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नया धमाका

11/16/2010

आसन्न संकटों से खुद बाहर निकलेगा भारत

अपनी 1.2 अरब की आबादी को बेहतर जीवनस्तर उपलब्ध कराने के लिए संघर्ष कर रहा हमारा देश पहले ही कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है। यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे यहां, पिछले चार दशकों के दौरान अधिकांश समय महज लोक लुभावन और वोट बटोरू नारों से ही काम चलाया जाता रहा। 1970 के दशक में गरीबी हटाओ और 2000 के दशक में आम आदमी के नारे इसका उदाहरण हैं। परिणामस्वरूप वह तमाम सामाजिक मोर्चों पर पिछड़ा हुआ है। अगर बुनियादी ढांचे की बात करें तो सड़क परिवहन, ऊर्जा, आवास, सफाई, स्वच्छ जल तथा सामाजिक सुविधाओं में सभी स्तरों पर शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और प्रशासन के क्षेत्र में अनेकानेक सुधारों की आवश्यकता है। देश में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो बेरोजगार हैं या जिन्हें रोजगार नहीं दिया जा सकता। इसे आंकड़ों की बाजीगरी ही कहेंगे कि किसानों और स्वरोजगार करने वाले लाखों लोगों की बदौलत यह भयावह स्थिति थोड़ी राहत भरी दिखाई देती है। हाल के दिनों में सरकारों ने कई लोकप्रिय योजनाएं लागू करके इन स्थितियों में सुधार की कोशिश की है। इनके जरिए स्थितियों में कुछ सुधार तो हो सकता है लेकिन बहुत अधिक उम्मीद इसलिए नहीं है क्योंकि देश के करीब 80 करोड़ गरीब और ऐसे ही अन्य लोगों के लिए आवंटित की गई धनराशि वास्तव में उन तक पहुंच ही नहीं पाती है। इसके अलावा तमाम स्तरों पर भ्रष्टाचार इतना ज्यादा है कि जरूरतमंद लोगों तक सुविधाओं का लाभ नहीं पहुंच पाता। अगर वाकई में कोई ऐसी चीज है जो भारत को इस स्वनिर्मित संकट से बाहर निकाल सकती है तो वह है अपनी विशाल जनंसख्या की बौद्घिक और कारोबारी क्षमताओं का इस्तेमाल करते हुए अपनी जरूरतों के नए हल ढूंढ़ निकालना। सौभाग्यवश, 21वीं सदी वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग क्षेत्र की उपलब्धियों के मामले में भी बेहतर है। इसके अलावा ऐसी नई तकनीकों की खोज हो रही है जो विकासशील देशों द्वारा झेली जा रही कई तकलीफों को हल करने में मददगार साबित हो सकती हैं।
स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में जो नई तकनीक सामने आ रही हैं, उन्हें अगर सूचना प्रौद्योगिकी के साथ मिलाने में सफलता हासिल कर ली जाए तो ये तकनीक इतनी अधिक शक्तिशाली हो जाएंगी कि लाखों लोगों को तक कई तरह की स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से और कम लागत में पहुंचाई जा सकेंगी। एक और अच्छी बात यह है कि स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की रुचि में इजाफा हो रहा है। इस बीच देश में कई सकारात्मक बदलाव होने चाहिए ऐसे बदलाव जो माहौल में परिवर्तन लाएं। फिर चाहे वह प्राथमिक और द्वितीयक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता की बात हो या आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक तीव्रगामी करने की। स्वास्थ्य क्षेत्र में भुगतान को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के जरिए उल्लेखनीय काम किया जा रहा है। इस योजना के तहत पिछले दो वर्षों के दौरान 8 करोड़ स्मार्ट कार्ड जारी किए जा चुके हैं। वर्तमान में प्रतिदिन करीब 70,000 नए कार्ड जारी किए जा रहे हैं।   
शिक्षा के क्षेत्र में भी नई योजनाओं और नई पहलों की बदौलत शिक्षण का दायरा वर्तमान की तुलना में कई गुना बढ़ाया जा सकता है। इससे शिक्षकों की कमी और शिक्षण सुविधाओं के लिए बुनियादी ढांचे की मौजूदा समस्याओं का भी निराकरण हो जाएगा। कृषि के क्षेत्र में भी नई पहलों की पर्याप्त संभावना शेष है। न केवल जीन संवद्र्घित बीजों बल्कि जल संसाधनों के प्रबंधन, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और खेती के अन्य तरीके अपनाकर कृषि उत्पादकता और गुणवत्ता में इजाफा किया जा सकता है। इसका एक फायदा यह होगा कि उत्पादकता बढऩे पर कृषि क्षेत्र की कुछ जमीन नए उद्योगों, टाउनशिप, सड़क तथा अन्य बुनियादी क्षेत्र के विकास में दी जा सकती है। इसके अलावा विकसित तकनीक को लागू करके प्रशासन की पहुंच को आसानी से छोटे ब्लॉक स्तर के इलाकों तक प्रभावी तरीके से पहुंचाया जा सकता है।
अगर हम बजट आवंटन की बात करें तो विभिन्न सामाजिक योजनाओं के तहत हजारों करोड़ रुपये की राशि आवंटित की जाती है। इसके अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी की राशि को अगर शामिल किया जाए तो कुल मिलाकर हजारों करोड़ रुपये का बजट हर वर्ष आवंटित होता है। अगर शोध और नई पहल पर खर्च की जाने वाली राशि की बात की जाए तो यह उसकी तुलना में नगण्य होती है। इसके अलावा शोध एवं विकास के क्षेत्र में कॉरपोरेट टैक्स में विरले ही छूट दी जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इनमें से अधिकांश कार्यक्रम देश के समक्ष आसन्न चुनौतियों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए जाते हैं। प्रस्तावित नैशनल काउंसिल ऑन इन्नोवेशन का भी हो सकता है कि वही हाल हो जो हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा गठित अनेक परिषदों का हुआ है। होता क्या है इन परिषदों के अधिकांश सदस्य उन्हीं कारोबारों से पहले से ही जुड़े रहते हैं। जाहिर है उनके अंदर चीजों को लेकर उस कदर उत्साह नहीं होता। इसकी बजाय सरकार को कम से कम 10 या उससे अधिक ऐसे मुद्दों की पहचान करनी चाहिए जिनका मुकाबला करने के लिए नई पहलें की जानी चाहिए। उसके बाद इस संबंध में होने वाली खोजों के लिए जरूरी वित्तीय मदद उपलब्ध करानी चाहिए और नीतियां तय की जानी चाहिए। इन नए शोधकार्यों तथा खोजों का पूरा ध्यान उपर वर्णित राष्टï्रीय चुनौतियों का हल ढूंढऩे में लगानी चाहिए।

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