औरंगजेब के शासनकाल में एक घटना हुई .जब जजिया उसने लगा दिया तो राजधानी की जनता उससे निजात पाने के लिए बादशाह से रहम की भीख मांगने पहुची , बादशाह हाथी पर सवार होकर निकल रहा था लोगो ने कहा की अगर वह उन्हें जजिया जैसे अमानवीय कर से मुक्त नहीं करेगा तो वे उसके रास्ते पर लेट जायेंगे .और आम जन ने ऐसा ही किया .. इसपर उस निष्ठुर सम्राट ने अपने महावत से कहा की हाथी उनके ऊपर से ही निकाल दे क्योकि जजिया नहीं हटेगा .. और परिणाम स्वरुप सैकड़ो लोग हाथी के नीचे आकर मारे गए '
'कोई भी काल रहा हो इस देश में नेतृत्व जिनके भी हाथो में रहा वे जवाबदेह रहे और जनता के सामने आकर शासन या जुल्म करते रहे'
चार जून से जो घटनाक्रम चल रहा है उसपर चर्चा तो होती ही रहेगी पर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा की लोकतंत्र की राजधानी में शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे एक लाख लोगो पर इतना बड़ा गैर-लोकतान्त्रिक ,कायराना और मध्यकालीन बर्बरता को पीछे छोडऩे वाला कुकृत्य हुआ ..सारा देश ,, सारे राजनीतिक दल आश्चर्य से सरकार के सामने प्रश्नवाचक मुद्रा में खड़े है .. और अभी तक कितने दिन हो गए पर देश के तथाकथित संवैधानिक प्रमुख न जाने किस कुम्भकरणीय निद्रा में है . अभी तक उन्होंने राष्ट्र के सामने आने की जरुरत नहीं समझी शायद वे किसी विशेष निर्देश का इंतज़ार कर रहे है .. और देश को 2 -3 बेहद अतार्किक .चापलूस चारणों के हवाले कर रखा है .. उनपर राष्ट्र क्या विश्वास करे ये समझ में नहीं आता,
एक तरफ दिग्विजय सिंह जैसे महामूर्ख और मानसिक रूप से पैदल चारण परंपरा के प्रति पूर्ण निष्ठ मंत्री है जो लादेन जैसे नरभक्षियों को लादेन जी संबोधित करते है तो दूसरी तरफ कपिल सिब्बल जैसे धूर्त राजनीतिज्ञ है जिनकी कुटिलता 2 जी और राष्ट्रमंडल मामलो में ही पता चल गई, मुझे संदेह नहीं की अगर लादेन का शव अमेरिका ले नहीं जाता और पाकिस्तान में कही उसकी अंतिम क्रिया होती तो और कोई जाता या नहीं पर दिग्विजय सिंह जरुर जाते ..और ऐसा व्यक्ति रामदेव ,गोविन्दाचार्य और अन्ना हजारे जैसे राष्ट्रीय रोल माडलों को ठग बता रहा है तो वह महामूर्ख या महा ठग ही कहा जायेगा ..
मै एक बात स्पष्ट करना चाहता हु की मै किसी का अंध-समर्थक नहीं , मै अन्ना हजारे के, 10 मई को के.एन गोविन्दाचार्य जी के समर्थन में और 4 जून को रामदेव जी के भी अनशन का समर्थक रहा हूं। .. क्योकि मेरे और हर जागरूक देशवासी के लिए अन्ना हजारे , गोविन्दाचार्य या रामदेव से ज्यादा महत्वपूर्ण है वह मुद्दा जिसके लिए वे लड़ रहे है, और जहा तक हम जानते है लोकशाही में धरना प्रदर्शन करना अपराध नहीं बल्कि लोकतंत्र का खाद - पानी कहा जाता है .. और दुनिया को सत्याग्रह सिखाने वाले गाँधी के देश में हुए इस शांतिपूर्ण सत्याग्रह पर नादिरशाही आक्रमण अक्षम्य है.
किसने किसे ठगा .कितना ठगा ये पुरे देश ने देखा .. जिस देश में सर्वोच्च पदों पर महिलाये आसीन हो..उसके शाशन में आधी रात को महिलाओं को उठाकर पीट पीट कर घसीटा जाये , संतो को नग्न करके अपमानित किया जाये .देश की राष्ट्रपति और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गाँधी के लिए इससे शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता . पूरा घटनाक्रम इस तरह हुआ मानो रामलीला मैदान में सत्याग्रह कर रहे रामदेव और सत्याग्रही नहीं बल्कि लादेन और उसका ट्रेनिंग कैम्प हो।
कहा पर है कांग्रेस की सम्राज्ञी और देश के सामने आम आदमी का मसीहा कहलाने वाले युवराज ??.क्या आधी रात को बच्चो , महिलाओं निर्दोष निहत्थे लोगो पर हो रही तालिबानी कार्यवाही की चीखे उनके कानो तक नहीं पहुची या फिर रामलीला मैदान में बैठे सत्याग्रही उनकी प्रजा नहीं थे ?
मेरा विषय न तो दिग्विजय सिंह है और न रामदेव .. मेरा विषय सिर्फ ये है की देश के लोकतंत्रक मूल्यों पर हुए इस आक्रमण से लोकतंत्र कराह रहा है और हमारा नीरो न जाने कहा चैन की बंसी बजा रहा है.???? क्या आपको पता है?
अभी तो कालेधन के स्त्रोत और मालिकों के नाम तो सामने आने दो फिर सोनिया कहेगी कि मैं मायके चली जाउंगी तुम देखते रहियो और युवराज फरमायेगे कि मेरी मम्मी कहा चली गई, अंत में नीरों बेचारा यही तो कहेगा परदेसियों से ना अखियां मिलाना
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