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नया धमाका

5/12/2011

चुनौती स्वीकार करे भारत

नाततायिवधे दोषो हन्तुर्भवति कश्चन।
प्रकाशं वाःप्रकाशं वा मन्युस्तं मन्युमृच्छति।।
सबके सामने या एकान्त में आततायी का वध करने में वधकर्ता को दोष नहीं होता है। -मनुस्मृति (8/350)
ओसामा बिन लादेन मारा गया। जिहादी आतंकवाद के सरगना का अंत हो गया। अमरीका ने यह साबित कर दिया कि उसके राष्ट्रीय सम्मान पर आघात कर उसके हजारों निर्दोष नागरिकों का खून बहाने वाला चाहे दुनिया के किसी भी कोने में जाकर सात परदों के पीछे छिप जाए, वह उसे छोड़ेगा नहीं। यह उस राष्ट्र की जिजीविषा की विजय है जिसने पिछले दस वर्षों में एक क्षण के लिए भी यह नहीं भुलाया कि अल कायदा और लादेन ने उसके विश्व प्रसिद्ध वाणिज्यिक केन्द्रों को ध्वस्त करके अमरीकी सम्प्रभुता के विरुद्ध खुला युद्ध छेड़कर जबरदस्त चुनौती दी थी। यह अपमानजनक पीड़ा और अमरीकी राष्ट्रवाद की संकल्पशक्ति लादेन की मौत के बाद राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के वक्तव्य में स्पष्टतः देखी जा सकती है। उन्होंने कहा, 9/11 की भयावह छवियां हमारे राष्ट्रीय इतिहास में झुलसी हुई याद की तरह मौजूद हैं। उस दिन हम कहीं के भी रहें हों, हमारा कोई भी इष्ट रहा हो या जिस किसी भी वर्ग अथवा समाज से हमारा नाता रहा हो, हम एक अमरीकी परिवार की तरह एकजुट थे। अल कायदा को मात देने के हमारे राष्ट्रीय प्रयास में ओसामा बिन लादेन की मौत अब तक का सबसे सफलतम प्रयास रही है। लादेन की मौत की खुबर सुनते ही न्यूयार्क के जीरो ग्राउंड पर नाचते-गाते जश्न मनाते अनगिनत अमरीकी नागरिकों का जमावड़ा ओबामा की घोषणा को साकार कर रहा था।
अमरीका की यह ऐतिहासिक उपलब्धि भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। जिस जिहादी आतंकवाद ने गत दो दशकों में हमारे हजारों निर्दोष नागरिकों, सेना व सुरक्षा बलों के जवानों का खून बहाया, एक पराक्रमशील राष्ट्र की तरह उसका मुंहतोड़ जवाब देने की बजाय हम लाचारी की हालत में सिर्फ लाशें गिनते रहे। उधर इन जघन्य और मानवता विरोधी कुकृत्यों की दुष्प्रेरणा बना पाकिस्तान न केवल इन्हें पोषित व प्रशिक्षित करता रहा बल्कि भारत की सम्प्रभुता, हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक ताने-बाने को चोट पर चोट मारता हुआ छिन्न-विछिन्न करने का कुत्सित प्रयास करता रहा। जिहादी आतंकवादियों को हस्तक बनाकर हमारे प्रमुख मंदिरों, अदालतों, बाजारों को निशाना बनाते हुए उसका दुस्साहस इतना बढ़ गया कि दिनदहाड़े भारत की संसद पर हमला बोलकर न केवल हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान को खुली चुनौती दी बल्कि मानो एक युद्ध ही छेड़ दिया। हमारे जांबाज जवानों ने अपनी जान पर खेलकर राष्ट्र के सम्मान की रक्षा की और हमलावर जिहादी आतंकवादियों को घेरकर पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को ध्वस्त कर दिया। लेकिन सोनिया पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार उस कांड के मुख्य षड्यंत्रकारी अफजल को सर्वोच्च न्यायालय से फांसी की सजा दिए जाने के बावजूद पिछले लगभग पांच वर्षों से बचाए हुए है। हम उस आतंकी को सजा तक नहीं दे पाए और वह हमारी बेबसी पर अट्टहास कर रहा है। राष्ट्रद्रोह का प्रतीक बना अफजल जेल में बैठा बिरयानी उड़ा रहा है और संप्रग सरकार वोट की राजनीति का खेल खेलते हुए जिहादी आतंकवाद का फन कुचलने व इसके जनक पाकिस्तान की गर्दन नापने की चुनौती स्वीकार करने के बजाय आंखें चुराती रही है। पाकिस्तान यहीं नहीं रुका, उसने 26/11 का मुम्बई कांड रचकर मानो भारत के खिलाफ खुला युद्ध छेड़ दिया। इस मामले में पाकिस्तान के खिलाफ सारे सबूत होने के बावजूद केन्द्र सरकार चिरौरी करती रही कि पाकिस्तान अपनी पनाह में बैठे मुम्बई कांड के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करे। इसके लिए भारत सरकार उसे दस्तावेज पर दस्तावेज सौंपती रही, अमरीका के सामने भी पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए गिड़गिड़ाती रही और पाकिस्तान उसके इन प्रयासों की कैसी खिल्ली उड़ाता रहा, उसके विदेश सचिव सलमान बशीर का बयान इसका प्रमाण है कि व्मुम्बई हमलों के साजिशकर्त्ताओं पर कार्रवाई की भारत की मांग आम बात हो गई है, जो इतनी बार दोहराई गई है कि अब व्आउट डेटिडव् हो गई है।
इसके बावजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वार्ताओं के दौर चलाकर अपनी सरकार के संकल्प को भुला बैठे कि जब तक पाकिस्तान मुम्बई कांड के दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं करता, उसके साथ कोई बातचीत नहीं की जाएगी। कांग्रेसी सेकुलर सरकारों ने पाकिस्तान की वि३ाासघाती मानसिकता को नजरअंदाज कर हमेशा वार्ताओं पर जोर देकर उसका हौसला ही बढ़ाया है, यहां तक कि चार-चार युद्धों में हमारे वीर जवानों ने जब अपने षौर्य से उसके दांत खट्टे कर दिए, तब इन सरकारों ने पाकिस्तान की गर्दन दबोचने के बजाय वार्ताओं की मेज पर जीत को हार में बदल दिया। अफसोस कि हमने पाकिस्तान की भारत विरोधी घृणित मानसिकता और सतत् चालबाजियों से कोई सबक नहीं सीखा।
पाकिस्तान की राजधानी से महज 90 किलोमीटर दूर और सैन्य अकादमी की नाक के नीचे एबटाबाद में किलेनुमा हवेली का तैयार होना और उसमें करीब पांच साल से सुरक्षित रह रहे लादेन की मौत से पाकिस्तान रंगे हाथों पकड़ा गया है। वह लगातार रट लगाता रहा कि लादेन उसकी सरजमीं पर नहीं है बल्कि अफगान सीमा के घने जंगलों में कहीं छुपा है, परंतु उसका धोखा दुनिया के सामने आ ही गया। अब यह साफ हो गया है कि पाकिस्तानी सरकार, सेना व उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई का लादेन को पूरा सहयोग था। अमरीका अपने सा१ााज्यवादी मंसूबों के लिए भले ही पाकिस्तान का इस्तेमाल करता रहा है और उसकी हरकतों की अनदेखी करता रहा है, लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि उसका भी भरोसा पाकिस्तान पर नहीं है, वह भी उसकी वि३ाासघाती मानसिकता से परिचित है। इसलिए व्आपरेशन लादेनव् की उसे कानोंकान खबर नहीं होने दी। सीआईए निदेशक लियोन पेनाटा ने इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए कहा है कि व्यदि पाकिस्तान को पहले से व्ओसामा मिशनव् की जानकारी दी गई होती तो यह अभियान खतरे में पड़ जाता। खबरें तो यहां तक हैं कि पाकिस्तान इसमें अड़ंगा डालता तो अमरीका जवाबी हमले के लिए भी तैयार था। लेकिन अमरीका को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अपने निहित स्वार्थों के चलते जिहादी आतंकवाद के खिलाफ वै३िाक लड़ाई की आड़ में उसने पाकिस्तान के षड्यंत्रों की खूब अनदेखी की है और पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों का अभ्यारण्य बनता चला गया। अब वही आतंकवाद पाकिस्तान के लिए गले की हड्डी बन गया है। लादेन की मौत से बौखलाए तालिबान ने घोषणा कर दी है कि अब उसका दुश्मन नम्बर एक पाकिस्तान है।
भारत के विरुद्ध जिहादी आतंकवाद को धार देने वाले दाउद इब्राहिम, हाफिज सईद, लखवी, सैयद सलाहुद्दीन, मसूद अजहर सहित व्मोस्ट वांटेडव् करीब एक दर्जन आतंकवादी सरगना पाकिस्तान की धरती से भारत पर निशाने साधते रहे हैं। पाकिस्तान में आतंकवादियों के सौ से ज्यादा प्रशिक्षिण शिविर चल रहे हैं, वहां दो दर्जन से ज्यादा आतंकवादी संगठन फल-फूल रहे हैं। प्रशिक्षण शिविरों में तैयार किए गए पाक प्रेरित तीन हजार से ज्यादा आतंकवादी जम्मू- कश्मीर में सक्रिय हैं। यहां तक कि एबटाबाद की जिस हवेली में लादेन निरूशंक रह रहा था, वह जम्मू-कश्मीर में सक्रिय खूंखार आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन की थी। इससे पाकिस्तान और हिजबुल की दुरभिसंधि भी सामने आ गई है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर पाकिस्तान अमरीका से सैन्य और आर्थिक मदद बटोरता रहा तथा उसी के दम पर भारत के विरुद्ध जिहादी आतंकवाद का मोर्चा खोले रहा। पाकिस्तान में लादेन की मौजूदगी, उसकी मौत पर पाकिस्तानी सरकार के असमंजस और प्रतिक्रिया ने षायद अमरीका की आंखें खोल दी हों। इसीलिए भारत में अमरीकी राजदूत टिमोथी रोमर ने कहा है कि पाकिस्तान को दी जा रही आर्थिक मदद पर अमरीका कड़ा रुख अपनाएगा और मुम्बई हमले के दोषी आतंकवादियों को सजा दिलाने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाएगा। लेकिन इतना कहना काफी नहीं है, यदि अमरीका अपने कूटनीतिक हितों से ऊपर उठकर आतंकवाद के खिलाफ वै३िाक लड़ाई के प्रति ईमानदार है, तो अब समय आ गया है कि वह पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करे, क्योंकि अब पाकिस्तान की पोल खुल गई है, कुछ दबा- छिपा नहीं रहा है। इसलिए पाकिस्तान में पनप रहे सभी आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त किए जाने का समय आ गया है। भले ही लादेन मर गया हो, परंतु अल कायदा और तालिबान का जो आतंकी तानाबाना अभी मौजूद है, वह चुप नहीं बैठेगा।
भारत के लिए आपरेशन लादेन एक सबक है कि जिहादी आतंकवाद का मसला वार्ताओं से नहीं, कठोर कार्रवाई से हल होगा। भारत सरकार को वोट राजनीति के लाभ-हानि के गणित और कूटनीतिक उलझनों से बाहर निकलना होगा। हमारे थल सेनाध्यक्ष ने भारत की सैन्य शक्ति पर जो विश्वास जताया है कि यदि मौका आया तो भारत अमरीका जैसी कार्रवाई करने में सक्षम है, वह सरकार की पैंतरेबाजी में गुम न हो जाए। सरकार की सूत्रधार कांग्रेस को भी समझना होगा कि वोट और सत्ता से बड़ा देश है, राष्ट्रहित को चोट पहुंचाने वाली उसकी सत्तालिप्सा व वोट राजनीति ने देश को बहुत नुकसान पहुंचाया है। अब लादेन की मौत पर भी कांग्रेस राजनीति करने के प्रयास में है। उसके महासचिव दिग्विजय सिंह का लादेन को दफनाने पर उठाया गया सवाल घटिया वोट राजनीति का ही नमूना है। 10,जनपथ की शह पर दिग्विजय पहले भी बटला हाउस कांड और हेमंत करकरे की मौत पर ऐसे ही बेतुके सवाल खड़े कर चुके हैं जो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को तो कमजोर करते ही हैं, हमारे जांबाज शहीदों का भी अपमान करने वाले हैं। कांग्रेस की ऐसी ही घृणित राजनीति के कारण जम्मू-कश्मीर में जिहादी आतंकवाद और भारत विरोधी अलगाववाद फल-फूल रहा है। वहां सैयद अली शाह गिलानी जैसे अलगाववादी नेता लादेन की मौत पर भी जहर उगलने से बाज नहीं आ रहे और उसे शहीद बता रहे हैं। अगर कांग्रेस अब भी न चेती तो देश की जनता उसे इतिहास के कूड़ेदान में फेंक देगी। अब वक्त आ गया है कि भारत सरकार इस चुनौती को स्वीकार करे और देश के भीतर पनप रहे जिहादी तत्वों को तो कठोरतापूर्वक खत्म करने का संकल्प प्रकट करे ही, अपनी पाकिस्तान नीति पर भी पुनर्विचार कर घुटने टेकने और गिड़गिड़ाने की प्रवृत्ति से ऊपर उठकर कुछ करने की हिम्मत दिखाए तो पूरा देश उसके साथ उठ खड़ा होगा। लक्ष्य सामने है, भारत सरकार उसे बेधने का साहस तो करे, जैसे अमरीका ने कर दिखाया। ये दाउद, मसूद, हाफिज, लखवी आखिर कब तक पाकिस्तान में बैठे भारत को मुंह चिढ़ाते रहेंगे।

1 टिप्पणी:

  1. अत्यन्त सराहनीय कार्य! जारी रखिये एवम मीडिया के माध्यम से इसका अत्यधिक् प्रसार करने की कोशिस कीजिये. हार्दिक शुभकामनाएँ!

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