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नया धमाका

12/16/2010

97 हजार छोड़े, 76 आज तक नहीं छुड़ा पाए?

वास्तव में 1971 में 97 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था, 93 हजार ने नहीं। लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पूर्वी पाकिस्तान में 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जो विश्व इतिहास का दूसरा बड़ा सैनिकों का समर्पण है। इससे पूर्व द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लगभग 2 लाख से ऊपर सैनिकों ने समर्पण किया था। पर किसी एक देश के सामने किसी दूसरे देश के सैनिकों का इतना बड़ा समर्पण अपने आपमें अकेली और ऐतिहासिक घटना है। इसके अलावा पश्चिमी कमान (जम्मू-पंजाब-राजस्थान सीमा) में भी 3703 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने समर्पण किया था। इसके साथ ही भारत ने पाकिस्तान के (बंगलादेश सीमा पर नहीं, पश्चिमी सीमा पर) 9,047 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पर भी कब्जा कर लिया था जिसमें उसके 90 गांव थे। भारत सरकार चाहती तो पाकिस्तानी सैनिक और उसकी जमीन को छोड़ने के बदले पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए एक तिहाई कश्मीर को उसके कब्जे से मुक्त करा सकती थी। पर उसने ऐसा नहीं किया। सीमा पर सैनिकों की जीत को नेताओं ने बातचीत की मेज पर हरा दिया।
सेवानिवृत्ति के बाद 1991 में मैंने और कुछ साथियों ने मिलकर "मिसिंग डिफेंस पर्सनल्स" के नाम से संस्था शुरू ही इसलिए की थी कि 1971 के समय पाकिस्तान ने हमारे जो सैनिक पकड़े थे, उन्हें आज तक नहीं छोड़ा है। वे वहां बर्बर और घोर अमानवीय अत्याचार सह रहे हैं। हमारे प्रयासों से यह विषय 15 से अधिक बार संसद में उठ चुका है। हमारी संस्था सभी सांसदों, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से गुहार लगा चुकी है। हम यह मामला जनहित याचिका के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय और वैश्विक न्यायालय तक ले गए। पर चूंकि हमारे केन्द्रीय नेतृत्व में ही आत्मसम्मान और इच्छाशक्ति का अभाव है, इसलिए वह इस विषय में कुछ करना नहीं चाहते। यही कारण है कि 1971 के 54 भारतीय युद्धबन्दी और उसके बाद पकड़े गए 22 भारतीय सैनिक, कुल मिलाकर 76 भारतीय सैनिक पाकिस्तानी जेलों में यातनाएं सह रहे हैं। इन 76 सैनिकों की संख्या तो भारत की सरकार भी संसद में स्वीकार कर चुकी है। 1971 के 54 युद्धबंदियों में से 22 वायु सेना के पायलट भी हैं। हम यह विषय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र, न्यायमूर्ति वेंकटचलैया और न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा के सामने भी उठा चुके हैं। पर इन सबके जवाब यही होते हैं कि विदेश मंत्रालय ऐसी किसी जानकारी से इनकार करता है। और विदेश मंत्रालय तथा भारत की सरकार कहती है कि पाकिस्तान उसके यहां किसी भी भारतीय युद्धबंदी के होने से इनकार करता है। पाकिस्तान तो दिल्ली, मुम्बई सहित देश भर में हो रहे बम विस्फोटों और आतंकवादी हमलों में भी अपना हाथ होने से इनकार करता है, तो क्या वह सच बोलता है। पाकिस्तान की जेलों में भारतीय सैनिक हैं, इसके अनेक ठोस सबूत हैं। 1971 के दौरान पाकिस्तान में नियुक्त रहे अमरीकी जनरल जैक यैकर ने अपनी पुस्तक में भारतीय युद्धबंदियों के बारे में लिखा है कि उसने इन युद्धबंदियों से पूछताछ की थी। बीबीसी की संवाददाता विक्टोरिया स्कोफील्ड ने अपनी पुस्तक, जो पाकिस्तान से ही प्रकाशित हुई है, "भुट्टो ट्रायल एण्ड एक्जीक्यूशन" में बताया है कि जिस जेल में जुल्फीकार अली भुट्टो को बंद रखा गया था वहां रात को मारने-पीटने और रोने की आवाजें आती थीं, जिससे भुट्टों सो नहीं पाते थे। जब इस संवाददाता ने जेलर से पूछा कि वे कौन हैं तो पता चला कि वे भारतीय युद्धबंदी हैं। 1989 में पाकिस्तान में हुए सार्क सम्मेलन में पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने हमारे प्रधानमंत्री राजीव गांधी से 41 युद्धबंदी होने की बात स्वीकारी थी जबकि राजीव गांधी 43 कह रहे थे। यदि 41 भी थे तो वे अब कहां हैं? ऐसे और भी अनेक दस्तावेजी सबूत हैं, बंदियों के नाम भी पता हैं। पर जब तक भारत की सरकार मजबूत इच्छाशक्ति से इस विषय पर विचार नहीं करेगी, इस विषय को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा नहीं बनाएगी, पाकिस्तान पर अन्तरराष्ट्रीय दबाव नहीं बनाएगी, तब तक न तो पाकिस्तान अधिकारिक रूप से इन युद्धबंदियों के होने की बात स्वीकार करेगा और न ही वह छोड़ेगा। और हम जीत के गर्व के साथ इस शर्म से भी उबर नहीं पाएंगे कि 97 हजार छोड़कर भी हम 76 को नहीं छुड़ा पाए।
(साभार पांचजन्य  में कर्नल (से.नि.) राजकुमार पट्टू, कार्यकारी अध्यक्ष, मिसिंग डिफेंस पसर्नल्स रिलेटिव्स ऐसोशिएशन)

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