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नया धमाका

11/08/2010

देशहित से दलहित को ज्यादा महत्व

बुधवार यानि 20 अक्टूबर 2010 को भारत सरकार ने शत्रु सम्पति संशोधन विधेयक को अपनी सहमति प्रदान कर दी। इसके साथ ही देशभर में भारत विभाजन के घाव पफर से हरे होते प्रतीत होते है। यह देश का दुर्भाग्य ही है कि कांग्रेस की अगुवाई वाली वर्तमान संप्रग सरकार देशहित से ज्यादा महत्व स्वदलहित को दे रही है। स्वहित यानी अपना वोट बैंक बनाने में लगी है, और देश की चिन्ता इस सरकार को कतई नहीं है। वोट के लिए यह सरकार उन मुसलमानों की भी सम्पत्ति लौटाने के लिए तडफ़ड़ा रही है, जो भारत विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए थे। क्या कोई भी व्यक्ति, जो भारत का हित चाहेगा, वह ऐसा काम करेगा? बिल्कुल नहीं। किन्तु भारत सरकार शत्रु सम्पत्ति संशोधन एवं विधिमान्यकरण विधेयक 2010 में संशोधन करके लगभग ऐसा कर ही चुकी है। ध्यान रहे कि यह विधेयक गृह राज्यमंत्री अजय माकन द्वारा 2 अगस्त को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था। इस विधेयक का उद्देश्य था विभाजन के वक्त पाकिस्तान गए मुसलमानों और हिन्दुस्तान में रह रहे उनके सगे-सम्बंधियों को भारत स्थित अपने पुरखों की सम्पत्ति को हासिल करने से रोकना। मालूम हो कि विभाजन के समय जो मुस्लिम पाकिस्तान गए थे, उनकी सम्पत्ति को शत्रु सम्पत्ति घोषित कर सरकार ने उसे अपने कब्जे में रखा है। नेशनल इन्स्टीट्यूट आफ फाइनान्सियल मैनेजमेन्ट के एक अध्ययन के अनुसार पूरे देश में 2186 शत्रु सम्पत्तियां हैं। सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में 1468, पश्चिम बंगाल में 351, दिल्ली में 66, गुजरात में 63, बिहार में 40, गोवा में 35, महाराष्ट्र में 25, केरल में 24, आंध्र प्रदेश में 21 और अन्य राज्यों में 93 शत्रु सम्पत्तियां है। शत्रु सम्पंत्ति अधिनियम 1968 एवं सरकारी स्थान (अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखलीष् अधिनियम 1971 के अनुसार शत्रु सम्पत्ति पाकिस्तान गए लोगों के भारतीय वारिसों को भी नहीं मिल सकती। पर जैसा कि आज तक भारत में देखा गया है हर कानून में सुराग होता है। इसी सुराग का लाभ मुसलमान उठा रहे हैं। एक साजिश के तहत बंटवारे के समय पाकिस्तान गए मुसलमानों के वारिस भारत आ रहे हैं। यहां कुछ साल रहने के बाद अपने आपको भारतीय नागरिक बताकर अपने पुरखों की सम्पत्ति हासिल करने के लिए अदालत पहुंच रहे हैं। यही पाकिस्तान गए मुस्लिमों के भारत में रह रहे नाते- रिश्तेदार भी कर रहे है। एक जानकारी के अनुसार इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 2005 तक ऐसे 600 मामलों की सुनवाई हो चुकी है और इनमे मुसलमानों के पक्ष में निर्णय हुए हैं। अब प्रायः हर दिन एसे मामले न्यायालय पहुंच रहे हैं। इस तरह के मुकदमे सर्वाेच्च न्यायालय में 250 के आसपास और मुम्बई उच्च न्यायालय में करीब 500 मामला लम्बित हैं कई मामलों में तो न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि मुस्लमानों को उनके पुरखों की सम्पत्ति लौटाई जाए। एक ऐसा ही मामला है महमूदाबाद (उ. प्र. के पूर्व राजा अली खान के बेटे अमीर मोहम्मद खान का। उल्लेखनीय है कि अली खान मुस्लिम लीग को आर्थिक सहायता देने वालों में सबसे आगे था। उस समय उसने मुस्लिम लींग कोे 400 करोड़ रूपए (आज की कीमत में 80,000 करोड़ रु. दिए थे। विभाजन के समय अली खान पाकिस्तान गया और वहीं उसकी मृत्यु हो गई। उसके साथ में उसका बेटा अमीर मोहम्मद खान भी पाकिस्तान गया था। किन्तु कुछ वर्ष के बाद वह पाकिस्तान से इंग्लैण्ड और फिर भारत आ गया। इस बीच 1965 में भारत सरकार ने राजा महमूदाबाद की सम्पत्ति (सीताफर, लखनऊ, देहरादून, बहराइच, नैनीताल स्थित भवन और 400 हेक्टेयर जमीन को शत्रु सम्पत्ति घोषित कर अपने कब्जे में कर लिया। भारत आने के बाद अमीर मोहम्मद खान ने अपनी पैतृक सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए सर्वाेच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सर्वाेच्च न्यायालय में अमीर मोहम्मद खान की तरफ से वकालत की प्रसिद्ध कांगेसी नेता सलमान खुर्शीद ने। माना जा रहा है कि इस कारण सर्वाेच्च न्यायालय में भारत सरकार ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। परिणामस्वरूप सर्वाेच्च न्यायालय ने 2005 में अमीर मोहम्मद खान के पक्ष में निर्णय दिया। इसके बाद अमीर मोहम्मद खान को कई भवन लौटाए भी गए। ऐसी स्थिति देखकर अनेक मुस्लिमों ने अपने पुरखों की सम्पत्ति पर दावा ठोंकना शुरू किया। इन्हीं सबसे बचने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री ने शत्रु सम्पत्ति अधिनियम 1968 और सरकारी स्थान अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली अधिनियम- 1971 में संशोधन हेतु शत्रु सम्पत्ति (संशोधन और विधिमान्यकरण विधेयक 2010 तैयार किया और उसे लोकसभा में प्रस्तुत किया। इससे पूर्व राष्ट्रपति ने 2 जुलाई 2010 को शत्रु सम्पत्ति (संशोधन और विद्यिमान्यकरण अध्यादेश जारी किया ताकि मुस्लिमों को सम्पत्ति वापस न करनी पड़े। यह अध्यादेश विधि व न्याय, विदेश और वित्त मंत्रालयों की सलाह तथा केन्द्रीय मंत्रालयों की सलाह तथा केन्द्रीय मंत्रिमण्डल की स्वीकृति के बाद ही जारी हुआ था। 2 अगस्त को संसद में प्रस्तुत विधेयक इसी अध्यादेश का स्थान लेता। किन्तु लोकसभा में इस विधेयक के प्रस्तुत होते ही प्रायः सभी राजनीतिक दलों के मुस्लिम सांसद लामबंद हो गए। उन सबने एक स्वर से विधेयक को मुस्लिम विरोधी कहना शुरू किया और इसमें संशोधन की मांग की। सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए 4 अगस्त को अहमद पटेल, सलमान खुर्शीद, गुलाम नबी आजाद के साथ अनेक मुस्लिम सांसदों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भेंट की तथा इन सबने प्रधानमंत्री को यह समझाने का प्रयास किया कि यदि यह विधेयक पारित हो गया तो मुस्लिम कांग्रेस से बिदक जाएंगे। मुस्लिम सांसदों की यह दलील उन प्रधानमंत्री को तुरन्त जंच गई, जिनके नेतृत्व में सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी हदें तोड़ दी हैं। परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री ने विधेयक में संशोधन का आश्वासन दे दिया। इसके बाद दो दौर में फारूख अब्दुल्ला ई. अहमद, सलमान खुर्शीद आदि मुस्लिम नेताओं ने गृहमंत्री पी. चिदम्बरम से भी मुलाकात की। नतीजा यह हुआ कि गृह मंत्रालय ने विधेयक में संशोधन कर दिया और 16 अगस्त को केन्द्रीय मंत्रिमडल ने उसे मंजूरी भी दे दी। इस संशोधन के बाद पाकिस्तान गए मुस्लिमों के ऐसे रिश्तेदारों को जिन्होंने भारतीय नागरिकता ले ली है, उन्हें उनकी सम्पत्ति वापस दी जाएगी। ऐसा लगता है कि यह संशोधन अमीर मोहममद खान जैसे लोगों को ध्यान में रखकर किया गया है, क्योंकि अमीर मोहम्मद खान पहले पाकिस्तान का नागरिक बना, फिर भारत का। अब सरकार का प्रयास है कि इस विधेयक को जितनी जल्दी हो संसद से पारित कराया जाए। किन्तु राज्यसभा में सरकार अल्पमत में है। भाजपा के समर्थन बिना यह विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हो सकता है। इसलिए गृहमंत्री पी. चिदम्बरम भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली के इस सम्बंध में चर्चा कर चुके हैं। लेकिन भाजपा ने विधेयक में किए गए संशोधन पर कड़ी आपत्ति दर्ज की है और इसके विरोध का फैसला किया है। यही सरकार की गाड़ी फंसती दिख रही है, नहीं तो यह विधेयक पारित भी हो गया होता। भाजपा को छोडक़र किसी भी राजनीतिक दल ने इस संशोधित विधेयक का विरोध नहीं किया है इसलिए यह पारित हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। दुर्भाग्यवश यदि यह विधेयक पारित हो गया तो पूरे देश में भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। क्योंकि शत्रु सम्पत्ति के अधीन जितने भी भवन हैं, वे अभी सरकारी उपयोग में हैं। किसी में सरकारी कार्यालय हैं, तो किसी में सरकारी अधिकारी रहते हैं। कहीं विशाल बाजार स्थापित है। जैसे लखनऊ का बटलर पेलैेस यहां अभी वरिष्ठ सरकारी अधिकारी रहते हैं। इसका निर्माण राजा महमूदाबाद ने कराया था। न्यायालय के निर्णय के अनुसार यह भवन अमीर मोहम्मद खान को सौंपना पड़ सकता है। इसी तरह लखनऊ, सीताफर बाराबंकी जिलों में खेत भी अमीर मोहम्मद खान को लौटाना पड़ेंगे। जबकि इन खेतों से हजारों परिवारों की रोजी-रोटी चल रही है। इनका क्या होगा? लखनऊ का मशहूर बाजार हजरतगंज भी अमीर मोहम्मद खान को लौटाना पड़ेगा, जबकि अभी हजरतगंज में हजारों हिन्दुओं की दुकानें हैं। ये दुकानदार बड़े चिन्तित हैं। पिछले दिनों इन लोगों ने लखनऊ में भाजपा सांसद वरुण गांधी से मिलकर उन्हें अपनी चिन्ता से अवगत भी कराया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता के अनुसार इस विधेयक के पारित होने से उत्तर प्रदेश के हर छोटे बड़े शहर में हिन्दुओं को मकान-दुकान छोडऩा पड़ेगा क्योंकि ये मकान और दुकान जिस जमीन पर हैं वह मुसलमानों के हिस्से में जा सकती है। मुम्बई के मालाबार हिल्स स्थित 2.5 एकड़ में फैले श्जिन्ना हाउस्य को भी मशहूर उद्योगपति नुस्ली वाडिया की मां और जिन्ना की बेटी दीना वाडिया को वापस करना पड़ सकता है। 91 वर्षीया दीना वाडिया काफी समय से इस पर दावा कर रही हैं। मामला न्यायालय में है। 23 अगस्त को मुम्बई उच्च न्यायालय ने दीना वाडिया की अन्तिम याचिका भी स्वीकार कर ली है, जिस पर 23 सितम्बर को सुनवाई होगी। शायद यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि शत्रु सम्पत्ति विधेयक -2010 के बहाने हमारे मुस्लिम सांसदों की मंशा उजागर हो गई है। इनसे पूछा जाना चाहिए कि आखिर ये लोग उन मुस्लिमों का पक्ष क्यों ले रहे है जो विभाजन के समय जन्नत समझकर पाकिस्तान गए थे, और बाद में चोरी छिपे भारत आकर यहां की नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं? पाकिस्तान जाते समय यहां छूट रही सम्पत्ति का ये लोग मुआवजा भी ले गए थे। अब भारत आकर पुनरू अपनी सम्पत्ति पर दावा भी कर रहे हैं। यह कहां का नियम है या कुछ साजिश है? भारत सरकार से भी पूछा जाना चाहिए कि क्या वह पाकिस्तान से आए हिन्दुओं को वहां उनकी सम्पत्ति वापस करा सकती है? स्पष्ट रूप कहा जा सकता है नहीं। तो फिर पाकिस्तान से आने वाले मुस्लिमों के लिए कानून तक क्यों बदला जा रहा है यह भी सवाल उठता है कि अब तक कोई ऐसा सशक्त कानून क्यों नहीं बना जिसके अनुसार विभाजन के समय पाकिस्तान गए सभी मुस्लिमों की भारत स्थित अचल सम्पत्ति पूरी तरह सरकारी कब्जे में होती? तात्कालिक सत्ता सुख के लिए भारत के सेकुलर नेता यह नहीं देख पा रहे है कि उनकी कानूनों से भारत का कितना अहित हो रहा है। इस हालत में आम लोगों को ही सजग होना होगा और भारत विरोधी कार्य करने वाले नेताओं और अन्य लोगों के विरूद्ध आवाज उठानी होगी। ( इस लेख में उल्लेखित सभी तथ्य साभार उद्धृत है)

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