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नया धमाका

12/02/2010

लालू, पासवान और राहुल बाबा हकीम लुकमान की दुकान में

शीर्षक से आप मेरे स्वास्थ्य को लेकर भ्रमित न हों। यह आंखों देखा हाल मेरे एक बिहारी मित्र ने सुनाया है।
हकीम लुकमान हर दिन की तरह अपनी दुकान पर आये, तो हर दिन से अधिक रोगी दिखाई दिये। इतना ही नहीं, कई अति विशिष्ट जन (वी.आई.पी) भी प्रतीक्षा में था। हकीम साहब ने पहले उन्हें निबटाना ठीक समझा। पहला नंबर लालू जी का था।
लालू - हकीम साहब, क्या बताऊं, दिल टांग टूटी भैंस जैसा बैठ गया है। आवाज नहीं निकल रही। आंखें लालटेन की रोशनी में भी ठीक नहीं देख पा रहीं। सब ओर अंधेरा सा लगता है। मेरा माई समीकरण उड़न फ्लाई हो गया।
हकीम - सुबह नंगे पांव हरी घास में टहलिये, पर इससे आगे न बढ़ें। सुना है घास देखते ही आपके पूर्वजन्म के संस्कार जाग जाते हैं। मैं नुस्खा देता हूं। राबड़ी जी इसे बनाकर खिलाएंगी, तो कुछ ठीक लगने लगेगा।
लालू - राबड़ी की बात न कहें। खाना बनाने को कहते ही वह खाने को दौड़ती है। दोनों सीटों से क्या हारीं, दोनों हाथ और पांव सुन्न हो गये हैं। दोनों भाई भी हार गये। जनता ने मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। मुझसे भी घूंघट करने लगी है।
अगला नंबर पासवान जी का था - मेरी हालत तो और भी खराब है हकीम साहब! मुंह कुएं सा सूख रहा है। मुसलमानों के लिए मैंने क्या नहीं किया? पिछले चुनाव में ओसामा बिन लादेन जैसा आदमी साथ लेकर घूमा, पर तब की तरह इस बार भी वे दगा दे गये। मेरे भाई, भतीजे, दामाद सब हार गये। फोन करता हूं, तो काट देते हैं। मेरी मेल गाड़ी तो पैसेंजर भी नहीं रही। जनता ने घर से बेघर कर दिया।
हकीम - मैं दवा देता हूं, पर इसके साथ आपको अगले पांच साल आगे की बजाय, पीछे की ओर मुंह कर टहलना होगा।
तभी गाड़ियों के शोर के बीच राहुल बाबा का प्रवेश हुआ।
राहुल - हकीम साहब ! कुछ दवा मुझे भी दें। मेरा तो सारा भविष्य ही बिहार ने चौपट कर दिया। जहां-जहां मैंने प्रचार किया, वहां जीत तो दूर, कांग्रेस चौथे नंबर पर पहुंच गयी। शून्य से शुरू करने की बात कही थी, तो जनता ने उसके पास ही पहुंच दिया। पैरों पर खड़े होने के चक्कर में हाथ भी गंवा बैठे। युवक और युवतियों के चक्कर में कालेजों में धक्के खाये, पर अब वे मुझे देखते ही मुंह फेर लेते हैं। जिस विदेशी लड़की से बात चल रही थी, उसने भी कई दिन से फोन नहीं किया।
हकीम - आप युवा है, जल्दी ठीक हो जाएंगे। टहलना आपको भी जरूरी है, पर पैर की बजाय हाथ के बल चलने से लाभ जल्दी होगा। इससे हाथ मजबूत होंगे और आप राजा, कलमाड़ी आदि को विरोध के बावजूद साथ रख सकते हैं।
राहुल - क्या मम्मी के लिए भी कोई नुस्खा है ? उनके चेहरे की तो पलिश ही उतर गयी है।
हकीम - बिना देखे मैं दवा नहीं देता। वैसे उनका इलाज भारत की बजाय इटली में हो, तो अधिक अच्छा रहेगा।
तभी हकीम साहब के पुत्र ने आकर कहा कि नीतीश जी आपसे फोन पर बात करना चाहते हैं।
हकीम - उन्हें क्या परेशानी हो सकती है। वे तो खुद इन सबकी परेशानी का कारण हैं। फिर भी बात कराओ।
नीतीश - हकीम साहब ! बधाई और मिठाई तो बहुत मिल रही हैं। मेरी इच्छा थी कि भाजपा का ग्राफ कुछ गिरे, जिससे वे काबू में रहें। इसके लिए नरेन्द्र मोदी तक का अपमान किया, पर उन्होंने तो 90 प्रतिशत सीट जीतकर मुझे भी पछाड़ दिया। तीर की चुभन औरों के साथ मुझे भी महसूस हो रही है।
हकीम - देखो भाई, भारत और भारतीय जनता के मूड का कुछ पता नहीं लगता। धूल भी लात खाकर मुंह गंदा कर देती है। भाजपा वालों ने जो पाठ पढ़ाया है, इसे समझने का प्रयास करो।
नीतीश - पर इसकी दवा.. ?
हकीम - एक शेर सुनो। इसे हर दिन दोहराना ही काफी है।
मोहब्बत में सियासत की गंदगी न मिला
गर गले मिल नहीं सकता, तो हाथ भी न मिला।।
                                                                                                                           ( साभार पांचजन्य)

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह मजा आ गया, बिहार में एनडीए गठबंधन द्वारा जो धुआधार बल्लेबाजी की गई है उसे याद करके सपने में भी ये तीनों सिहर उठते होगे

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