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नया धमाका

1/10/2011

राजनीति के कारण फिर श्रद्धा का अपमान : अफजल खान की मजार पर चुप क्यों हैं दादाजी कोंडदेव की प्रतिमा हटवाने वाले?

छत्रपति शिवाजी महाराज के शिक्षक दादाजी कोंडदेव की प्रतिमा शिवाजी महाराज के पुणे स्थित निवास "लालमहल" से हटाने की जो कार्रवाई पुणे नगर निगम में सत्तारूढ़ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने की, उससे केवल पुणे में ही नहीं पूरे महाराष्ट्र में उसके विरुद्ध लोगों में असंतोष व्याप्त हो गया है और लोग सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के लिए उतर पड़े हैं। इस कार्रवाई में एक ओर जहां इतिहास को पलटने की घिनौनी राजनीतिक कोशिश की गई वहीं कानून को भी ताक पर रख दिया गया, क्योंकि यह मामला अभी पुणे के न्यायालय में लंबित है।
पूरे देश, विशेषकर महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज प्रात:स्मरणीय हैं। इतिहास साक्षी है कि शिवाजी महाराज के बाल्यकाल में उन्हें तलवारबाजी की शिक्षा-दीक्षा के अलावा संस्कार देने में दादाजी कोंडदेव का विशेष योगदान रहा है। शिवाजी की माता जीजाबाई ने पुणे में हिंदवी स्वराज की स्थापना करने हेतु तथा उसे स्वर्णिम बनाने हेतु पुणे में शिवाजी द्वारा स्वर्णिम हल चला कर स्वराज्य का श्रीगणेश भी दादाजी कोंडदेव की उपस्थिति में किया था। उसी अवसर की बाल-शिवाजी, माता जीजाबाई तथा दादाजी कोंडदेव की प्रतिमा पुणे के लालमहल में बनवाई गयी थी, जो सभी के लिए एक श्रद्धास्थल है।
इस प्रतिमा को लेकर नवगठित "संभाजी ब्रिागेड" नामक संगठन ने गत एक वर्ष से यह कहते हुए विवाद बढ़ाना शुरू कर दिया कि दादाजी कोंडदेव शिवाजी महाराज के गुरु नहीं थे
इस सारी पृष्ठभूमि के कारण लालमहल से दादाजी कोंडदेव की प्रतिमा हटाने का प्रस्ताव 23 दिसम्बर, 2010 को पुणे महानगर निगम में जब रखा गया तब उसका भाजपा, शिवसेना तथा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने जोरदार विरोध किया। पर राष्ट्रवादी कांग्रेस ने अपने सहयोगी दल कांग्रेस के समर्थन से इस प्रस्ताव को पारित करवा लिया। प्रस्ताव पारित करते हुए कांग्रेसी नेता यह बात भी भूल गये कि चार महीने पहले सत्ता पक्ष ने ही इस मामले की छानबीन कर सलाह देने हेतु इतिहासज्ञों की समिति का गठन किया था तथा कोई निर्णय लेने तथा नतीजे पर पहुंचने से पहले इस समिति को रपट आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी।
सत्ता में मद में चूर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने जनभावनाओं को दरकिनार कर संख्या बल पर यह प्रस्ताव पारित करा लिया। 23 दिसम्बर को पारित इस प्रस्ताव के मात्र चार दिनों के बाद 27 दिसम्बर की मध्यरात्रि में पूरे पुलिस बंदोबस्त के साथ शिवाजी महाराज के लालमहल से उनके गुरु दादाजी कोंडदेव की प्रतिमा जबरदस्ती हटाई गयी। मध्य रात्रि में ही प्रतिमा हटाने की कार्रवाई का विरोध करने वाले भाजपा-शिवसेना के 36 कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया।
पुणे नगर निगम और प्रशासन की इस कार्रवाई के विरोध में भाजपा-शिवसेना द्वारा उसी दिन, यानी 27 दिसम्बर को दोपहर में पुणे नगर निगम कार्यालय पर विशाल प्रदर्शन कर दादाजी कोंडदेव की प्रतिमा को सम्मान सहित पुन:स्थापित करने की जोरदार मांग की गयी। इसी मांग को लेकर दूसरे दिन, यानी 28 दिसम्बर को भाजपा-शिवसेना तथा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने पुणे महानगर तथा जिला बंद का एलान किया, जिसे व्यापक सफलता मिली। नासिक, सांगली, औरंगाबाद आदि स्थानों पर भी
जिस राजनीतिक जोर-जबरदस्ती के साथ संभाजी ब्रिागेड ने दादाजी कोंडदेव की प्रतिमा हटवाई उसकी राजनीतिक कलई इस बात से खुल जाती है कि जब जेम्स लेन ने छत्रपति शिवाजी के लिए आपत्तिजनक सामग्री से परिपूर्ण किताब लिखी थी तब इसी संभाजी ब्रिागेड ने चुप्पी साध रखी थी। शिवाजी पर जानलेवा वार करने वाले अफजल खान की मजार राज्य सरकार की छत्रछाया में बरकरार है, यह बात भी संभाजी ब्रिागेड को नागवार नहीं गुजरती। यहां तक कि एक साल पहले मीरज में श्रीगणेश उत्सव के अवसर पर शिवाजी महाराज की एक झांकी पर मुसलमानों द्वारा आपत्ति प्रकट किए जाने पर संभाजी ब्रिागेड के साथ उनके राष्ट्रवादी कांग्रेसी आका भी चुप रहे तथा मीरज शहर दंगों में झुलस गया।
हालांकि राजनीतिक साजिश के तहत दादाजी कोंडदेव की प्रतिमा हटाने वाला प्रशासन उस समय सकते में आ गया जब दादाजी कोंडदेव की प्रतिमा को हटाने पर स्थगनादेश देने हेतु पुणे की न्यायालय में दाखिल याचिका पर न्यायालय ने प्रशासन को प्रतिमा हटाने के प्रस्ताव से संबद्ध पूरी जानकारी 30 दिसम्बर तक प्रस्तुत करने के निर्देश दिये। इसका सीधा मतलब यही है कि अपनी राजनीति के उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए पुणे नगर निगम एवं नगर प्रशासन ने इतिहास तथा आम जनता के श्रद्धा से ही नहीं, न्यायालय से भी खिलवाड़ किया है, जिसका खामियाजा उसे अवश्य भुगतना पड़ेगा।

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