संस्कृत भाषा बेशक आम प्रचलन से हट गई हो लेकिन उड़ीसा के तटवर्ती जिले में एक गांव ऐसा भी है जिसके हर घर में इस प्राचीन भाषा का एक न एक जानकार पंडित मिल जाएगा।
श्यामसुंदर ग्राम पंचायत के ससना गांव में ज्यादातर ब्राह्मण परिवार रहते हैं। गांव में लगभग 32 परिवार हैं जिनमें 200 सदस्य हैं। इन सभी परिवारों की विशेषता यह है कि हर परिवार में एक न एक संस्कृत का विद्वान है। ये यहां चल रहे सरकारी संस्कृत माध्यम के शैक्षिक संस्थानों में शिक्षा देने का काम कर रहे हें।
हाल में संस्कृत अध्यापक के पद से अवकाश ग्रहण करने वाले 76 वर्षीय वैष्णव चरण पति ने कहा कि हमें संस्कृत के संरक्षक होने का गौरव हासिल है। यह प्राचीन भाषा हमारे गांव में पूरी तरह जीवित है। पति ने कहा कि उनके गांव में अगली कई पीढि़यों तक के लिए यह सुनिश्चित कर दिया गया है कि हर परिवार का कम से कम एक बच्चा संस्कृत माध्यम से शिक्षा ग्रहण करेगा।
उन्होंने बताया कि संस्कृत माध्यम से शिक्षा पाने वाले ज्यादातर लोगों को सरकारी स्कूलों में रोजगार मिल जाता है अन्यथा वे पंडित का काम करने लगते हैं और हिंदू परिवारों में होने वाले धार्मिक आयोजन संपन्न कराते हैं।
ऐसे ही एक व्यक्ति हैं पंडित त्रिलोचन सदंगी। उनके दोनों पुत्र और पुत्रियों ने संस्कृत माध्यम से शिक्षा हासिल की है और वे सरकारी स्कूलों में संस्कृत पढ़ा रहे हैं। पति ने बताया कि अपने बच्चों को संस्कृत पढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर हम इस भाषा को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। अभी तक हमें इसमें काफी सफलता मिली है और हमें पूरी उम्मीद है कि हमारी भावी पीढि़यां इस परंपरा को जीवित रखेंगी।
यह गांव बबकारपुर के पड़ोस में है जिसमें अभिज्ञान शाकुंतलम और ऐसे ही अन्य कई महाकाव्यों के लेखक महाकवि कालिदास की स्मृति में एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है। इससे इस क्षेत्र के संस्कृत भाषा के प्रति समर्पण का संकेत मिलता है।
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