) ने मिलकर तैयार किया है। नीरी के एक्टिंग डायरेक्टर तपन चक्रवर्ती और अनुसंधान केंद्र के प्रतिनिधि सुनील मानसिंघका ने बताया कि री-डिस्टिल्ड काउ यूरिन डिस्टिलेट (आरसीयूडी) जैविक तौर पर नुकसानग्रस्त डीएनए को दुरूस्त करने में उपयोगी है। इस नुकसान से कैंसर समेत कई बीमारी हो सकती हैं। उन्होंने बताया कि आरसीयूडी जीनोटॉक्सिटी के खिलाफ काम करता है, जो कोशिका के आनुवांशिक पदार्थ को होने वाली नुकसानदायक क्रिया है। मानसिंघका ने बताया कि इसके लिए तीन मरीजों पर शोध किया गया, जिनमें से दो को गले और गर्भाशय का कैंसर था।
उल्लेखनीय है कि गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र की दवा को तीसरी बार अमेरिकी पेटेंट मिला है। इससे पहले बायो-इनहैंसर विद एंटी- बायोटिक्स तथा एंटी -कैंसर ड्रग्स के लिए पेटेंट मिला था। कई गोशालाएं कामधेनु अर्क बनाकर दवा के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं।
"कामधेनु अर्क" नाम की इस दवा को अनुसंधान केंद्र तथा नेशनल एनवायर्नमेंटल इंजीनियर रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) ने मिलकर तैयार किया है। नीरी के एक्टिंग डायरेक्टर तपन चक्रवर्ती और अनुसंधान केंद्र के प्रतिनिधि सुनील मानसिंघका ने बताया कि री-डिस्टिल्ड काउ यूरिन डिस्टिलेट (आरसीयूडी) जैविक तौर पर नुकसानग्रस्त डीएनए को दुरूस्त करने में उपयोगी है। इस नुकसान से कैंसर समेत कई बीमारी हो सकती हैं। उन्होंने बताया कि आरसीयूडी जीनोटॉक्सिटी के खिलाफ काम करता है, जो कोशिका के आनुवांशिक पदार्थ को होने वाली नुकसानदायक क्रिया है। मानसिंघका ने बताया कि इसके लिए तीन मरीजों पर शोध किया गया, जिनमें से दो को गले और गर्भाशय का कैंसर था।
उल्लेखनीय है कि गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र की दवा को तीसरी बार अमेरिकी पेटेंट मिला है। इससे पहले बायो-इनहैंसर विद एंटी- बायोटिक्स तथा एंटी -कैंसर ड्रग्स के लिए पेटेंट मिला था। कई गोशालाएं कामधेनु अर्क बनाकर दवा के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं।
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