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नया धमाका

11/29/2010

कभी चलाते थे रिक्शा, अब बन गए माननीय

सहरसा। कहते हैं हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए खुदा यानी जिसमें कुछ कर गुजरने का हौसला है तो भगवान भी उसकी मदद करता है। यह कहावत सहरसा की सोनवर्षा सुरक्षित सीट से विधायक बने रत्नेश सादा पर सौ फीसदी सटीक बैठती है। परिवार की गाड़ी चलाने के लिए कभी उन्होंने रिक्शा भी खींचा था। लेकिन हिम्मत नहीं हारे। गरीबी और अभाव के आगे घुटने नहीं टेके। चुनौतियों का आगे बढ़कर मुकाबला किया। परिणाम आज सबके सामने है। रत्नेश सादा जदयू के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़कर 31 हजार से अधिक मतों से विजयी हुए।
रत्नेश की जिदंगी गरीबी व मुफलिसी में बीती। महिषी ब्लाक की कुंदह पंचायत अंतर्गत गांव बलिया सिमर निवासी रत्नेश तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं। पढ़ने व आगे बढ़ने की ललक हमेशा से रही। उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की। रत्नेश के पिता लक्ष्मी सादा ने कहा कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है। खेती-बारी व मजदूरी कर उन्होंने बेटे को शिक्षित बनाया। रत्नेश का राजनीति से शुरू से ही जुड़ाव रहा, लेकिन परिवार की गाड़ी खींचने के लिए उसने रिक्शा तक चलाया, मजदूरी की। मां रश्मा देवी ने कहा कि नीतीश बाबू के कारण ही उनका बेटा इस मुकाम पर पहुंचा है। अपने बेटे को जनता व शुभचिंतकों का प्यार मिलने पर वह खुद को कर्जदार बताती हैं। पत्नी सरस्वती देवी के मुताबिक उनकी जिंदगी गरीबी में व्यतीत हुई है। गरीबों के उत्थान का सपना रत्नेश के मन में है। कुंदह गांव के मुहम्मद शकील ने बताया कि रत्नेश बचपन से ही संघर्षशील थे। वर्तमान में विधायक सादा कहरा ब्लॉक के सराही में फूस की झोपड़ी में सपरिवार रहते हैं। उनके तीन पुत्र व एक पुत्री है। सादा ने वर्ष 2001 में कुंदह पंचायत से मुखिया का चुनाव व 2005 में झंझारपुर से विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन दोनों ही चुनाव हार गए थे। रत्नेश सादा ने कहा कि राजनीति पैसे के बल पर होती है, ये सभी कहते थे। पर हमने गरीबी में भी राजनीति की और बिना पैसे के लोगों के सहयोग व आशीर्वाद से यह मुकाम हासिल किया। इससे पहले सादा ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराकर उनकी सेवा करते थे। उन्होंने कहा कि वे लोगों की सेवा करते रहेंगे, भले ही उसका तरीका बदल गया हो।

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