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नया धमाका

11/20/2010

हिन्दु विरोधी कुप्रचार कब बन्द होगा?

सी.बी.आई. द्वारा शुक्रवार को स्वामी असीमानंद को गिरफतार कर लिया गया। आरोप है कि स्वामी असीमानंद का मालेगांव, अजमेर, हैदराबाद के बम धमाकों में हाथ है। यही नहीं उसे इन धमाकों का मास्टर माइंड भी बताया जा रहा है। मजेदार बात यह है कि बम धमाकों के सन्दर्भ में कोर्ट में पेश चार्जशीट में स्वामी असीमानंद का कही कोई जिक्र नहीं है। इस सम्बंध में समाचार पत्रों में निम्न प्रकार से समाचार प्रकाशित हुआ है:-
मक्का मस्जिद विस्फोट का आरोपी अदालत में पेश होगा
हैदराबाद। मक्का मस्जिद विस्फोट मामले के प्रमुख आरोपी को शनिवार को हैदराबाद की एक अदालत में पेश किया जाएगा। इसके एक दिन पहले उसे हरिद्वार में गिरफ्तार किया गया था और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) उसे लेकर यहां पहुंचा है। जतिन मुखर्जी उर्फ स्वामी असीमानंद 2007 में यहां की ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में हुए विस्फोट के मामले में कथित रूप से शामिल रहा है।
सीबीआई ने हरिद्वार में 59 वर्षीय स्वामी को गिरफ्तार किया और दिल्ली की एक अदालत में उसे पेश किया। अदालत ने स्वामी को दो दिनों के लिए सीबीआई की हिरासत में दे दिया। अदालत ने सीबीआई की वह याचिका भी स्वीकार कर ली, जिसमें उसने स्वामी को हैदराबाद की एक अदालत में रविवार तक पेश करने की मांग की थी। स्वामी को चरमपंथी संगठन, अभिनव भारत का विचारक माना जाता है। यह संगठन मालेगांव व अजमेर विस्फोटों में लिप्त रहा है। स्वामी को शनिवार त़डके हैदराबाद लाया गया।
सीबीआई सूत्रों ने कहा कि स्वामी को शनिवार को एक अदालत में पेश किया जाएगा। छा वेश धारी स्वामी, स्वामी ओंकारनाथ और नब कुमार सरकार के नाम से भी जाना जाता है। वह हरिद्वार के पास छा नाम से रह रहा था और उसने पहचान सम्बंधी फर्जी दस्तावेज भी हासिल कर लिया था। सीबीआई ने उसके पास से आरपीओ कोलकाता द्वारा जारी एक पासपोर्ट, और हरिद्वार प्रशासन द्वारा जारी एक राशन कार्ड व एक मतदाता पहचान पत्र बरामद किया है। मक्का मस्जिद में 18 मई, 2007 को जुमे की नमाज के दौरान हुए विस्फोट में नौ लोग मारे गए थे। विस्फोट के बाद हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में पांच और लोगों की मौत हो गई थी।
स्वामी का नाम मालेगांव विस्फोट की जांच के दौरान उस समय सामने आया, जब महाराष्ट्र पुलिस ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के पास से स्वामी के ड्राइवर का फोन नंबर बरामद किया। प्रज्ञा ठाकुर मालेगांव विस्फोट मामले में आरोपी है। वनस्पति विज्ञान में परास्त्रातक की उपाधि धारी और पश्चिम बंगाल में हुगली का निवासी स्वामी 1990 के दशक में गुजरात चला गया था। सीबीआई, राष्ट्रीय जांच एजेंसी और राजस्थान आतंक निरोधी दस्ता के लोग, मक्का मस्जिद विस्फोट, मालेगांव विस्फोट और अजमेर विस्फोट के मामलों में स्वामी से पूछताछ कर सकते हैं।
इस कार्यवाही से केन्द्र सरकार व कांग्रेस पार्टी को फिर से हिन्दु समुदाय के विरूद्ध दुष्प्रचार करने का मौका मिल गया है। सोनिया गांधी का सर्वश्रेष्ठ चमचा बनने की चाह में अब कांग्रेसी हिन्दुत्व के विरूद्ध खुलकर बयान बाजी कर सकते है। हिन्दु आतंकवाद, भगवा आतंकवाद, संघ और सिमी एक समान जैसे जुमले एक बार फिर सुनने के लिए हिन्दु समाज को तैयार रहना चाहिए।
क्या हिन्दु वास्तव में आतंकवादी है, सरकार प्रचार तंत्र द्वारा थोपे गए इस शब्द के बारें में आईये थोड़ा विचार करें:---वस्तुतः हिन्दू कभी भी आतंकवादी नहीं हो सकता क्योंकि जिस हिन्दू दर्शन में प्रकृति की पूजा करना, चींटी को आटा खिलाना और नाग को भी दूध पिलाना शामिल है वहां पर पला और बढ़ा कोई व्यक्ति क्या इस आतंकवाद की राह पर जा सकता है? भारत में जब कभी तुष्टीकरण के खिलाफ कोई आवाज उठती है तो उसे साम्प्रदायिक कहा जाता है, जब कभी देश के गौरवशाली संघर्ष पूर्ण इतिहास को याद दिलाने का प्रयास किया जाता है तो उसे भगवाकरण करने की साजिश बताया जाता है, आतंकवाद के मुद्दे पर जब देश को जाग्रत करने का अभियान चलाया जाता है तो हिन्दू आतंकवाद के नाम पर नयी पैंतरेबाजी शुरू हो जाती है। आपको ध्यान रहे कि नये-नये शिगूफे छोडऩे में माहिर ये वही लोग हैं जो इस देश के इतिहास में गुरु तेग बहादुर और चन्द्रशेखर आजाद को भी आतंकवादी पढ़ाये जाने वाले पाठयक्रम की वकालत करते हैं, इनको रात-दिन केवल एक ही खतरा सताता रहता है कि कहीं यह देश आत्म विस्मृति से जागकर खड़ा हो गया तो इनकी दुकान में ताला लग जायेगा। वस्तुतरू आज कल हिन्दू आतंकवाद वास्तविकता पर पर्दा डालने वाली शक्तियों के द्वारा हिन्दुत्व प्रेमियों के लिए एक विशेष गाली के रूप में प्रयोग किया गया एक नया ब्राण्ड है। वैसे भी राजनीति में हर आम चुनाव आते ही कुछ लोगों और दलों को विशेष प्रकार के नवीन ब्राण्ड की खास जरूरत होती है। कभी गरीबी हटाओ का नारा दिया गया, कभी राष्ट्र की एकता अखण्डता का नारा दिया गया, कभी साम्प्रदायिक ताकतों को मिटाने का नारा दिया गया। इसमें से कौन से नारे के अनुरूप आचरण किया गया तथा देश का कितना भला हुआ यह तो इतिहास के पन्ने ही जानते हैं, फिर इस नये ब्राण्ड से देश का कौन सा भला होगा यह तो समय बतायेगा। आम चुनाव के पहले अपनी-अपनी पीठ थपथपाने वालों को ध्यान रखना चाहिए कि कहीं वास्तविक अपराधी न छूट जाए और हम अपनी खुन्नस ही निकालते रहें। वैसे तो न्याय का एक नैसर्गिक नियम है कि एक भी निर्दाेष को सजा नहीं मिलनी चाहिए भले ही अपराधी क्यों न छूट जाए। सरकारों के तीन ही मुख्य काम है कानून बनाना, कानून का पालन कराना और न्याय दिलाना। देश की जनता हर आम चुनाव में इन तीनों बातों का आकलन जरूर करती है, न्याय और अन्याय की भाषा को समझती है, धर्म और अधर्म की राह पर चलने वालों को पहचानती है तथा अत्याचारी और विद्वेष पूर्ण ही नहीं मनगढ़ंत प्रलापों को भी बखूबी समझती है। वैसे तो हिन्दुत्व पर आक्रमण कोई नयी बात नहीं है। चूंकि हिन्दुत्व ही भारत की पहचान है इसीलिये सन् ६३७ में पहला जेहादी हमला भारत पर हुआ तथा ५७० साल के संघर्ष के बाद सन् १२०७ में दिल्ली में मुगल सत्ता स्थापित हो गयी किन्तु ५०० साल भी टिक नहीं पायी। फिर भी न जाने कितने मंदिर टूटे, पृथ्वीराज चौहान की आंखे निकाल ली गयी, भाई मतिदास का सिर आरे से चिरवाया गया, भाई सतीदास के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये, भाई दयालदास को खौलते तेल की कढ़ाई में डाल दिया गया, गुरू तेगबहादुर का सिर कलम कर दिया गया, गुरुपुत्रों को जिन्दा दीवालों में चुनवाया गया, वीर हकीकत राय का बलिदान हुआ, बन्दा बैरागी की बोटी-बोटी नुचवायी गयी लेकिन जेहाद हारा और भारत विजयी हुआ। भारत में अगर हिन्दुत्व को अपमानित करने के प्रयास होते हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होता है। कश्मीर से तीन लाख हिन्दू निकाले जाते हैं और देश के कुछ नेता कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं समझते। दुनिया में बसे हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों के विरोध में बोलने के लिये जिनके पास दो शब्द भी नहीं है, उन्हें अरब देशों पर बहुत चिंता होने लगती है। उन्हीं को हिन्दू आंतकवाद भी जहरीले नाग की तरह दिखता है और पुलिस द्वारा जब आजमगढ़ के किसी आतंकवादी को पकड़ा जाता है तो वे गहरा दुरूख व्यक्त करते हैं। दूसरी ओर वहीं पर इक-ा होकर कुछ तथाकथित देशभक्त आधुनिक भारत में 565 रियासतों के एकीकरण के अग्रदूत लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को आतंकवादी कहने की हिम्मत जुटा लेते हैं और वही नेता सुनते रहते हैं, एक शब्द भी बोलने की आवश्यकता नहीं समझते। ऐसे ही लोग जामिया नगर मुठभेड़ में शहीद पुलिस अधिकारी की वर्दी पर कीचड़ उछालने से नहीं हिचकते। यह एक गहन विचार का प्रश्न है। दुनिया के देशों में भारत ही आतंकवाद के दंश को झेलने वाला प्रमुख देश है। हमारा दुर्भाग्य है कि इस देश के प्रधानमंत्री केन्द्र सरकार के समर्थक या विरोधी के आधार पर अपनी जुबान खोलते हैं, न कि देश की इज्जत बचाने के लिये। 22 नवम्बर 2008 को राज्य पुलिस प्रमुखों की बैठक में बोलते हुये उन्होंने कहा कि देश के लिये वामपंथी आतंकवाद यानी नक्सलवाद सबसे बड़ी समस्या है। यह सत्य उनके मुंह से तब निकला जब वामपंथी परमाणु करार के कारण उनकी सरकार से अलग हो गये। जब पश्चिम बंगाल के चुनाव आये तो प्रधानमंत्री जी को समझ में आया कि वामपंथी हमारे वहां पर दुश्मन हैं, चार साल तक गलबहियां डालने से पहले देश के हित में अगर विचार किया होता तो वामपंथी और मुस्लिम लीग केन्द्रीय सत्ता का हिस्सा कभी भी नहीं बन सकते थे और न ही प्रख्यात योग गुरु रामदेव के बारे में अनर्गल आरोप वामपंथी वृंदा करात के मुंह से निकल पाते। वास्तव में इस देश को हिन्दू आतंकवाद से नहीं, खतरा तो उन शक्तियों से है जो कभी मानवाधिकारवादी चोला पहनकर, कभी लेखक या पत्रकार बनकर, कभी धर्मनिरपेक्ष नेता बनने का बहाना बनाकर देश विरोधी तत्वों की पैरवी करते हैं। चंद वोटों का लालच या चंद नोटों की चाहत उनकी कार्यशैली का हिस्सा बन चुकी है। देश में संसाधनों पर पहला हक किसी गरीब का नहीं, मुसलमानों का है, देश के मुखिया के मुंह से यह शब्दावली उसी कार्यशैली का हिस्सा है। इस देश में दीपावली के ठीक एक दिन पहले शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती को गिरफ्तार किया जा सकता है लेकिन न्यायालय की अवमानना करने पर इमाम बुखारी को चेतावनी भी नहीं दी जा सकती। संत आशाराम बापू के अपमान का कुचक्र रचा जा सकता है लेकिन होली के एक दिन पूर्व कोयम्बटूर बम विस्फोट में ५८ निर्दाेषों की हत्या के मुख्य आरोपी अब्दुल नसीर मदनी को बाइज्जत रिहा कर दिया जाता है। संसद हमले के आरोप में न्यायालय से सजा प्राप्त अफजल को फांसी से बचाने के प्रयास करने वाले लोग अमरनाथ श्राइन बोर्ड को किराये पर दी गयी भूमि हड़प सकते हैं, वीर सावरकर की सम्मान पट्टिका को उखाड़ देते हैं, आतंकवादियों की पैरवी करने की घोषणा करने वाले जामिया विश्वविद्यालय के कुलपति के विरुध्द एक भी शब्द न बोलने की हिम्मत जुटा सकने वाले लोग दीपावली के दिन भी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का खाना छीन सकते हैं। कितना आश्चर्य होता है कि इन्हीं के एक मित्र और सरकार के सहयोगी राजठाकरे सौ खून माफी का पुरस्कार महाराष्ट्र सरकार से प्राप्त करके नफरत के बीज बो रहे हैं, वह भी इन्हें दिखायी नहीं देता। इन्हें न तो असम के विस्फोट दिखते है और न ही बांग्लादेशी घुसपैठिये। इन्हें महाराष्ट्र में मालेगांव विस्फोट को आरोपियों पर मकोका की आवश्यकता दिखायी देती है लेकिन उत्तर प्रदेश में उप्रकोका तथा गुजरात में गुजकोका की आवश्यकता नहीं दिखायी देती। गृहमंत्री को पोटा जैसा कानून पसंद नहीं, ऐसा बयान जारी होता है। पसंद है हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों पर किसी भी तरह का लांछन या आरोप। इसी आरोप के तहत गांधी हत्या में संघ का नाम घसीटा था। इसी तरह देश में आपात स्थिति और 1975 में संघ पर प्रतिबंध लगाया गया था। लेकिन जिन संगठनों पर ब्रिटेन सरकार और बीबीसी रेडियो तक कोई सन्देह नहीं कर सकता उन्हें कटघरे में खड़ा न करने वाले इस देश को कौन सा संदेश देना चाहते हैं? विदेशी पैसे के बल पर चलने वाले कुछ इलेक्ट्रानिक चौनलों और समाचार पत्रों को उड़ीसा दिखाई देता है लेकिन संत लक्ष्मणानन्द सरस्वती को छोडक़र। गुजरात भी दिखाई देता है लेकिन गोधरा को छोडक़र। देश भी दिखाई देता है लेकिन हिन्दुओं को छोडक़र। अब तो देश की जनता को सोचना ही पड़ेगा। महात्मा गांधी ने कहा था कि असत्य, अन्याय और दमन के सामने झुकना कायरता है तथा अपराध करने वाले के साथ ही अपराध और अन्याय सहने वाला भी उसी पाप का भागी है। आज की आवश्यकता है कि सभी हिन्दुओं को संगठित होकर स्वधर्म रक्षा का नारा बुलन्द करना ही पड़ेगा नही तो सोनिया छाप कांग्रेसी धर्मनिरपेक्षता हिन्दु समाज का भक्षण कर लेगी।

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