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नया धमाका

11/10/2010

देशभक्तों का सपना !

भारत पर 200 साल तक अंग्रेज़ों ने राज किया और इसको आज़ाद करवाने के लिए अनेकों देशभक्तो ने अपनी जान की कुरबानियाँ दी,जिसकी बदौलत आज हम आज़ादी हवा में सांस ले रहे हैं। मगर उन देशभक्तो की अगर बात की जाए तो प्रश्न आता है कि क्या उन देशभक्तो ने आज़ादी के बाद भारत की खुशहाली की जो तस्वीर या सपना देखा था वही तस्वीर और वही सपना क्यां आज हमे दृश्यमान होता नजर आ रहा है ? क्या आज़ादी के इन 61 साल के बाद उनके सजाये सपने आज पूरे हो पाए है ? चलो हम देखें कि भारत के बाद के इन सालों में क्या तस्वीर उभर कर हमारे सामने आइ है... भैया हमने आज़ादी प्राप्त कर तरक्की तो प्राप्त की लेकिन इस तरक्की के साथ ही देश में गरीबी,बेरोजगारी,अशिक्षा,भ्रष्टाचार जैसी कई बुराईयो ने भी जन्म लिया.. जिस के आगे हमारी यह तरक्की तुच्छ नजऱ आती है. दूसरी और इसके अलावा राजनीतिक दलों की बढती संख्या,उनका बढता स्वार्थ और धर्म,जाति,भाषा के नाम पर होने वाली हिंसा ने आज देश को खोखला कर रखा हुआ है। हम खेल की बात करे तो एक अरब की संख्या से ऊपर का देश में यहां पर अच्छे खिलाडियों की कमी नहीं, मगर फिर भी हम ओलंपिक जैसे विश्व महासंग्राम में 28 सालों के बाद अब तक हम एक स्वर्ण पदक जीत पाए है...क्यां हमे इतने में ही संतुष्ट हो जाना चाहिए... क्यां हम सिर्फ एक ही स्वर्ण पदक के हकदार है ? अमरिका और चीन जैसे विकसित देशों की तरह क्या हम भी पूरे विश्व महासंग्राम ओलंपिक में अनेकों सवर्ण पदक जीत कर अपनी धाक नहीं जमा सकते? मगर नेताओं के पास खेलों के लिए समय और पैसा ही कहां है,अभिनव बिंद्रा जैसे अनेकों और बिंद्रा आर्थिक हालत के चलते राष्टीय स्तर तक ही पहुंच पाते है हम यहाँ पर ऐसा भी कह सकते है कि लक्ष्य साधने में हमारे यहाँ अर्जुन ही आगे बढ पाता है जब कि एकलव्य बहुत पीछे छूट जाता है.. क्योंकि उन्हे अपने घर की आर्थिक स्थिति को मद्देनजर रख कर कभी कभी खेल बीच में ही छोडना पडता है... हम अगर देखना चाहे तो हमे ऐसी अनेको मिसाले मिल सकती है.हमारे पास अच्छे कोच के तौर पर गुरु द्रोण भी है मगर हम उनका फायदा नही उठा पाते. इसके अलावा देखें तो यहां लाखों लोगों को दिनभर मजदूरी करने पर भी एक समय का खाना नसीब नही होता वही देश के राजनीतिज्ञ कुर्सी की दौड में इतने खो गए है वह देश की जनता की स्थिति को समजने का प्रयास ही नही कर रहे. कश्मीर के मुदे को लेकर यहां आज तक भारत-पाक हमेशा आपस में झगडते रहें है,वहीं आज कश्मीर में अपने ही देश के लोग आपस में झगड-झगड कर मर रहें है, कश्मीर आग की लपटों में सुलग रहा है मगर राजनीतिज्ञ कश्मीर को अपनी सियासी रोटियां सेकने में लगे हुए है,इतने में ही बस नहीं होती इन नेताओं की कहानियाँ। संसद जैसे पवित्र मंदिर में जब कोई अहम मुदे पर चर्चा चल रही होती है तो यहां कोई विकास के मुदे पर बात न कर के एक पार्टी दूसरी पार्टी पर आरोप लगा कर ही समय निकालते दिखाई पडती है.अभी हाल ही का किस्सा याद करे तो हमारे संसद मे जब भारत के प्रधानमंत्री पर्चा पढने लगे तो सरकार विरोधी तत्वो ने उनके खिलाफ शर्म करो,शर्म करो के नारे लगाने शुरु कर दीए और उन्हे अपना भाषण बीच में ही छोडकर पर्चा स्पीकर को देना पडा। यह सारी कार्यवाही टीवी चैनलों के सामने बैठी लाचार और बेवस जनता देख रही थी तो कुछ ही समय बाद देश के नेताओं ने नोटों के बंडल उछालने शुरु कर दिए और विकास के मुदे धरे के धरे रह गए,टीवी के सामने देश के नागरिक आपने आप को कोसते हुए नजऱ आ रहे थे और शायद हर कोई यही सोच रहा था कि हमने इन नेताओं को चुन के संसद में भेजा है, जिन्हे देश की मर्यादा की फिकर नही हैं,वो हमारी मुश्किलों का क्या हल निकालेंगे। इस कारवाई से भारत को विश्वभर में शर्मसार होना पडा, इतना शर्मसार तो भारत को तब नहीं होना पड़ा था जब भारत की संसद पर आंतकवादीयों ने हमला किया था। क्या भारत को आज़ाद करवाने वाले देशभक्तों ने अपने आज़ाद भारत का यही सपना आंखों में संजोया था या फिर आतंकवाद के साए से दो चार हो रहे,जगह-जगह पटाखों की तरह बम फोड़े जाने वाले और नौज़वानों को नशे की दलदल में धसे होने का सपना देखा था उन्होंने ? मैं बताना चाहूंगा कि नहीं उन्होंने ये सपने नहीं देखे थे,उन्होंने सपना देखा था,भारत की खुशहाली का,उन्होंने सपना देखा था हर नौज़वान में देश को तरक्की पर ले जाने के जूनन का,उन्होंने सपना भारत में शांति का और उन्होंने सपना देखा था हर नेता के पाक होने का मगर आज 6 दशकों के बाद भी भारत कहां खड़ा है,यह तो हम देख ही रहे है? नहीं,अभी तक हम उन देशभक्तो के सपने पूरे नहीं कर पाए है, हमें जरुरत है आज एक साथ मिलकर एक संकल्प करने की ''चलो हम उनके सपनो को हकीकत में साकार करे'' क्योंकि इसी प्रकार ही हम उनके बलिदान को अपनी सच्ची श्रद्धाजंलि दे पाएंगे.. चलो हम संकल्प करे...चलो हम आगे बढे...एक साथ हम कहे- भारत माता की जय.....।

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