26/11 की दूसरी बरसी भी बीत गई। पर अपनी सरकार आज भी वही राग अलाप रही, जो दो साल पहले अलापा था। दोषियों को नहीं बख्शेंगे.. पाक ने गुनहगारों पर ठोस कार्रवाई नहीं की। पर सिर्फ यह कहते-कहते कब तक श्रद्धांजलि देंगे नेता? मुंबई में श्रद्धांजलि के कई कार्यक्रम हुए। अपनी संसद ने भी श्रद्धांजलि की रस्म अदा कर हंगामा शुरू कर दिया। सो 11वें दिन भी संसद नहीं चली।
प्रणव मुखर्जी ने संसद न चलने का ठीकरा विपक्ष के सिर फोड़ दिया। कांग्रेसी खेमे से लगातार यही संदेश देने की कोशिश हो रही। ताकि जनता विपक्ष को संसद के कामकाज में रुकावट का जिम्मेदार माने। पर विपक्ष भी कम नहीं। विपक्ष का मानना यही, अगर संसद भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही, तो कांग्रेस की मंशा ही सवालों के घेरे में होगी। यानी पक्ष-विपक्ष की अपनी-अपनी रणनीति में संसद रण बन गई। शुक्रवार को लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार ने सरकारी पक्ष से बातचीत के बाद आडवाणी-सुषमा को फोन घुमाया। बिहार में नीतिश कुमार के शपथ ग्रहण में गए आडवाणी-सुषमा ने स्पीकर को अपना पुराना स्टैंड दोहरा दिया। स्पीकर ने सरकार की ओर से बहस के प्रस्ताव पर राजी होने की अपील की थी। पर आडवाणी-सुषमा ने जेपीसी के सिवा कोई अन्य प्रस्ताव मानने से इनकार कर दिया। सचमुच भ्रष्टाचार के जितने बड़े खुलासे हो रहे, संसद में बहस का कोई औचित्य नहीं। अगर संसद में बहस हो भी, तो क्या होगा। यही ना, सभी दलों को संख्या बल के आधार पर भाषण देने का टाइम दिया जाएगा। फिर आखिर में संबंधित विभाग के मंत्री अपना जवाब दे देंगे। बस अथ श्री भ्रष्टाचार कथा का शीतकालीन अध्याय खत्म। सो कांग्रेस बिना किसी लोकलाज के खम ठोककर कह रही- सरकार चलाने का जनादेश हमको मिला। सो विपक्ष हमें डिक्टेट न करे। अब कोई पूछे, कांग्रेस को अगर सरकार चलाने का जनादेश मिला, तो क्या विपक्ष का गला घोंट देगी?
कांग्रेस यह भूल रही, किसी देश में लोकतंत्र तभी तक जिंदा, जब तक विपक्ष की अलग हैसियत हो। यह नहीं कि सत्ता के नशे में सत्ताधारी दल विपक्ष की हर आवाज को जनादेश की आड़ में कुचल दे। सो फिर वही सवाल- टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला हो या कॉमनवेल्थ घोटाले या आदर्श सोसायटी के बाद अब फर्जी हाउसिंग लोन घोटाला। अगर कांग्रेस का दामन पाक-साफ, तो किसी भी जांच से परहेज क्यों? कांग्रेस और सरकार की ओर से दलील दी जा रही- जेपीसी बन गई, तो कभी पीएम, तो कभी मंत्री को तलब कर विपक्ष अखबारबाजी करेगा। जिससे सरकार की किरकिरी होगी। पर अगर कांग्रेस एक कदम आगे बढक़र सोचे। तो यह भी संभव, जेपीसी की जांच में कांग्रेस और सरकार के खिलाफ आरोप साबित नहीं हुए। तो अखबारबाजी करने वाले विपक्ष का मुंह कैसा रह जाएगा। पक्ष हो या विपक्ष, अब जनता राजनीति के हर दांव-पेच बखूबी समझने लगी। बिहार का जनादेश इसकी ताजा मिसाल। फिर भी राजनीतिक दल सबक नहीं ले रहे। अलबत्ता सरकार और विपक्ष की जिद में ठप संसद को भी अपनी नैतिक जीत बताने की कोशिश हो रही। बीजेपी ने कर्नाटक में येदुरप्पा को न हटाकर सरकार बचा ली। तो येदुरप्पा ने नैतिकता का ढिंढोरा पीटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पहले तो अपने बेटे-बेटियों को मुख्यमंत्री के सरकारी आवास से बाहर कर दिया। फिर देश भर के अखबारों में बड़े-बड़े इश्तिहार छापकर कर्नाटक में सुशासन का संकल्प जताया। यानी कर्नाटक एपीसोड तो निपट चुका।
फिलहाल संसद में धारावाहिक चल रहा, जो एक-दो ब्रेक के साथ ही खत्म हो जाता। शुक्रवार को तीन ब्रेक लिए। फिर भी संसद नहीं चली। सो अब कांग्रेस ने नैतिकता-नैतिकता खेलना शुरू कर दिया। विपक्ष को कोसने के बाद खुद को नैतिक दिखाने के लिए संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने एलान कर दिया। जब तक संसद में गतिरोध रहेगा, कांग्रेस के सांसद भत्ता नहीं लेंगे। पर माकपाई सीताराम येचुरी बोले- कांग्रेस संसद में कामकाज नहीं चाहती। हम तो यहां काम करने आते हैं। अब किसकी मंशा कैसा, यह आप जानो। पर कांग्रेस की नैतिकता का अंकगणित भी देखते जाओ। स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ पौने दो लाख करोड़ का। यानी हिंदी में एक नील 76 खरब, तो अंग्रेजी में 1.76 ट्रिलियन। अपने देश में अरब-खरब के बाद लोग गिनती भूल जाते। पर यहां घोटाला शंख तक पहुंचने वाला था। अब अगर सिर्फ स्पेक्ट्रम घोटाले से कांग्रेस की नैतिकता को भाग दें। तो 11 दिन में कांग्रेस को लोकसभा के 208 और राज्यसभा के 72 सांसदों के भत्ते मिला दें। तो रोजाना 2000 रुपए के हिसाब से बने कुल 61लाख 60 हजार। यानी एक नील 76 खरब रुपए के घोटाले का महज 0.000035 फीसदी। आम भाषा में समझें, तो एक हजार रुपए के घोटाले में महज 35 पैसे की नैतिकता। इस अंकगणित में कॉमनवेल्थ के 70 हजार करोड़ के घोटाले शामिल नहीं। कांग्रेस भूल गई, तहलका में बंगारू लक्ष्मण ने सिर्फ एक लाख रुपए रिश्वत ली थी, तो कांग्रेस ने सत्रह दिन संसद ठप किया था। पर अबके तो इतना बड़ा घोटाला कि अपना नंबरिंग सिस्टम भी छोटा पड़ रहा। फिर भी कांग्रेस जेपीसी को राजी नहीं। अलबत्ता 35 पैसे की नैतिकता का झंडा फहरा रही। ये तो वही बात हो गई, जैसे भ्रष्टाचार के समंदर से एक बाल्टी नैतिकता का निकालना।
साभार संतोष कुमार
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