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नया धमाका

11/24/2010

अमरीका में प्रकाशित कूड़ा कचरा साहित्य

अमरीका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने नवम्बर 2009 में विस्कोनसीन के दौरे में एक स्थान पर यह स्वीकार किया कि अमरीकी छात्र बीजिंग, चीन, तथा बेगलूरू (भारत) से गणित तथा विज्ञान में बहुत पीछे हैं। उनमें प्रतियोगिता की भावना जाग्रत करने के लिए उन्होंने चार अरब डालर खर्च करने की स्वीकृति भी दी। परंतु संभवतः उन्हें यह ज्ञान नहीं है कि अमरीका के छात्र ही नहीं, अमरीकी विद्वान भी इतिहास तथा धर्मशास्त्र के ज्ञान में अभी बहुत पीछे हैं। अमरीका में पिछले वर्षों में ऐसे अनेक ग्रंथों, विशेषकर धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है जो न तो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित हैं और न ही धार्मिक आस्थाओं, मान्यताओं की समुचित तथा प्रामाणिक जानकारी देते हैं। हां, लेखकों की अल्पबुद्धि तथा अधूरे ज्ञान का परिचय अवश्य देते हैं। हाल ही में इसी प्रकार की एक पुस्तक एक अमरीकी महिला बेंडी डोनिगर द्वारा लिखी गयी। द हिन्दुत्व एन आल्टरनेटिव हिस्ट्री की लेखिका एक अमरीकी विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्र की प्रोफेसर है तथा अपने को प्राच्यवादी बतलाती है। गहराई से अध्ययन करने पर किसी को भी स्पष्ट हो जाएगा कि यह ग्रंथ न हिन्दुत्व पर है और न ही कोई इतिहास की रचना है। यह ग्रंथ मूलत: ईसाई मान्यताओं को मजबूती प्रदान करने और हिन्दुत्व को बदनाम करने का प्रयास मात्र है। भारतीय इतिहास का प्रत्येक छात्र जानता है कि इवेनजिलिकल ने भारतीयों को ईसाई बनाने के लिए भरसक प्रयत्न किए। चार्ल्स ग्रांट तथा विलियम विल्वर फोर्स ने हिन्दुओं को जी भरकर गालियां दीं। साम्राज्यवादी ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स मिल ने हिन्दुओं के लिए केवल एक ही शब्द घृणा कहा था। मैकाले के लिए संस्कृत एवं अरबी की प्रत्येक पुस्तक के लिए भी एक ही शब्द था. बेहूदा या भद्दा। इसी भांति बेंडी डोनिगर हिन्दूए हिन्दुओं के देवी देवताओं या हिन्दू ग्रंथों में एक ही वस्तु के दर्शन करती है. वह है कामुकता। पुस्तक पढक़र स्पष्ट होता है कि लेखिका हिन्दुओं के संदर्भ में पूर्वाग्रहों तथा घटिया मानसिकता से ग्रसित है। डोनिगर के अनुसार हिन्दू देवी.देवता कामुकता के शिकार हैं। शिवलिंग का वर्णन व्यावहारिक रूप से कामुकतापूर्ण है। उसने लिखा है कि चंडिका ने शुम्भ को यौनोन्माद में मार डाला  इसी भांति यमी अपने भाई यम के साथ यौनाचार का एक असफल प्रयत्न करती है । इसी भांति डोनिगर ने सम्पूर्ण भारत के करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के आधार रामायण को एक काल्पनिक ग्रंथ तथा उपन्यास माना है। परंतु इसमें भी सीता व लक्ष्मण के बीच कामुकता के संबंध बताने का प्रयास किया है  इतना ही नहीं, राम को सीता से पूछते हुए दिखाया गया है कि क्या तुम्हारा लक्ष्मण से प्रेम है जबकि बाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई प्रसंग है ही नहीं जिसको उसने उद्धरित किया। इसी भांति महाभारत को भी एक उपन्यास बतलाते हुए उसने पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर भगवान कृष्ण को निर्वस्त्र स्त्रियों से घिरे हुए दिखाया है। वह यह भी लिखती है कि सूर्य ने कुंती से बलात्कार किया
सामान्यतः बेंडी डोनिगर ने जानबूझकर उन्हीं विषयों पर चोट की है जो हिन्दुओं के आस्था बिन्दु हैं। उदाहरणत: उसने स्थान.स्थान पर गोमांस की चर्चा की है। स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण की चर्चा करते हुए उसने लिखा कि स्वामी विवेकानंद ने श्रोताओं से गोमांस खाने का आग्रह किया । इतना ही नहीं भाषण के पश्चात उन्होंने अपनी पहली इच्छा गोमांस खाने की बताई । साथ ही गोमांस के बारे में गांधी जी के विचार भी ढुलमुल बताए । इसी भांति वह हिन्दुओं में पूजा  तथा बलि प्रथा को बड़े वीभत्स ढंग से प्रस्तुत करती है। उसे आज भी किसी शुभ कार्य में नारियल तोडऩे की प्रकिया में ;नारियल को एक मानव सिर के समान बलि प्रथा का ही स्वरूप दिखता है । इसमें संदेह नहीं है कि बेंडी डोनिगर ने अपनी इच्छानुसार मध्यकाल तथा वर्तमान इतिहास का विवेचन मनमाने ढंग से किया है। इसमें न तो ऐतिहासिक कालक्रम है और न ही विषय प्रासंगिकता के अनुकूल है। उदाहरणत: वह मुगल शासकों तथा गुरूओं के इतिहास की सामान्य जानकारी को भी गलत ढंग से प्रस्तुत करती है। वह सम्राट अकबर को 1586 ई. में फतेहपुर सीकरी छोडक़र दिल्ली राजधानी जाने का वर्णन करती हैए जो वस्तुतः आगरा थी। वह गुरू गोविंद सिंह की हत्या 1708 में औरंगजेब के काल में बतलाती है जबकि औरंगजेब 1707 ई. में मर चुका था। इसी भांति वह औरंगजेब के पश्चात मुगल शासक जहानदार शाह को बतलाती है जबकि वह बहादुरशाह प्रथम था। आधुनिक काल के वर्णन में उसने जो भी दो.चार प्रसंग दिये हैंए वे तथ्यहीन हैं। वह 1857 के संघर्ष को विकृत ढंग से बतलाती है। उसके अनुसार 1857 के विद्रोह का संभावित कारण केवल कारतूसों की खोलने की प्रक्रिया मात्र था । वह मेरठ के 85 सिपाहियों की गिरफ्तारी 9 मई 1857 को बतलाती है जो वस्तुत: 24 अप्रैलए 1857 होनी चाहिए । वह अंग्रेजों द्वारा नरसंहार की चर्चा न करके केवल कुछ मिशनरियों की हत्याओं का जिक्र बतलाती है । वह झांसी की रानी लक्ष्मी बाई जैसी वीरांगना को अंग्रेजों के प्रति राजभक्त बतलाती है । मंगल पांडे को कदाचित अफीम, भांग या शराब के नशे में बतलाती है । बेंडी डोनिगर ने न केवल 1857 के महान संघर्षकर्त्ताओं का चरित्र हनन करने का प्रयास किया बल्कि आधुनिक काल में गांधी जी जैसी सामाजिक विभूति को भी नहीं छोड़ा। वह लिखती है गांधी जी विचित्र व्यक्ति थेए उन्हें युवा लड़कियों के साथ सोने की आदत थी । वह लिखती है कि गांधी जी ने गीता पर टीका लिखी जिसका नाम आसक्ति योग है। वस्तुतः पुस्तक का नाम अनासक्ति योग है। उसके अनुसार गांधी जी द्वारा गोरक्षा के आह्वान के कारण उनका आंदोलन असफल हुआ, जो बड़े स्तर पर मुसलमानों को आकर्षित न कर सका । इसी भांति उसने श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरुजी को भी अपनी पुस्तक के अंतिम अध्याय में एक किताब अवर नेशनहुड डीफाइंड में उनका नाम देकर उद्धरित किया। संभवत: लेखक को अनुवादक तथा मूल लेखक में कोई अंतर नहीं पता है। मूल पुस्तक के लेखक श्री बालाराव सावरकर हैं जिन्होंने यह पुस्तक मराठी में लिखी। गोलवलकर जी इसके अनुवादक हैं, लेखक नहीं। यह आवश्यक नहीं होता कि अनुवादक मूल लेखक के विचारों से सहमत हो। अनुवादक को उस पुस्तक का मूल लेखक मानना अनुचित है। लेखिका ने इसी भांति कुछ ऐसे मनगढ़ंत तथ्य दिये हैं जो भारत का कोई भी दसवीं कक्षा का छात्र आसानी से नकार सकता है। उदाहरण के लिए वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भारतीय जनता पार्टी की एक सैनिक शाखा मानती है जबकि सब जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में हुई तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 ई. में हुई थी। निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि कोई भी लेखकध्लेखिका उपरोक्त प्रकार की घिनौनी रचनाओं से मन की भड़ास निकाल सकता है परंतु विश्व को उच्चकोटि का साहित्य नहीं दे सकता।

2 टिप्‍पणियां:

  1. दो सौ साल से अधिक समय से हम भारतीय मैकाले द्वारा थोपी गई शिक्षा के कारण स्वाभिमान शून्य की स्थिति में आ गए है। अब अमेरिका के सड़क छाप लेखक हमारे बारे में उल्टा-सीधा छाप कर क्या साबित करना चाहते है। क्या हमें भी अमेरिका के बारें में एक किताब लिखकर बताना होगा कि जिस समय अमेरिका में लोग नंगे रहा करते थे उस समय भारत में वेद मंत्रों की त्रचाएं गूंजा करती थी।

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