लगता है कि भारत सरकार की जांच एजेंसियां और कांग्रेस पार्टी आपस में गहरे तालमेल से चल रहे हैं । कांग्रेस के दो महासचिव राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह देश भर में यह घोषणा करते हुए घूम रहे हैं कि उनके पास संघ के इन विस्फोटों में संलिप्त होने के पुख्ता प्रमाण हैं । इसका सीधा सीधा अर्थ है कि कांग्रेस पार्टी अपनी राजनीतिक गतिविधियों के अतिरिक्त कोई खुफिया जांच एजेंसी भी चला रही है । साम्यवादी देशों में ऐसा प्रचलन है । वहां कि कम्यूनिस्ट पार्टिया सत्ता संभालने के साथ -साथ विरोधियों को निपटाने के लिए खुफिया जांच एजेंसियों और यातनागृहों का संचालन भी करती हैं । इटली में मुसोलिनी की पीएनएफ यानी रिपब्लिक फासिस्ट पार्टी भी इस प्रकार की खुफिया जांच एजेंसी चलाया करती थी । उसने खुफिया रुप से विरोधियों को मारने के लिए यातनागृह भी खोल रखे थे । कांग्रेस में अभी तक इस प्रकार की खुफिया जांच एजेंसी चलाने की परम्परा नहीं थी क्योंकि उसने अपने आप को राजनीतिक गतिविधियों तक ही सीमित रखा हुआ था । परन्तु लगता है पिछले दो तीन दशकों से पार्टी ने राजनीतिक क्षेत्र के अतिरिक्त इस खुफिया क्षेत्र में भी प्रवेश किया है । दिग्विजय सिंह और राहुल गांधी दोनों कांग्रेस के छुटभैये नेता नहीं हैं । वे इसके राष्ट्रीय महासचिव हैं । इसलिए उनके कथन को प्रत्येक दृष्टिकोण से जांचा परखा जाना चाहिए । यदि कांग्रेस पार्टी ने अपनी खुफिया जांच एजेंसी चलायी हुई है और उस जांच के आधार पर दिग्विजय सिंह और राहुल गांधी संघ पर दोषारोपण कर रहे हैं तो कांग्रेस को उस जांच एजेंसी का खुलासा सार्वजनिक तौर पर करना ही होगा । उस जांच एजेंसी के लिए धन कहां से आता है और उससे कौन -कौन से लोग जुडे हुए है । क्या कांग्रेस पार्टी अपने खातों में इस जांच एजेंसी का खर्चा भी दिखाती है । यदि नही तो क्यो?
या फिर यह हो सकता है कि सरकारी जांच एजेंसिया ही न्यायालय में जाने से पहले ही कांग्रेस के इन दो महासचिवों राहुल गांधी और दिग्विजिय सिंह को अपनी जांच पडताल के सारे कागज -पत्र दिखा देती हों । यदि ऐसा है तो यह सचमुच ही देश के लोकतंत्र के लिए घातक और खतरे की घण्टी है । जांच एजेंसियां संविधान के प्रति उत्तरदायी न होकर कांग्रेस पार्टी के प्रति उत्तरदायी हो रही हैं । आखिर जांच एजेंसियों के अधिकारी स्वतः प्रेरणा से तो कांग्रेस के इन दोनों महासचिवों के पास जांच की रपटें लेकर नहीं जाती होंगी । उन्हें सरकार ही ऐसा करने के लिए विवश करती होगी । कांग्रेस के महासचिवों को जांच रपटें दिखाने का अर्थ है कि उनमें पार्टी के राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए यथोचित परिवर्तन करना । ऐसी स्थिति में जांच एजेंसियों और जांच रपटों की विश्वसनीयता स्वतः ही संदिग्ध हो जाती है । “शायद यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय और अन्य न्यायालयों ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो समेत अन्य जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली को लेकर लताड लगायी है । एक मामले में तो सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को लताड लगाते हुए टिप्पणी की लगता है कि बचाव पक्ष और अभियोग पक्ष दोनों आपस में मिले हुए हैं । दरअसल, आपात स्थिति के दिनों से ही जांच एजेंसियों का इतना राजनीतिकरण हो गया था कि वे अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए उनकी इच्छा अनुसार जांच रपटें तैयार करने लगीं । दिल्ली में 1984 में कांग्रेस पार्टी द्वारा निर्दाेष सिखों पर किया गया आतंकवादी प्रहार इसका जबरदस्त उदाहरण है । इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने उसका राजनीतिक लाभ लेने के लिए हिन्दू कार्ड खेलना चाहा और इसके लिए उसने दिल्ली में सिखों को निशाना बनाया । दिल्ली के हिन्दुओं ने कांग्रेस की इस राष्ट्र विरोधी साजिश में फंसने से इनकार कर दिया । तब कांग्रेस ने भाडे के गुंडे लाकर दिल्ली में सिखों पर आतंकवादी प्रहार किया । कांग्रेस को आशा थी कि हिन्दू सिख दंगे भडकेंगे लेकिन न तो ऐसा हुआ और न ही ऐसा होना था । राजीव गांधी ने इस आतंकवादी प्रहार के दौर में यह बयान देकर कि जब कोई बडा वृक्ष गिरता है तो धरती हिलती है , अप्रत्यक्ष रुप से भाडे के उन गुंडों का उत्साह बढाया जो इस काम में लगे हुए थे । कांग्रेस अपनी इस आतंकवादी योजना में तो कामयाब नहीं हुई लेकिन अब प्रश्न उन गुंडा लोगों को बचाने का था जिन्होंने कांग्रेस की इस रणनीति को पूरा करने के लिए बेगुनाह सिक्खों को बेरहमी से कत्लेआम किया था । कई कमीशन बैठे और जांच एजेंसियों ने बार -बार जांच की लेकिन इतिहास गवाह हैजिनका अपराध जगजाहिर था , जांच एजेंसिया उनको चिन्हित करने में असफल रहीं । यह प्रश्न चिन्ह जांच एजेंसियों की योग्यता पर नहीं था बल्कि यह प्रश्नचिन्ह उनकी नीयत पर था । जांच एजेंसियां ने जो खेल दिल्ली में खेला था वही खेल वे अब उसी कांग्रेस की इच्छापूर्ती के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से खेल रही हैं । कांग्रेस को अपनी राजनीतिक जरुरतों के लिए हिन्दू आतंकवाद चाहिए था और जांच एजेंसियां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम बम विस्फोटों में घसीटकर अपनी हैसियत और कांग्रेस की नीयत का परिचय दे रही हैं । जांच एजेंसियों की हैसियत इसी से साफ हो जाती है कि उनकी रपटों को सरकारी प्रतिनिधि नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के दो महासचिव राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह मीडिया के सामने सार्वजनिक कर रहे हैं ।
राजस्थान में एटीएस की रपट जो उसने अजमेर की दरगाह के बम विस्फोट में प्रस्तुत की है इसका ताजा उदाहरण है । उस पूरी रपट में संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक इन्द्रेश कुमार का कहीं भी कोई तार्किक संदर्भ नहीं है । जो लोग अभियुक्त है उनका रपट में स्पष्ट उल्लेख किया गया है और उन्होंने क्या -क्या अपराध किए है , इसका भी स्पष्ट उल्लेख है और जांच कमेटी के पास इसके लिए क्या प्रमाण है इसका भी स्पष्ट उल्लेख है । जो लोग पकडे नहीं गए है लेकिन इस अपराध में जांच कमेटी द्वारा तथाकथित रुप से संलिप्त माने गए हैं उनका भी जांच रपट में स्पष्ट उल्लेख है । उनके अपराधों को विस्तृत विवरण है और उसको सिद्ध करने के लिए प्रमाण भी संलग्न है । यह प्रमाण कितने सच्चे हैं या कितने झूठे , इसका निर्णय तो अदालत करेगी । परन्तु कांग्रेस को तो इस जांच के माध्यम से संघ को आतंकवादी सिद्ध करना था , इसलिए जांच कमेटी से 800 पृष्ठ की चार्जशीट में एक स्थान पर इन्द्रेश कुमार का नाम लिखवाया गया कि इन्द्रेश कुमार एक बैठक में “शामिल थे । इसका प्रमाण उसके पास कोई नहीं है । लेकिन कांग्रेस के लिए हिन्दू आतंकवाद की योजना को आगे बढाने के लिए इन्द्रेश कुमार के नाम का उल्लेख ही पर्याप्त था और जांच एजेंसियों ने कांग्रेस को वह मुहैया करवा दिया । इससे कई बार “शक होता है कि जांच एजेंसिया भारत सरकार के अभिकरण के रुप मंे नहीं काम कर रहीं है बल्कि “शायद 10 जनपथ की एक्सटेंशन के रुप में काम कर रही हैं। इसीलिए “शायद किसी ने सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन कहा था ।
देश के लिए दोनों ही स्थितियां घातक हैं। यदि कांग्रेस अपनी कोई खुफिया रुप से जांच एजेंसी चला रही है तब भी और यदि भारत सरकार की जांच एजेंसिया ही कांग्रेस से मिलीभगत कर रहीं हैं तब भी । पहली स्थिति में लोकतंत्र के विनाश और तानाशाही के उदय के लक्षण दिखायी देते हैं क्योंकि तब कांग्रेस पार्टी और गुजरे जमाने की इटली की द रिपब्लिक फासिस्ट पार्टी में कोई अंतर नहीं रहेगा । और दूसरी स्थिति में नौकरशाही संविधान के प्रति उत्तरदायी न रहकर एक राजनीतिक दल के प्रति उत्तरदायी बन जाएगी। सोनिया गांधी को “शायद इसकी चिंता न हो और हो भी नहीं सकती है लेकिन भारत के लोगों को तो अंततः इसकी चिंता करनी ही पडेगी क्योंकि यह देश के भविष्य का प्रश्न है ।
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