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नया धमाका

11/24/2010

वैज्ञानिकों की चेतावनी - जैविक खेती ही धरती को बचा सकती है!

पृथ्वी की ऊपरी परत खराब हो रही है क्योंकि किसान अधिक से अधिक रासायनिक खादों का प्रयोग कर रहे हैं। समय-समय पर हमारे विशेषज्ञ ऐसी चेतावनी देते रहे हैं कि वास्तव में धरती को पौष्टिक जैविक इत्यादि खाद चाहिए जिससे उसकी गुणवत्ता बनी रहे। इस चेतावनी का व्यापक असर तो नहीं हुआ। परन्तु जिन किसानों ने जैविक खाद से खेती की, उनको तीन प्रकार के लाभ हुए-एक तो उनकी धरती की पौष्टिकता बनी रही, उपज अधिक हुई और उनको उपज के दाम भी अधिक मिले। उपभोक्ता भी यही चाहता है कि वह स्वच्छ चीजें खाये और यह स्वच्छता उसको रासायनिक खादों से उगने वाले अनाज, फल और सब्जियों से प्राप्त नहीं होती। भारत के किसान इस यथार्थ से कब तक अनजान रहेंगे, यह कहा नहीं जा सकता, परन्तु विश्व के जाने-माने वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि धरती की ऊपरी परत का इसी प्रकार दोहन किया गया तो केवल 60 वर्ष में धरती की उपज के पूरी तरह समाप्त होने के संकेत मिल रहे हैं। उपजाऊ क्षमता बनी नहीं रह सकती जब तक उसमें ऐसे पदार्थ न डाले जाएं, जो धरती की कुदरती खुराक हैं, जैसे-गोबर और गोमूत्र और इन से बनी जैविक खाद।
वैज्ञानिकों की विशेष बैठक आस्ट्रेलिया में भू विशेषज्ञों की एक बैठक हुई थी। हर एक वैज्ञानिक ने चिन्ता प्रकट की कि विश्व में अनाज की उपज में कमी का कारण है कि धरती की ऊपरी परत का कमजोर होना, विश्व की बढ़ती आबादी और उस आबादी द्वारा खाने-पीने की वस्तुओं की तीव्र गति से दोहन के कारण धरती की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है। वैज्ञानिकों का कहना था कि अनुमान के अनुसार 75 अरब टन धरती हर वर्ष बेकार हो रही है। इसके कारण 80 प्रतिशत दुनिया की खेती की जमीन की उपजाऊ शक्ति पर असर पड़ा है। ऐसे आंकड़ों पर विश्वास न करना अपने आप को धोखा देना है।
सिडनी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक व्यापक खोज की जिसके अनुसार चीन की धरती कुदरती खाद के अभाव के कारण सबसे अधिक खराब हो रही है। ऐसे ही भारत भी इसी राह पर जा रहा है। हालांकि चीन के मुकाबले भारत की स्थिति थोड़ी ठीक है। यूरोपीय देशों में धरती की खराबी चीन के मुकाबले एक तिहाई है, क्योंकि वहां रासायनिक खादों का उपयोग बहुत कम हो रहा है। अमरीका में उससे कम और आस्ट्रेलिया में सबसे कम।
अगर किसान रासायनिक खाद का इसी प्रकार प्रयोग करते रहे तो 60 साल बाद अनाज की बड़ी कमी हो सकती है। भुखमरी से हा- हा-कार मच सकता है। यूरोप के देश, जो इस समय यूरिया आदि का बहुत कम प्रयोग कर रहे हैं, उनकी धरती सम्भवतरू आज से 100 वर्ष तक उपजाऊ रहे। सिडनी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जौन कराफोल्ड, जो धरती की उपज क्षमता बनाये रखने के विशेषज्ञ हैं, ने चेतावनी दी है कि मनुष्य मात्र को और विशेषकर किसानों को जागरूक होकर इस समस्या का हल करना होगा।
विश्व की वर्तमान जनसंख्या 6.8 अरब है। यह 2050 तक 9 अरब हो जाएगी। इसलिए धरती की अनुत्पादकता से मनुष्य जाति को और भी अधिक खतरा है-अधिक जनसंख्या और गिरती उपज।
जैविक खेती ही एकमात्र हल
इसका एकमात्र हल यह है कि भारत की परम्परागत धरती पोषण की नीति को अपनाकर गोबर, गोमूत्र और पत्तों की पौष्टिक खाद का प्रयोग हो। पिछले कुछ ही दशकों में रासायनिक खाद का प्रचार प्रसार किया गया और इसका आयात अंधाधुंध ढंग से हुआ। गोबर इत्यादि की खाद से किसान युगों-युगों से अपनी धरती की उपज बढ़ा रहे हैं। इसका व्यापक असर तब हो अगर सरकार हानिकारक रासायनिक खाद का आयात बन्द कर दे और किसानों को देशी खाद से खेती करने को प्रोत्साहित करे। ऐसा न करने से भारत की खेती का वही हाल होगा, जो चीन की खेती का हो रहा है। जैविक खेती करने के लिए किसान को गायों का पालन करना होगा, ताकि गोबर और गोमूत्र की प्राप्ति हो सके और इनसे जैविक खाद बने।

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