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नया धमाका

11/24/2010

कश्मीर समस्या का एक ही समाधान -- 370 हटे, कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हो


- कांग्रेस द्वारा अलगाववादियों के आगे घुटने टेकने की शर्मनाक तैयारी।
- विशेष दर्जा समाप्त करके जम्मू-कश्मीर को देश के शेष प्रांतों के समकक्ष लाना ही समस्या का एकमात्र समाधान।

जम्मू-कश्मीर की वर्तमान त्रासदी के लिए जिम्मेदार कांग्रेस की देशघातक नीतियों का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने प्रारंभ से ही डटकर विरोध किया है। राष्ट्रीय अखंडता के लिए चलाए गए प्रजा परिषद आंदोलन से लेकर राष्ट्रीय अस्मिता के लिए हुए श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन तक संघ ने सफलतापूर्वक, संघर्षशील हिन्दू समाज का नेतृत्व किया है। सैकड़ों स्वयंसेवकों ने अपने बलिदान देकर जम्मू-कश्मीर में भारत को बचाने का निरंतर और अटूट प्रयास किया है। संघ का यह प्रयास और संघर्ष तब तक चलता रहेगा, जब तक जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा, पृथक संविधान और अपना झंडा जैसे अलगाववादी चिन्ह समाप्त नहीं हो जाते।
राष्ट्रीय सोच का अभाव राष्ट्रवादी शक्तियों द्वारा किए गए प्रबल संघर्षों के बावजूद जम्मू-कश्मीर में भारत विरोधियों, कट्टरवादी संगठनों और हिंसक आतंकवादियों का वर्चस्व बना रहना कांग्रेस सरकारों की फिरकापरस्त और तुष्टीकरण पर आधारित राजनीति का ही परिणाम है। इन्हीं ढुलमुल और अवसरवादी नीतियों की वजह से आज तक कश्मीर की गुत्थी सुलझ नहीं सकी। देश विभाजन के साथ ही प्रारंभ हुईं जम्मू-कश्मीर की अनेक समस्याएं लगातार गहराती जा रही हैं। इस सीमावर्ती प्रांत का पृथक राजनीतिक अस्तित्व, भारतीय संविधान के अस्थाई अनुच्छेद 370 के औचित्य पर लगा प्रश्नचिन्ह, देश विभाजन के समय पाकिस्तान से आए लाखों लोगों की नागरिकता का लटक रहा मुद्दा, चार युद्धों में शरणार्थी बने सीमांत क्षेत्रों के बेकसूर नागरिकों का पुनर्वास, जम्मू और लद्दाख के साथ हो रहा घोर पक्षपात, पूरे प्रदेश में व्याप्त आतंकवाद, अपने घरों से उजाड़ दिए गए कश्मीर घाटी के चार लाख हिन्दुओं की घर वापसी इत्यादि किसी भी समस्या का समाधान कहीं दिखाई नहीं देता। अनेक प्रकार के समाधान विभिन्न संगठनों ने सुझाए, पर किसी भी समाधान पर राष्ट्रीय सहमति नहीं बन सकी। मर्ज बढ़ता गया-ज्यों ज्यों दवा की।
अलगाववादी संगठनों और आतंकी गुटों द्वारा प्रस्तुत किए गए सभी सुझावों, स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्र, जम्मू-कश्मीर का पाकिस्तान में विलय, यूनाइटेड स्टेट्स आफ ग्रेटर कश्मीर और इस्लामिक गणतंत्र कश्मीर को भारत के प्रायः सभी राष्ट्रवादी दलों ने ठुकरा दिया है। उधर कश्मीर केन्द्रित राजनीतिक और सामाजिक संगठनों नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रस्तावों अथवा घोषणाओं, स्वायत्तता और सैल्फरूल को भी कांग्रेस के सिवाय किसी भी दल ने घास नहीं डाली। इसी तरह पनुन कश्मीर, जम्मू मुक्ति मोर्चा और पैंथर्स पार्टी द्वारा प्रचारित समाधानों, कश्मीर में हिन्दू होमलैंड, जम्मू-कश्मीर का तीन प्रांतों में विभाजन और केन्द्र शासित लद्दाख को भी कहीं कोई समर्थन नहीं मिला। भारतीय जनता पार्टी का अनुच्छेद 370 हटाओ अभियान भी मात्र एक राजनीतिक नारा बनकर रह गया। हालांकि पहले जनसंघ और अब भाजपा ने प्रारंभ से ही इस अनुच्छेद का विरोध जारी रखा हुआ है, परंतु जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ जोडऩे में बाधक इस अनुच्छेद को हटाने के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय सहमति बनाने की कोशिश सफल नहीं हो सकी। यद्यपि यह मांग निरंतर दुहराई जाती रही है।
देशद्रोह में बदला मजहबी जुनून
यह एक निर्विवाद सत्य है कि स्वतंत्रता के साथ जो विभिन्न प्रकार की समस्याएं देश को मिलीं, उनका अधिकांश असर जम्मू-कश्मीर पर ही हुआ। भारत के शेष प्रांतों की संवैधानिक और भौगोलिक समस्याएं धीरे-धीरे सुलझा ली गईं। राज्य पुनर्गठन आयोग के माध्यम से प्रांतों का निर्माण एवं पुनर्गठन करके एक ही बार में देश का प्रशासनिक ढांचा सुधार लेने का एक कदम उठाया गया। परंतु जम्मू-कश्मीर भारत की संवैधानिक परिधि में नहीं आ सका। परिणामस्वरूप इस प्रदेश की सभी समस्याएं विकराल रूप धारण करती गईं। अलगाववाद को मान्यता देने वाले अनुच्छेद 370 के कारण कट्टरवादी मजहबी भावनाएं खतरनाक मोड़ लेकर देशद्रोह में बदल गईं। हिंसक आतंकवाद के भयंकर अजगर ने सर उठा लिया जिसे कुचलने में देश की सैन्य शक्ति, सरकारी तंत्र और अरबों रुपए की बर्बादी हो रही है।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा जम्मू-कश्मीर के संबंध में की गई भयंकर भूलों और उन भूलों को न सुधारने की कांग्रेसी मानसिकता के कारण भारत का संविधान अभी तक भी जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह लागू नहीं हो सका। जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक सीमाओं में शेष भारत के नागरिक स्वतंत्र नहीं हैं। उन्हें इस प्रांत का नागरिक बनने का अधिकार भी नहीं है। वे जमीन-जायदाद नहीं खरीद सकते, वोट नहीं दे सकते, सरकारी नौकरी नहीं कर सकते और अब तो स्थिति इतनी विस्फोटक हो गई है कि भारतीयों के लिए कश्मीर घाटी में स्वतंत्रतापूर्वक चलना-फिरना भी कठिन हो गया है। यह कैसी विडम्बना है कि जम्मू-कश्मीर में भारत का राष्ट्रपति, संसद और जनता आज भी विदेशी माने जाते हैं।
अलगाववाद को प्रश्रय
राष्ट्रपति वहां आपातस्थिति घोषित नहीं कर सकते। देश की सर्वाेच्च संस्था संसद द्वारा बनाए गए कानून जम्मू- कश्मीर में तब तक लागू नहीं हो सकते जब तक कि वहां की राज्य विधानसभा इसकी इजाजत न दे। यह कितनी आश्चर्यजनक परंतु हास्यास्पद बात है कि जम्मू-कश्मीर के नागरिक पूरे भारत के नागरिक हैं, परंतु भारत के नागरिक जम्मू-कश्मीर के नागरिक नहीं बन सकते। यह स्थिति इस हद तक दयनीय है कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज को जम्मू-कश्मीर में फहराने के लिए वहां की राज्य सरकार के झंडे का सहारा लेना पड़ता है। अनुच्छेद 370 के अंतर्गत बनीं इन देशघातक परिस्थितियों को बदलने के स्थान पर भारत सरकार अलगाववादियों, और कट्टरवादी कश्मीर केन्द्रित राजनीतिक दलों के दबाव में आकर जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करने की तैयारियां कर रही है। अगर भारत सरकार ने इस तरह का कोई गैर जिम्मेदाराना और खतरनाक कदम उठा लिया तो यह पाकिस्तान और कश्मीर में सक्रिय पाक-प्रेरित अलगाववादियों की जीत होगी। स्वायत्तता जैसे देशघातक निर्णय से जम्मू-कश्मीर के भारत से अलग होने के सभी रास्ते खुल जाएंगे।
समस्त देश के लिए दुर्भाग्य की बात तो यह है कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर की प्रत्येक समस्या को सुलझाने के लिए केवल कश्मीर घाटी के एक ही वर्ग से बातचीत करने का प्रयास करती है। जबकि जम्मू और लद्दाख का क्षेत्रफल व जनसंख्या कश्मीर घाटी से तीन गुना ज्यादा है। इसलिए कश्मीर घाटी समस्या का ऐसा समाधान निरर्थक साबित होगा जो जम्मू और लद्दाख के लोगों को स्वीकार न हो। पहाड़ी, गुर्जर, डोगरे, भद्रवाही, बक्करवाल, गद्दी, लद्दाखी, पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर से आए शरणार्थी और कश्मीरी हिन्दुओं के प्रतिनिधियों को वार्तालाप प्रक्रिया में शामिल न करके केवल कश्मीर घाटी के ही एक वर्ग से गुप्त वार्तालाप चलाकर निकाला गया कोई भी समाधान पूरे जम्मू-कश्मीर की एकता और सौहार्द को बिगाड़ देगा। दुर्भाग्य से आज जम्मू- कश्मीर की सत्ता पर वे लोग काबिज हैं जो कश्मीर घाटी के ही एक विशेष वर्ग के प्रतिनिधि हैं और केन्द्र में उन लोगों की सरकार है जो अपने वोट बैंक को ध्यान में रखकर जम्मू-कश्मीर की सत्ता पर काबिज लोगों का समर्थन करते हैं।
तीव्र प्रतिक्रिया की चेतावनी
जम्मू-कश्मीर की समस्या को सुलझाने के लिए जहां सभी राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दलों को अपने दलगत, जातिगत एवं चुनावी स्वार्थों से ऊपर उठकर एक राष्ट्रीय सहमति बनानी होगी वहीं केन्द्र में सत्तारूढ़ दल को भी अपनी ढुलमुल एवं घुटना टेक नीति छोडक़र देशहित में सख्त नीति अपनानी होगी। इस संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित एक प्रस्ताव में सरकार को ठोस सुझाव दिए हैं। संघ ने सरकार से मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति छोडऩे, विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं की सुरक्षित घर वापसी की व्यवस्था करने, विभाजन के समय पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर से आए हिन्दुओं को सभी संवैधानिक अधिकार सौंपने, आतंकवादियों का उत्साह बढ़ाने वाली आत्मसमर्पण नीति न अपनाने और आतंकियों से सख्ती से निपटने के लिए कहा है।
संघ ने अपने प्रस्ताव में सरकार को चेतावनी दी है कि यदि अलगाववादियों को प्रसन्न करने के लिए ऑटोनामी जैसा कोई घातक निर्णय लिया गया तो सारे देश में तीव्र प्रतिक्रिया होगी। जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इस प्रांत का भारत में विलय अंतिम है। इस विषय पर वार्तालाप करना न केवल असंवैधानिक है, अपितु समस्त भारत का अपमान भी है। अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के लिए पृथक संविधान एवं झण्डा भारत की अखंडता के लिए चुनौती है। जम्मू-कश्मीर को दिया गया यह विशेष दर्जा भारतीय संविधान की भावना, लोकतंत्र और नागरिकों के मूलाधिकारों के भी विरुद्ध है।
एक ही समाधान: राष्ट्रीय सहमति
जम्मू-कश्मीर की सभी समस्याओं पर गहरा चिंतन करने के पश्चात् एक ही समाधान दिखाई देता है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर को भारत के शेष प्रांतों के समकक्ष लाया जाए। अनुच्छेद 370 के समाप्त होने से जम्मू-कश्मीर राज्य का संविधान और झण्डा अपना अस्तित्व खो देगा। विशेष दर्जा समाप्त होने से अलगाववाद का आधार समाप्त हो जाएगा। भारत की मुख्य राष्ट्रीय धारा की पकड़ मजबूत होगी। अब तक नकारे जा रहे देशभक्त लोग सामने आकर इस सीमावर्ती प्रांत को भारत विरोधी तत्वों से बचा सकेंगे। इसी तरह क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से जब जम्मू और लद्दाख के लोगों को विधानसभा, विधान परिषद्, संसद और अन्य संवैधानिक संस्थाओं एवं आयोगों में प्रतिनिधित्व मिलेगा तो भेदभाव की राजनीति समाप्त होगी।
यह भी आवश्यक है कि भारत की संसद द्वारा 22 फरवरी, 1994 को पारित सर्वसम्मत प्रस्ताव पर अमल करते हुए कश्मीर में सक्रिय भारत विरोधी तत्वों और उनके आका पाकिस्तान को कश्मीर की सच्चाई समझाने के लिए हर संभव राजनीतिक प्रयास और शक्ति का इस्तेमाल करने में कोई कंजूसी एवं परहेज न किया जाए। हाथों में बंदूक लेकर कश्मीर में जिहाद के नाम पर खून-खराबा कर रहे युवकों को कश्मीरियत का वास्तविक स्वरूप समझाने और उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में वापस लाने के लिए देशभक्त एवं मानवतावादी मुस्लिम और हिन्दू विद्वानों, सामाजिक और धार्मिक नेताओं, राष्ट्रवादी लेखकों और पत्रकारों को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। समग्र राष्ट्र को एक स्वर से घोषणा करनी होगी कि हिन्दू और मुसलमानों की साझी विरासत कश्मीर और कश्मीरियत भारत राष्ट्र का स्थाई और अभिन्न अंग है।
जिस दिन भारत सरकार और सभी राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं एक स्वर से कश्मीर के सत्य को स्वीकार कर एकजुट हो जाएंगे, उसी दिन कश्मीर समस्या के समाधान पर राष्ट्रीय सहमति बन जाएगी और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके दल कांग्रेस द्वारा कश्मीर के संबंध में की गईं भयंकर भूलें सुधारी जा सकेंगी। राष्ट्रीय सहमति बनते ही डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बलिदान, संघ के स्वयंसेवकों की कुर्बानियां और श्रीगुरुजी के प्रयास सार्थक होंगे।

1 टिप्पणी:

  1. अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के लिए पृथक संविधान एवं झण्डा भारत की अखंडता के लिए चुनौती है। जम्मू-कश्मीर को दिया गया यह विशेष दर्जा भारतीय संविधान की भावना, लोकतंत्र और नागरिकों के मूलाधिकारों के भी विरुद्ध है।
    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर को भारत के शेष प्रांतों के समकक्ष लाया जाए।
    जिस दिन भारत सरकार और सभी राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं एक स्वर से कश्मीर के सत्य को स्वीकार कर एकजुट हो जाएंगे, उसी दिन कश्मीर समस्या के समाधान पर राष्ट्रीय सहमति बन जाएगी और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके दल कांग्रेस द्वारा कश्मीर के संबंध में की गईं भयंकर भूलें सुधारी जा सकेंगी।

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