पृष्ठ

नया धमाका

11/24/2010

मुस्लिम तुष्टीकरण का नया राग : इस्लामिक बैंक

--------------------------------------------------
कांग्रेस के नेतृत्व में चलने वाली वर्तमान केन्द्र सरकार का एकमात्र लक्ष्य है "मुस्लिम वोट बैंक"। इसलिए इस सरकार की हर योजना मुस्लिमों पर केन्द्रित रहती है, और हर काम मुस्लिम तुष्टीकरण का नया अध्याय लिख रहा है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को स्वदेश ही नहीं, विदेश में भी अपने इस वोट बैंक की बड़ी चिन्ता रहती है। अक्तूबर के अन्तिम सप्ताह में वे मुस्लिम देश मलेशिया गए। 27 अक्तूबर को उन्होंने पुत्रजया में मलेशियाई प्रधानमंत्री नजीब-तुन- अब्दुल रज्जाक के साथ पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा, "मैं भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) से कहूंगा कि वह मलेशिया में चल रही इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था का अध्ययन करे।" प्रधानमंत्री के इस बयान के पीछे एक गहरी रणनीति है। इसके रणनीतिकार हैं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलामन खुर्शीद, राज्यसभा के उप सभापति के. रहमान खान और वे तमाम मुस्लिम नेता, जो भारत में इस्लामिक बैंक शुरू करने के हिमायती हैं। 27 जनवरी, 2010 को के. रहमान खान ने राज्यसभा में स्पष्ट कहा था कि केन्द्र सरकार शरीयत आधारित इस्लामिक बैंक की स्थापना पर विचार करे। इसके बाद से आज तक पूरे देश में "इस्लामिक बैंक क्यों" पर अनेक संगोष्ठियां हो चुकी हैं। इन संगोष्ठियों का लक्ष्य है सरकार पर इस्लामिक बैंक की स्थापना के लिए दबाव बढ़ाना। इसी दबाव में प्रधानमंत्री ने उपरोक्त बयान दिया है, इसमें कोई दो राय नहीं है।
समिति का गठन
दरअसल, केन्द्र सरकार की नीतियों के कारण हिन्दू-बहुल इस देश में मुस्लिम समाज ऐसी-ऐसी मांगें करने लगा है, जो भारत की सनातन संस्कृति और प्रवृत्ति के विरुद्ध हैं। इन मांगों में इस्लामिक बैंक की भी मांग शामिल है। इस मांग को कुछ वर्ष पूर्व हवा तब मिली जब रघुराम राजन समिति ने सिफारिश की कि भारत में इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था शुरू की जाए। रघुराम राजन अमरीका में रहते हैं। किन्तु आश्चर्य यह है कि संप्रग सरकार ने उन्हें भारत बुलाकर वित्तीय क्षेत्र में सुधार के लिए बनाई गई समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया। रघुराम राजन समिति की इस सिफारिश के बाद इस्लामिक बैंकिंग की पैरवी करने वालों में होड़ लग गई।
मुसलमानों को खुश करने के लिए केरल की वामपंथी सरकार ने इस्लामिक बैंक शुरू करने का निर्णय लिया। इसके लिए अक्तूबर, 2009 में केरल सरकार ने एक आदेश जारी कर कहा कि केरल में इस्लामिक बैंक बनाया जाएगा और यह शरीयत के अनुसार चलेगा। आदेश में यह भी कहा गया था कि बैंक को चलाने के लिए "शरीयत एडवाइजरी बोर्ड" बनाया जाएगा और इसके लिए बैंक पूंजी की 11 प्रतिशत राशि केरल स्टेट इण्डस्ट्रियल डवलपमेंट कारपोरेशन (के.एस.आई.डी.सी.) देगी। केरल सरकार के इस निर्णय से हिन्दुओं में तीखी प्रतिक्रिया हुई।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं प्रख्यात कानूनविद् डा. सुब्राहृण्यम स्वामी को जब केरल सरकार के इस अध्यादेश की जानकारी मिली तो वे भी अवाक् रह गए। डा. स्वामी ने अक्तूबर 2009 में सरकार के इस आदेश को चुनौती देते हुए केरल उच्च न्यायालय, कोच्ची में एक याचिका दायर की। डा. स्वामी ने न्यायालय में सरकार के इस आदेश को गैर-संवैधानिक बताते हुए कहा कि संविधान की धारा-27 के अनुसार कोई भी सरकार सरकारी पैसे का उपयोग किसी एक मजहब के लिए नहीं कर सकती है। याचिका पर न्यायालय ने विचार करने के बाद 5 जनवरी, 2010 को केरल सरकार के अध्यादेश पर रोक लगा दी। इसके साथ ही न्यायालय ने रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया (आर.बी.आई.) और भारत सरकार को भी नोटिस भेजकर उनकी राय मांगी थी। अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में केन्द्रीय वित्त मंत्रालय और आर.बी.आई. ने न्यायालय में शपथपत्र दाखिल कर कहा है कि वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था में इस्लामिक बैंक शुरू नहीं किया जा सकता।
जो मामला न्यायालय में विचाराधीन है, जिस पर केन्द्रीय वित्त मंत्रालय और आर.बी.आई. ने असहमति जताई है, उस पर प्रधानमंत्री द्वारा विदेश में बयान देने का अर्थ क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है। डा. सुब्राहृण्यम स्वामी कहते हैं, "वर्तमान वैधानिक व्यवस्था में भारत में इस्लामिक बैंक शुरू करना आसान नहीं है। यह तब संभव होगा जब आर.बी. आई. और वित्त संबंधी अन्य कानूनों में संशोधन किया जाए। और इन संशोधनों के लिए संसद में सरकार के पास दो-तिहाई बहुमत हो। संसद की दलीय स्थिति को देखते हुए तो ऐसा नहीं लगता कि सरकार इस्लामिक बैंक का रास्ता साफ कर पाएगी।"
किन्तु कुछ लोगों को डर है कि इस्लामिक बैंक के नाम पर तथाकथित सारे सेकुलर दल सरकार के साथ हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में भारत में इस्लामिक बैंक की स्थापना हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो भारत के हितों को बड़ा नुकसान होगा, क्योंकि इस्लामिक बैंक में जमा होने वाले पैसे पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा। इस बैंक में विदेश से आने वाली राशि पर भी फेरा कानून या अन्य कोई दूसरा कानून लागू नहीं होगा। इस कारण आतंकवादियों और भारत-विरोधी तत्वों का भी इस बैंक में पैसा जमा होगा। शरीयत के अनुसार इस्लामिक बैंक में पैसा जमा करने वालों को सूद नहीं दिया जाता है, क्योंकि सूद "हराम" होता है। वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ "धोखा" है। यह बैंक भले ही अपने निवेशकों को प्रत्यक्ष सूद नहीं देता, पर परोक्ष रूप से देता है। क्योंकि बैंक अपने यहां जमा पूंजी को अन्य क्षेत्रों, विशेषकर सम्पत्ति में निवेश करता है।
सूद नहीं, मुनाफा
नियमानुसार यह बैंक मकान-दुकान, जमीन आदि खरीदकर अपने पास वर्षों तक रख सकता है और अपनी इच्छानुसार कभी भी मुनाफा लेकर बेच सकता है। यही मुनाफा निवेशकों के बीच बांटा जाता है। यह परोक्ष रूप से सूद ही है। इस्लामिक बैंक द्वारा सम्पत्ति खरीदकर अपने कब्जे में रखना, यह भारत के हित में बिल्कुल भी नहीं है। ऐसा अधिकार और किसी बैंक को नहीं है। इस हालत में खतरा है कि भविष्य में यह बैंक कहीं भी जमीन-जायदाद खरीद कर अपने पास रख सकता है, और अपने लोगों को बेच सकता है। इस प्रकार किसी भी क्षेत्र विशेष का इस्लामीकरण किया जा सकता है। एक अन्तरराष्ट्रीय मौद्रिक संगठन में सलाहकार रहे डा. राकेश रंजन कहते हैं, "जिन पश्चिमी देशों ने अपने यहां इस्लामिक बैंक खोलने की अनुमति दी है, उनका तेजी से इस्लामीकरण हो रहा है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि देश इसके उदाहरण हैं। इन देशों में इस्लामिक बैंक की शाखाओं ने हजारों एकड़ जमीन खरीदी हुई है। इसी तरह बड़े-बड़े शहरों में इनके पास मकान और दुकानें भी हैं। यह पूरी सम्पत्ति उन मुस्लिम युवाओं को ही बेची जाती है, जो विभिन्न देशों से वहां जाकर बस रहे हैं। ब्रिटेन का बहुत तेजी से इस्लामीकरण हो रहा है। वहां की 6 करोड़ आबादी में लगभग 1 करोड़ मुसलमान हो चुके हैं। इस्लामीकरण के डर से फ्रांस की निकोलस सरकोजी सरकार ने इस्लामिक बैंक पर रोक लगा दी है। जर्मनी में भी इस्लामिक बैंक के खिलाफ मुहिम चल रही है। ऐसी मुहिम भारत में भी चलनी चाहिए, नहीं तो यहां की सेकुलर सरकार इस्लामिक बैंक के लिए संविधान में संशोधन भी कर सकती है।"
विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय मंत्री डा. सुरेन्द्र जैन कहते हैं, "भारत में इस्लामिक बैंक खुलने का अर्थ होगा अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना। क्योंकि यह बैंक कट्टरता, आतंकवाद और मतान्तरण को बढ़ावा दे सकता है।"
उल्लेखनीय है कि गैर-इस्लामिक देशों में जहां भी यह बैंक है उसके माध्यम से मतान्तरण का कार्य तेजी से चल रहा है। बेरोजगार गैर-मुस्लिम युवाओं को हर तरह की मदद का आश्वासन दिया जाता है। पर अन्दर ही अन्दर उन्हें इस्लाम कबूलने को कहा जाता है। ऐसी स्थिति भारत में भी हो सकती है। अत: किसी भी सूरत में यहां इस्लामिक बैंक की स्थापना न होने दी जाए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपके सुझाव, राय और मार्गदर्शन टिप्पणी के रूप में देवें

लिखिए अपनी भाषा में