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नया धमाका

11/29/2011

सत्ता के दलालो और चमचो मे नंबर -1 है :- अहमद पटेल

मित्रों , आज जब इस देश पूरी सत्ता सोनिया गाँधी के हाथो मे है .और जब सोनिया कभी भारत से बाहर रहती है तो आप लोगो के मन मे एक सवाल आता होगा कि वो सत्ता किसके हाथो मे होती है ?
 
ये सत्ता होती है मीडिया से दूर रहने वाले महा दलाल अहमद पटेल के हाथो मे ..
दरअसल आज़ादी के बाद से ही कांग्रेस में सत्ता का मतलब एक परिवार के बीच सत्ता का केन्द्रीकरण रहा है....फिर चाहे वो दौर पंडित जवाहरलाल नेहरु का हो या इंदिरा गाँधी या फिर राजीव गाँधी का ... या अब सोनिया गाँधी का ..
 
आप लोगो के मन मे भी मेरी तरह उत्सुकता होती होगी कि इस दलाल शिरोमणि और कुख्यात हिंदू विरोधी अहमद पटेल की जन्मकुंडली खंगाली जाये ..
मित्रों मैंने भरूच और इसके गांव पिरमल मे एक हप्ते गुजारे ,,कई बुजुर्गो और इसके बचपन के दोस्तों मे बात की .. फिर एक बहुत ही शर्मनाक सच बाहर आया ..
इस दौर में कांग्रेस की सियासत १० जनपथ से तय हो रही है जहा पर कांग्रेस के सिपहसलार समूची व्यवस्था को इस तरह संभाल रहे है कि उनके हर निर्णय पर सोनिया की सहमती जरुरी बन जाती है.... दस जनपथ की कमान पूरी तरह से इस समय अहमद पटेल के जिम्मे है....जिनके निर्देशों पर इस समय पूरी पार्टी चल रही है....."अहमद भाई" के नाम से मशहूर इस शख्स के हर निर्णय के पीछे सोनिया गाँधी की सहमती रहती है.... सोनिया के "फ्री हैण्ड " मिलने के चलते कम से कम
कांग्रेस में तो आज कोई भी अहमद पटेल को नजरअंदाज नही कर सकता है...
 
अहमद पटेल की हैसियत देखिये बिना उनकी हरी झंडी के बिना कांग्रेस में पत्ता तक नही हिला करता ....कांग्रेस में "अहमद भाई" की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी के किसी भी छोटे या बड़े नेता या कार्यकर्ता को सोनिया से मिलने के लिए सीधे अहमद पटेल से अनुमति लेनी पड़ती है.....अहमद की इसी रसूख के आगे पार्टी के कई कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित महसूस करते है लेकिन सोनिया मैडम के आगे कोई भी अपनी जुबान खोलने को तैयार नही होता है ....मेरे राज्य से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस नेता के एक बेहद करीबी व्यक्ति ने मुझे बीते दिनों बताया कि कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्य मंत्री अहमद पटेल से अनुमति लेकर सोनिया से मिलते है ....
 
मित्रों इसकी ताकत का आप अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय मे कांग्रेसियों को संबोधित करते हुए कहा था कि कांग्रेस पार्टी एक सर्कस है ..हम सब कांग्रेसी जानवर और जोकर है .. अब तो आपका १० जनपथ पहुचना संभव नहीं है तो आप २३ वेलिंग्टन क्रिसेंट जाओ ..आप का काम अब वहा से ही होगा ..गौरतलब है कि ये २३ वेलिंग्टन क्रिसेंट अहमद पटेल का निवास है ..
जब सोनिया और राहुल अमेरिका मे थे तो मनमोहन सिंह को इससे मिलने के लिए समय मांगना पड़ता था ..यहाँ तक कि ये कभी प्रधानमंत्री से मिलने नहीं गया बल्कि खुद प्रधानमंत्री इससे मिलने जाते थे ..और बकायदा इंतजार करते थे ..
 
लेकिन ये अहमद पटेल है कौन ??
 
गुजरात मे आज से दो सौ साल पहले जब इस्लामी आक्रमणकारियों ने तलवार और कुरान लेकर अपना धर्म प्रचार किये तो भरूच जिले के बहुत से कोली पटेलो ने इस्लाम स्वीकार कर लिया .लेकिन वो आज भी अपना नाम मे पटेल ही लिखते है ..
अहमद पटेल को समझने के लिए हमें ७० के दशक की ओर रुख करना होगा.....यही वह दौर था जब अहमद गुजरात की गलियों में अपनी पहचान बना रहे थे.....उस दौर में अहमद पटेल "बाबू भाई" के नाम से जाने जाते थे और १९७७ से १९८२ तक उन्होंने गुजरात यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान संभाली .....७७ के ही दौर में वो भरूच कोपरेटिव बैंक के निदेशक भी रहे.....
 
इसी समय उनकी निकटता राजीव के पिता फिरोजखान [गाँधी ] से भी बढ़ गई क्युकि राजीव के पिता फिरोज का सम्बन्ध अहमद पटेल के गृह नगर भरूच से पुराना था..... फिरोज के कई रिश्तेदार आज भी भरूच मे रहते है .....इसी भरूच से अहमद पटेल कभी तीन बार लोक सभा भी पहुचे ... १९८४ में अहमद पटेल ने कांग्रेस में बड़ी पारी खेली और वह "जोइंट सेकेटरी" तक पहुच गए लेकिन पार्टी ने उस दौर में उन्हें सीधे राजीव गाँधी का संसदीय सचिव नियुक्त कर दिया था ......
इसके बाद कांग्रेस का गुजरात में जनाधार बढाने के लिए पटेल को १९८६ में गुजरात भी भेजा गया .... गुजरात में पटेल को करीब से जाने वाले बताते है कि ये अहमद चापलूसी , मख्खनबाजी और जोड़ तोड़ की कला मे बचपन से ही उस्ताद था ...इसकी एक खास बात है कि ये हर उस इंसान को नहीं भुला जिसने इसे आगे बढ़ाया ......
 
पटेल के टीचर ऍम एच सैयद ने उन्हें ८ वी क्लास का मोनिटर बना दिया था.....यही नही जोड़ तोड़ की कला में पटेल कितने माहिर थे इसकी मिसाल उनके टीचर यह कहते हुए देते है कि बाद मे अहमद पटेल ने उस दौर में उनको उस विद्यालय का प्रिंसिपल बना दिया था.....
शायद बहुत कम लोगो को ये मालूम है कि गुजरात के पीरमण में अहमद पटेल का जीवन क्रिकेट खेलने में भी बीता था उस दौर में पीरमण की क्रिकेट टीम की कमान खुद वो सँभालते थे .. बेईमानी से क्रिकेट खेलने के कारण इनकी सबसे लड़ाई होती थी .....लोग बताते है कि ये सिर्फ बैटिंग करना ही चाहता था ..जब आउट हों जाये तो खेलना ही बंद कर देता ..
 
आज भी ये अहमद पटेल सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार है और सिर्फ बैटिंग कर रहा है ..
अहमद की इसी ताकत का लोहा आज उनके विपक्षी भी मानते है.....यकीन जान लीजिये पार्टी को हाल के समय में बुरे दौर से उबारकर सत्ता में लाने में अहमद पटेल की भूमिका को किसी तरह से नजर अंदाज नही किया जा सकता....हाँ ये अलग बात है भरूच में कांग्रेस लगातार ४ लोक सभा चुनाव हारती जा रही है फिर भी हर गुजरात में होने वाले हर छोटे बड़े चुनाव में टिकटों कर बटवारा अहमद पटेल की सहमती से होता आया है जो यह बतलाने के लिए काफी है कि आज पार्टी में उनका सिक्का कितनी मजबूती के साथ जमा हुआ है ....
 
आज गुजरात मे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष  के तौर पर अर्जुन मोधवाडिया कांग्रेस की हर एक चुनावो मे लगातर करारी हार के वावजूद यदि अध्यछ है तो सिर्फ और सिर्फ अहमद भाई की कृपादृष्टि से ही ...पिछले २३ सालो से गुजरात मे कांग्रेस खत्म हों चुकी है ..फिर भी जो भी नेता अहमद भाई को खुश कर देता है उसे पद मिलना तय है ..
 
अहमद पटेल की ताकत की एक मिसाल २००४ में देखने को मिली जब पहली बार कांग्रेस यू पी ऐ १ में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी .... इस कार्यकाल में सोनिया के "यसबॉस " मनमोहन बने ओर वह अपनी पसंद के मंत्री को विदेश मंत्रालय सौपना चाहते थे लेकिन दस जनपद गाँधी पीड़ी के तीसरे सेवक कुवर नटवर सिंह को यह जिम्मा देना चाहता था लेकिन मनमोहन नटवर को भाव देने के कतई मूड में नही थे.....
 
जहाँ इस नियुक्ति में मनमोहन सिंह की एक ना चली वही नटवर के हाथ विदेश मंत्रालय आ गया ....मनमोहन का झुकाव शुरू से उस समय अमेरिका की ओर कुछ ज्यादा ही था.... लेकिन अपने कुंवर साहब ईरान और ईराक के पक्षधर दिखाई दिए....
 
कुंवर साहब अमेरिका की चरण वंदना पसंद नही करते थे और परमाणु करार करने के बजाए ईरान के साथ अफगानिस्तान , पकिस्तान के रास्ते भारत गैस पाइप लाइन लाना चाहते थे ... इस योजना में कुंवर साहब को गाँधी परिवार के पुराने सिपाही मणिशंकर अय्यर का समर्थन था ......वही मणिशंकर जो आज कांग्रेस पार्टी को सर्कस कहने और उसके कार्यकर्ताओ को जोकर कहने से परहेज नही करते ......
 
कुंवर , मणिशंकर मनमोहन को १० जनपथ का दास मानते थे.....लेकिन समय ने करवट ली और "वोल्कर" के चलते नटवर ना केवल विदेश मंत्री का पद गवा बैठे बल्कि पार्टी से भी बड़े बेआबरू होकर निकल गए..... लेकिन इसके बाद भी मनमोहन अपनी पसंद के आदमी को विदेश मंत्री बनाना चाहते थे लेकिन १० जनपथ के आगे उनकी एक ना चली ....और प्रणव मुखर्जी को विदेश मंत्री की जिम्मेदारी मिली......प्रणव की नियुक्ति से परमाणु करार तो संपन्न हो गया लेकिन देश की विदेश नीति वैसे नही चल पाई जैसा मनमोहन चाहते थे.....लेकिन २००९ में जब अपने दम पर मनमोहन ने अपने को "मजबूत प्रधानमंत्री के तौर पर स्थापित किया तो दस जनपद के आगे उनकी चलने लगी.....
 
इसी के चलते मनमोहन ने अपनी दूसरी पारी में एस ऍम कृष्णा, शशि थरूर , कपिल सिब्बल को अपने हिसाब से केबिनेट पद की कमान सौपी......आई पी एल में थरूर के फसने के बाद जब १० जनपथ ने उनसे इस्तीफ़ा माँगा तब अकेले मनमोहन उनका बीच बचाव करते नजर आये......इस समय १० जनपथ की और से प्रधानमंत्री मनमोहन को जबरदस्त घुड़की पिलाई गई थी .....तब १० जनपथ की ओर से मनमोहन को साफ़ संदेश देते हुए कहा गया था आपको ओर आपके मंत्रियो को १० जनपथ के दायरे में रखकर काम करना होगा .....
 
यही नही अहमद पटेल ने तो उस समय शशि थरूर को लताड़ते हुए यहाँ तक कह डाला था वे यह ना भूले वह किसकी कृपा से यू पी ऐ में मंत्री बने है......दरअसल यह पूरा वाकया दस जनपथ में अहमद पटेल की ताकत का अहसास कराने के लिए काफी है....
 
दस जनपथ शुरुवात से नही चाहता कि मनमोहन को हर निर्णय लेने के लिए "फ्री हेंड" दिया जाए....अगर ऐसा हो गया तो मनमोहन अपनी कोर्पोरेट की बिसात पर सरकार चलाएंगे....ऐसी सूरत में आने वाले दिनों में कांग्रेस पार्टी क भावी "युवराज " के सर सेहरा बाधने में दिक्कतें पेश आ सकती है .....इसलिए कांग्रेस के सामने यह दौर ऐसा है जब उसके हर मंत्री की स्वामीभक्ति मनमोहन के बजाए १० जनपथ में सोनिया के सबसे विश्वासपात्र अहमद पटेल पर आ टिकी है...
एक दौर ऐसा भी था जब अहमद पटेल की पार्टी में उतनी पूछ परख नही थी......लेकिन जोड़ तोड़ की कला में बचपन से माहिर रहे अहमद पटेल ने समय बीतने के साथ गाँधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा बढ़ा ली और सोनिया के करीबियों में शामिल हो गए.....राजनीतिक प्रेक्षक बताते है कि पार्टी में अहमद पटेल के इस दखल को पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता पसंद तक नही करते लेकिन सोनिया के आगे इस पर कोई अपनी चुप्पी नही तोड़ता....
 
बताया जाता है अहमद पटेल की आंध्र के पूर्व दिवंगत सी ऍम राजशेखर रेड्डी से कम बनती थी..... दोनों के बीच ३६ का आकडा जगजाहिर था ...कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्य मंत्रियो में वह अकेले ऐसे थे जो अहमद पटेल के ज्यादा दखल का खुलकर विरोध करते थे......अब राजशेखर इस दुनिया में नही रहे इसका असर यह हुआ है अहमद पटेल ने पूरी पार्टी "हाईजेक" कर ली है....
 
यही वजह है उन्होंने दिवंगत राजशेखर के बेटे जगन मोहन के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला बनाकर उन्होंने इसमें सोनिया की सहमती ली है और अब मामले की सी बी आई जांच कराने में जुटे है .... आखिर बड़ा सवाल यह है इतने सालो से आन्ध्र की राजनीती में राजशेखर का जब वर्चस्व था तब कांग्रेस पार्टी को यह ध्यान क्यों नही आया कि रेड्डी के पास इतनी ज्यादा अकूत धन सम्पदा कैसे आई.....? कही कर नही यह कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रहा है......
कुलमिलाकर आज कांग्रेस में अहमद पटेल होने के मायने गंभीर हो चले है ....किसको मंत्री बनाना है ... किस नेता को अपने पाले में लाना है ... जोड़ तोड़ कैसे होगा ? यह सब अहमद पटेल की आज सबसे बड़ी ताकत बन गई है .....
 
अहमद की इसी काबिलियत के आगे जहाँ कांग्रेस हाईकमान नतमस्तक होता है वही बेचारे मनमोहन अपने मन की बेबसी के गीत गाते नजर आते है..... फिर अगर आज के दौर में कांग्रेस के कार्यकर्ता अगर यह सवाल पूछते है कि २४ अकबर रोड नाम मात्र का दफ्तर बनकर रह गया है तो जेहन में उमड़ घुमड़ कर कई सवाल पैदा होते है ..... कही न कही इसी के चलते पार्टी को आने वाले दिनों में मुश्किलों का सामना ना करना पड़ जाए....वैसे भी इस समय कांग्रेस के सितारे इस समय गर्दिश में है......
 
अहमद पटेल की असली मंशा .....
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अहमद पटेल की असली मंशा इस देश का इसलामीकरण करना है .. सच्चर कमिटी ,, और इस सदी का काला कानून "साम्प्रदायिकता हिंसा निवारण बिल " जो हिन्दुओ को इस देश मे गुलाम बनाने के लिए सोनिया गाँधी ने बनाया है उसके पीछे असली दिमाग अहमद पटेल का ही है .
 
आखिर अहमद पटेल हिन्दुओ से इतनी नफरत क्यों करते है ??
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असल मे कभी गुजरात मे कांग्रेस पार्टी का एक छत्र राज हुआ करता था ...१९८४ के चुनावों मे तो एक एतिहासिक परिणाम आया था जिसमे सभी सीटें कांग्रेस जीती थी ...फिर बाद मे जब संघ ने गुजरात मे गांव गांव अपनी पैठ बनाई तो कांग्रेस गुजरात मे खत्म हों गयी .. आज अगर गुजरात मे कांग्रेस सत्ता पर होती तो अहमद भाई का जलवा कुछ और होता ...इनके विरोधी धीरे धीरे राहुल गाँधी तक ये बात पहुचाने लगे कि अहमद पटेल तो खुद गुजरात मे कांग्रेस को जिन्दा नहीं कर पा रहे है ..
 
सवाल ये है कि आखिर गाँधी परिवार अहमद पटेल से इतना डरता क्यों है ?
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असल मे राजनितिक हलकों मे ये चर्चा है कि अहमद भाई के सीने मे गाँधी परिवार और खासकर सोनिया गाँधी के कई काले "राज " दफन है ..और ये राज अगर अहमद भाई ने खोल दिए तो पूरा गाँधी परिवार वेपर्दा हों जायेगा ..शायद यही कारण है कि बिना किसी जनाधार वाले किसी नेता जिसके गृहराज्य मे कांग्रेस खत्म हों चुकी हों ..जिसके गृह नगर भरूच मे चार साल से कांग्रेस हार रही हों उस नेता के सामने आज ताकतवर गाँधी परिवार भी नतमस्तक है ..
सबसे दुखद बात ये है कि ये अहमद पटेल ही कैश फोर वोट कांड का मास्टरमांइड है ..सभी किरदारों ने सीबीआई को बताया कि अहमद पटेल सी असली सूत्रधार है .. लेकिन सीबीआई की आज तक हिम्मत तक नहीं हुई की इससे एक बार पूछताछ तो करे ...


स्रोत : facebook

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