11/11/2010
गुरु गोबिन्द सिंह
गुरु गोबिन्द सिंह
जन्म गोबिन्द राय - 22 दिसंबर, 1666 (पटना बिहार, भारत )
मृत्यु 7 अक्तूबर 1708 (42वर्ष ) नांदेड़, महाराष्ट्र, भारत
पदवी : सिखों के दसवें और अंतिम गुरु
प्रसिद्धि कारण : दसवें सिख गुरु, सिख खालसा सेना के संस्थापक एवं प्रथम सेनापति
पूर्वाधिकारी गुरु तेग बहादुर
उत्तराधिकारी गुरु ग्रंथ साहिब
जीवनसाथी माता जीतो उर्फ माता संदरी, माता साहिब दीवान
बच्चे अजीत सिंह, जुझर सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह
माता-पिता गुरु तेग बहादुर, माता गूजरी
गुरु गोबिन्द सिंह ( जन्म: 22 दिसंबर 1666, मृत्यु: 7 अक्टूबर 1708) सिखों के दसवें एवं अन्तिम गुरु थे। उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था । उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि एवं आध्यात्मिक नेता थे। उन्होने सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों ( जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ 14 युद्ध लड़े।
गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया और इसे ही सिखों को शाश्वत गुरू घोषित किया। बिचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ, गुरू गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है। सिखों के दस गुरु हैं ।
गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म --- उस समय औरंगजेब जैसा जालिम बादशाह दिल्ली के तख्त पर बैठा हुआ था। उसके आतंक से लोगों को राहत देने के लिए तथा हिंदू धर्म की रक्षा के लिए जिस महान पुरुष ने अपने शीष की कुरबानी दी, ऐसे सिक्खों के नवें गुरु गुरु तेग बहादुर के घर में सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था। उन दिनों गुरु तेग बहादुर पटना (बिहार) में रहते थे। 22 दिसंबर, सन् 1666 को गुरु तेग बहादुर की धर्मपरायण पत्नी गूजरी देवी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया, जो बाद में गुरु गोबिंद सिंह के नाम से विख्यात हुआ। बालक के जन्म पर पूरे नगर में उत्सव मनाया गया। उन दिनों गुरु तेग बहादुर असम-बंगाल में गुरु नानक देवजी के संदेश का प्रचार-प्रसार करते हुए घूम रहे थे। ‘‘वे यहां होते तो कितने प्रसन्न होते।’’ माता गूजरी बोलीं। ‘‘उन्हें समाचार पहुंचा दिया गया है।’’ धाय मां ने कहा।
नामकरण संस्कार --- सिक्ख संगत के बीच बालक का नामकरण किया गया गोबिंदराय। माता गूजरी ने बालक को जहां दया, करुणा और प्रेम के संस्कार दिए, वहीं साहस, वीरता और निर्भीकता की घुट्टी भी पिलाई। गोबिन्दराय की उम्र उस समय चार वर्ष की थी, जब गुरु तेग बाहादुर वापिस आए। जिस समय उन्होंने हवेली में कदम रखा, तो उन्होंने देखा कि एक नन्हा बालक बच्चों को दो दलों में बांट कर खेल रहा है। एक दल को उसने भयभीत किया हुआ है। गुरु तेग बहादुर ने जब ऐसा करने का कारण पूछा, तो उसने निर्भीकता से कहा, ‘ये यवन हैं, मेरे शत्रु हैं, इसलिए उनके साथ ऐसा कर रहा हूं।’’ उसने कहा, ‘‘मैं इन यवनों को कभी क्षमा नहीं कर सकता।
बालक से परिचय --- खेल खत्म हो गया। बालक से गुरु तेग बहादुर ने उसका परिचय पूछा। बालक ने कहा, ‘‘मेरा नाम गोबिंदराय है। मैं गुरु तेग बहादुर जी का बेटा हूं।’’ गुरु साहब के चेहरे पर प्रसन्नता और अभिमान की चमक आ गई।’’ और आप ?’’ बालक ने पूछा। ‘‘मैं तुम्हारा पिता...! सुनते ही पुत्र ने पिता के चरणों का स्पर्श किया और पिता ने पुत्र को अपनी गोद में उठा लिया। तब तक माता गूजरी और सिक्ख सेवक वहां पहुंच चुके थे। गुरु साहब ने माता गूजरी को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘जो संतान को जन्मती ही नहीं, उसे संस्कारवान भी बनाती है वह माता धन्य है।’’ अपनी और अपने पुत्र की प्रशंसा सुनकर माता गूजरी की आंखों में आंसू छलकने लगे।
अचूक निशाना --- बालक गोबिंदराय धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। उम्र के साथ-साथ उसकी कारगुजारियां भी बदलने लगी थीं। जिस हवेली में वे रहते थे, उसमें एक कुआं था। आस-पास की स्त्रियां वहां जल भरने आया करती थीं। उन्हें तंग करने में बालक गोबिंदराय को बड़ा मजा आता था। वह अपने दोस्तों के साथ तीर-कमान लेकर छिपकर बैठ जाता और जब स्त्रियाँ अपने सिर पर जल का घड़ा लेकर वहां से गुजरतीं तो वह और उसके मित्र तीरों का निशाना बनाकर उन घड़ों को फोड़ दिया करते। गोबिंदराय का निशाना इतना अचूक था कि वह कभी खाली नहीं जाता था। वे स्त्रियां उन बालकों की शैतानी से बहुत दुखी थीं। वे जानती थीं कि इन सबका मुखिया गोबिंदराय है। उन्होंने रोज-रोज के नुकसान से तंग आकर गोबिंदराय की शिकायत करने का मन बनाया।
माता गूजरी से शिकायत --- एक दिन सभी स्त्रियां मिलकर माता गूजरी के पास पहुंचीं और गोबिंदराय की शिकायत करने लगीं। ‘‘बीजी ! संभालो अपने लाड़ले को।’’ एक बोली, ‘‘वह रोज हमारे घड़े फोड़ देता है। रोज-रोज का नुकसान हम कहां तक उठाएं ?’’ दूसरी बोली, ‘‘बीजी ! वो अकेला नहीं है, उसके साथ उसकी पूरी मित्र-मंडली है। हमने कई बार उन्हें समझाया, पर वे मानते ही नहीं।’’ तीसरी बोली, ‘‘बीजी ! आप जरा सोचो, अगर कभी निशाना चूक गया तो हमारी तो जान ही चली जाएगी। ये भी कोई खेल हुआ ? हम तो तंग आ गए हैं, इसकी इन रोज-रोज की शैतानियों से।’’ ‘‘तुम लोगों ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?’’ माता गूजरी ने कहा, ‘‘अच्छा देखो, मैं तुम्हें पीतल के घड़े दिलवा देती हूँ। यह उन्हें नहीं फोड़ पाएगा और मैं उसे फटकारूंगी भी। तुम चिंता मत करो।’’
मां का गोबिंद को समझाना --- माता गूजरी ने उन औरतों को नए चमकदार पीतल के घड़े दिलवा दिए। उन घड़ों को पाकर वे बहुत खुश थीं। बालक गोबिंदराय और उसके साथियों ने तीर-कमान से उन घड़ों को फोडऩे का प्रयास किया, पर वे सफल नहीं हो सके। जिस समय वे अपने हाथ अजमा रहे थे, उसी समय माता गूजरी ने पीछे से आकर रंगे हाथों गोबिंदराय को पकड़ लिया। गोबिंदराय को पकड़े जाते देखकर उसके सभी साथी जान बचाकर भाग निकले। औरतें हंसने लगीं—‘अब आया बच्चू पकड़ में।’ माता गूजरी ने गोबिंदराय को प्रेम भरी भाषा में फटकारते हुए कहा, ‘‘यह बहुत बुरी बात है बेटा ! अगर तुम्हारा निशाना चूक जाए और छोड़ा हुआ तीर किसी को लगे तो कितना बड़ा अनर्थ हो जाए। तुम्हारा तो खेल होगा, जबकि दूसरे की जान चली जाएगी।’’ ‘‘अब कभी भी ऐसा नहीं करूंगा। वचन देता हूं।’’ गोबिंदराय ने कहा।
चमत्कारी बालक गोबिंदराय --- पटना में गोबिंदराय जब तक रहे। एक बार की बात है कि पटियाला राज्य के गुड़ाक नामक गांव में, भीखन शाह नाम के एक पहुंचे हुए फकीर ने रात में, एक स्वप्न देखा कि पटना में एक ऐसे पैगम्बर का जन्म हुए, जो अनेक ईश्वरीय शक्तियों से संपन्न है। ऐसा स्वप्न देखने के बाद वह पटना की ओर चल दिया। मार्ग में अनेक कठिनाइयों से जूझता हुआ वह एक दिन पटना जा पहुंचा। पूछते-पूछते वह गोबिंदराय की हवेली पर पहुंचा। वहां उसने माता गूजरी से प्रार्थना की, ‘‘माई ! सुना है तेरी कोख से किसी पैगंबर ने अवतार लिया है। मुझे उसके दर्शन करा दे।’’ माता का हृदय आशंकित हो उठा, ‘‘फकीर बाबा ! मैं नहीं जानती कि वह पैगंबर है या कुछ और। मैं तो उसे अपना बेटा मानती हूं। तुम पहले भोजन करो और फिर विश्राम कर लो। वह अभी आता ही होगा। तब तुम उससे मिल लेना।
गोबिंदराय की परीक्षा --- थोड़ी देर बाद गोबिंद राय बाहर से आया तो माता गूजरी ने उसे फकीर बाबा के सामने खड़ा कर दिया। बालक को देखकर फकीर बाबा ने दो कटोरों में पानी भरकर उसके सामने रखा और बोला, ‘‘पुत्र ! इन दो कटोरों में से किसी भी एक कटोरे को छुओ। मैं तुम्हारी धर्म-आस्था की परीक्षा लेना चाहता हूं। ये दोनों कटोरे विभिन्न धर्मों से संबंधित हैं। मैं देखना चाहता हूं कि तुम्हारी आस्था किस धर्म में है।’’ गोबिंदराय ने दोनों कटोरों का स्पर्श किया और उन्हें लुढक़ा दिया। फकीर बाबा आश्चर्य से गोबिंदराय का मुंह देखता रह गया वह माता गूजरी से बोला, ‘‘माई ! तेरा यह बालक कोई साधारण बालक नहीं है। बड़ा होकर यह महान योद्धा होगा और अपनी कौम का सिरमौर बनेगा। दीन-दुखियों का सहायक होगा। यह किसी धर्म के साथ पक्षपात नहीं करेगा। परंतु जिस धर्म में अनाचार या अधर्म का बोलबाला होगा, उसका विध्वंस करने में भी यह पीछे नहीं रहेगा। अत्याचारियों का विनाश करेगा। इस बालक में ईश्वर का अंश है। यह सभी को अपना बनाकर चलेगा।’’ माता गूजरी ने भीखन शाह फकीर को धन-धान्य देकर विदा किया।
राजा फतेहसिंह को पुत्र प्राप्ति --- उन दिनों पटना में राजा फतेहचंद रहते थे। उनके पास किसी चीज की कमी नहीं थी। बस कमी थी तो औलाद की। एक दिन वे अपने खास हितैषी के कहने पर अपनी पत्नी के साथ गुरु तेग बहादुर से मिलने हवेली पर आए। वहां पर बालक गोबिंदराय को देखकर राजा फतेहचंद की पत्नी ने प्यार से उसे अपने पास बुलाया। गोबिंदराय जाकर उनकी गोद में बैठ गए। राजा फतेहचंद की पत्नी को ऐसा लगा कि उनकी पुत्र प्राप्ति की कामना पूरी हो गई है। वे बालक गोबिन्द राय को खूब दुलार करके अपने महल में लौट आई। कुछ दिन बाद ही राजा की पत्नी को लगा कि वह गर्भवती हो गई है। उचित समय आने पर उसने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया। गोबिन्दराय ने गोद में बैठकर मानो उनकी बंधी कोक को खोल दिया था। फिर उन्होंने चार पुत्रों को जन्म दिया। तब से राजा और रानी बालक गोबिंदराय के भक्त हो गए।
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