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नया धमाका

11/17/2010

सोनिया का सच और भाजपा का दोगला चरित्र

सोनिया का सच और भाजपा का दोगला चरित्र
10 नवम्बर 2010 को जब संघ द्वारा देशव्यापी धरने दिए जा रहे थे तो आडवाणीजी सोनिया के साथ गुफतगू कर रहे थे
सुदर्शन जी के इस बयान से भाजपा का ऐसा कौन सा राजनैतिक नुकसान होने वाला था कि ये लोग चुप्पी साध गये? नरेन्द्र मोदी सिर्फ़ अपने साफ़-सुथरे काम के कारण ही प्रसिद्ध नहीं हैं, बल्कि इसलिये भी लोकप्रिय हैं कि वह "कांग्रेस के पैगम्बर" पर सीधा शाब्दिक और मर्मभेदी हमला बोलते हैं, जबकि दिल्ली में विपक्ष के दिग्गज(?) चाय-डिनर पार्टियों में व्यस्त हैं। सामान्य हिन्दूवादी कार्यकर्ता के मन में अब यह रहस्य गहराता जा रहा है कि आखिर भाजपा के नेता कांग्रेस और सोनिया के प्रति इतने "सॉफ़्ट" क्यों होते जा रहे हैं?
संघ के बुज़ुर्ग श्री सुदर्शन जी ने सोनिया के सम्बन्ध में जो वक्तव्य दिया है, उसके मद्देनज़र कांग्रेसियों द्वारा धरने-प्रदर्शन-आंदोलन-पुतले जलाओ प्रतियोगिता एवं धमकियों का दौर जारी है। कांग्रेसी वही कर रहे हैं जो पैगम्बर का कार्टून बनाने पर मुस्लिमों ने किया, क्योंकि गाँधी परिवार, कांग्रेसियों के लिये पैगम्बर है और उनके बिना कांग्रेस का कोई अस्तित्व ही नहीं है… तात्पर्य यह कि कांग्रेसी तो अपने "आजन्म चमचागिरी" के धर्म का पालन करते हुए अपना काम बखूबी कर रहे हैं…। परन्तु संघ-भाजपा का रवैया अप्रत्याशित है…

भाजपा से तो उम्मीदें उसी दिन से टूटना शुरु हो गई थीं जिस दिन नपुंसकता दिखाते हुए कंधार में इन्होंने दुर्दान्त आतंकवादियों को छोड़ा था, परन्तु अब जिस तरह से सोनिया बयान मामले पर संघ के नेताओं ने एक पूर्व सरसंघचालक और वरिष्ठ नेता से अपना पल्ला झाड़ा है वह घोर आश्चर्य और दुख की बात है। संघ के इस "बैकफ़ुट" से एक आम हिन्दूवादी कार्यकर्ता तथा एक स्वयंसेवक का मन तो आहत हुआ ही है, मेरे जैसे मामूली ब्लॉगर (जो संघ का सदस्य भी नहीं है, और न ही पत्रकार है) का मन भी बेहद खिन्न और आहत है।  सुदर्शन जी ने जो कहा उसमें मामूली (अर्थात केजीबी की एजेण्ट कहने की बजाय CIA कहना) गलती हो सकती है, परन्तु सुदर्शन जी के इस बयान के पीछे की मंशा और भावना को समझना और उनका पूर्ण समर्थन करना, न सिर्फ़ संघ बल्कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की भी जिम्मेदारी और कर्तव्य बनता था, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। जिस तरह कांग्रेसियों ने अपने "पैगम्बर" के पक्ष में सड़कों पर प्रदर्शन किया, वैसा ही भाजपा-संघ को उतने ही पुरज़ोर तरीके से करना चाहिये था, क्योंकि आखिर सोनिया के बारे में कही गई यह बातें कोई नई बात नहीं है। विभिन्न जगहों पर, विभिन्न लेखकों ने सोनिया के बारे में कई तथ्य दिये हैं जिनसे शक गहराना स्वाभाविक है, परन्तु भाजपा के नेता कांग्रेसियों के पहले हमले में ही इतने डरपोक और समझौतावादी बन जायेंगे ऐसी उम्मीद नहीं थी।

विगत 10-20 वर्ष से जिस तरह डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी लगातार एकाकी रुप से इस "विख्यात"(?) परिवार के खिलाफ़ काम कर रहे हैं, सबूत जुटा रहे हैं वह सराहनीय है… यदि संघ-भाजपा वालों को डॉ स्वामी से कोई निजी खुन्नस है तो इसका मतलब यह नहीं कि उनके द्वारा कही और लिखी गई बातों पर कोई ध्यान ही न दें… सुदर्शन जी को जिस तरह तूफ़ान और मंझधार में अकेला छोड़कर सभी भाजपाई भाग खड़े हुए वह निंदनीय है,  भाजपाईयों को डॉ स्वामी से कुछ तो सीखना ही चाहिये। बहरहाल, सोनिया-राहुल सहित समूचे गाँधी परिवार के बारे में डॉ स्वामी ने जो तथ्य दिये हैं, उन्हें मैं यहाँ संकलित करने की कोशिश कर रहा हूं… शायद संघ-भाजपा के नेता इस पर पुनर्विचार करें और अपने रुख में परिवर्तन करें…
सोनिया गाँधी ने भारत की नागरिकता बाद में ग्रहण की जबकि मतदाता सूची में उनका नाम पहले ही (1980 में ही) आ गया था…ऐसा कैसे हुआ? कभी भाजपा के सांसदों ने इस मुद्दे पर संसद में बात उठाई? (दस्तावेज़ देखें) सोनिया ने अपने जन्म स्थान के बारे में झूठ बोला, कि उनका जन्म ओरबेस्सानो में हुआ, जबकि बर्थ सर्टिफ़िकेट के अनुसार, जन्म लुसियाना में हुआ, लुसियाना की बात छिपाने का मकसद मुसोलिनी से सोनिया के पिता का सम्बन्ध उजागर होने से बचाना था या कुछ और? शपथ-पत्र में झूठ बोलना तो एक अपराध है फ़िर सोनिया ने लोकसभा सचिवालय को दिये अपने शपथ पत्र में यह क्यों छिपाया कि वह बहुत कम पढ़ी-लिखी हैं और उन्होंने कैम्ब्रिज से सिर्फ़ एक अंग्रेजी भाषा सीखने का डिप्लोमा किया है न कि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से, दोनों संस्थाओं में ज़मीन-आसमान का अन्तर है… (दस्तावेज़ की प्रति डॉ स्वामी की वेबसाइट से…)
इटली के कानूनों के मुताबिक इटली की नागरिक महिला से होने वाले बच्चे भी स्वयमेव इटली के नागरिक बन जाते हैं चाहे वह महिला कहीं भी रह रही हो। जिस समय राहुल (Raul) और प्रियंका (Bianca) का जन्म हुआ उस समय सोनिया भारत की नागरिक नहीं थी। उसके बाद कई वर्ष तक राहुल और प्रियंका ने इटली के पासपोर्ट पर भारत से बाहर यात्रा की (सन्दर्भ डॉ स्वामी का वीडियो…)। भाजपा वाले कान में मिट्टी का तेल डालकर क्यों सोते रहे? आज भी यह स्पष्ट नहीं है कि राहुल ने इटली की नागरिकता कब छोड़ी? या अभी भी दोहरी नागरिकता रखे हुए हैं? तेज़तर्रार कहलातीं सुषमा स्वराज ने इस मुद्दे पर कितनी बार धरना दिया है? ऐसा भी नहीं कि अकेले डॉ स्वामी ही बोल रहे हैं, जर्मनी की पत्रिकाओं तथा रुस के अखबारों में भी इस "पवित्र परिवार" के बारे में कई संदिग्ध बातें प्रकाशित होती रही हैं… (नीचे देखिये "द हिन्दू" दिनांक 4 जुलाई 1992 में प्रकाशित रूसी पत्रकार व्लादिमीर रेद्युहिन की अनुवादित रिपोर्ट जिसमें राजीव को KGB से मदद मिलने की बात कही गई है…)

ऐसे न जाने कितने संवेदनशील मुद्दे हैं जिन पर भाजपा-संघ को उग्र प्रदर्शन करना चाहिये था, कोर्ट केस करना चाहिये था, संसद ठप करना था… लेकिन कभी नहीं किया…। "सदाशयता" और "लोकतन्त्र की भावना" के बड़े-बड़े शब्दों के पीछे छिपे बैठे रहे। क्या भाजपा का यह फ़र्ज़ नहीं कि वे कांग्रेस के पैगम्बर पर निगाह रखें, उनके खिलाफ़ सबूत जुटायें, देश से विदेशों से अपने सम्पर्क सूत्रों के बल पर कांग्रेस को परेशान करने वाले मुद्दे खोजकर लायें? या विपक्ष में सिर्फ़ इसलिये बैठे हैं कि कभी न कभी तो जनता कांग्रेस से नाराज़ होगी तो घर बैठे पका-पकाया फ़ल मिल ही जायेगा?   भाजपा वालों को समझना चाहिये कि कांग्रेस या वामपंथियों के साथ "मधुर सम्बन्ध" बनाने की कोशिश करेंगे तो पीठ में छुरा ही खायेंगे…। शिवराज सिंह चौहान ने राहुल गाँधी की मप्र यात्रा में उसे "राजकीय अतिथि" का दर्जा दिया… बदले में राहुल ने भोपाल में ही संघ की तुलना सिमी से कर डाली। उधर नीतीश बाबू ने भाजपा के साथ मिलकर जमकर सत्ता की मलाई खाई, जब चुनाव की बारी आई तो "नरेन्द्र मोदी को बिहार में नहीं घुसने देंगे" कहकर भाजपा को हड़का दिया… भाजपा वाले भी घिघियाते हुए पिछवाड़े में दुम दबाकर नीतीश की बात मान गये, भाजपा की नीतियाँ क्या नीतीश तय करेंगे कि कौन प्रचार करेगा, कौन नहीं करेगा? पहले भी ऐसा कई बार हो चुका है कि भाजपा की राज्य सरकारों के आश्रय में वामपंथी साहित्यकारों का सम्मान कर दिया जाता है, जबकि वही कथित "गैंगबाज" साहित्यकार हॉल से बाहर आकर संघ और हिन्दुत्व को गाली दे जाते हैं।
सुदर्शन जी के बयान के मद्देनज़र पहली बार कांग्रेस से सीधी लड़ाई का माहौल बना था, लेकिन अपना पल्ला झाड़कर संघ और भाजपा के लोग मैदान से भाग लिये… ऐसे कैसे पिलपिले विपक्ष हैं आप? क्या ऐसे होगी विचारधारा की लड़ाई? उधर एमजी वैद्य साहब सोनिया गाँधी को मानहानि का मुकदमा दायर करने की सलाह देकर, पता नहीं अपनी कौन सी पुरानी कुण्ठा निकाल रहे हैं। बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ और अनुभवी लोग संघ-भाजपा में बैठे हैं, क्या मेरे जैसे अदने से व्यक्ति को यह समझाना पड़ेगा कि राजनीति में प्रेम और मधुर सम्बन्ध नहीं बनाया जाता, कांग्रेस तो मीडिया और भ्रष्टों को अपने साथ रखकर बखूबी अपना खेल निर्बाध गति से चला रही है, फ़िर हिन्दुत्ववादी शक्तियों(?) को पाला क्यों मार जाता है? हिन्दुत्व को मजबूत करने के लिये हजारों लोग निस्वार्थ भाव से मैदानों में, स्कूलों में, सार्वजनिक जीवन में, पुस्तकों एवं इंटरनेट पर, संघ से एक भी पैसा लिये बगैर काम कर रहे हैं, कभी उनके मनोबल के बारे में सोचा है?

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