पृष्ठ

नया धमाका

11/19/2010

जहर की खेती


बीटी बैंगन
 इस जहर से हर शख्स अनजान बनकर क्यों बैठा है। इस जहर को अपने जीवन का हिस्सा क्यों माने है? खतरे से आपको आगाह करना हमारा धर्म है। आप माने या न माने ये आपका कर्म है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं उस खतरे की जो धीरे-धीरे दबे पांव भारतवर्ष की एक अरब से भी ज्यादा आबादी में अपने पैर पसारने के लिए छटपटा रहा है। हम यहां बात कर रहे है उन जीन प्रसंस्कृत उत्पादों की जो न सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा हैं बल्कि मानव शरीर के लिए भी किसी मीठे जहर से कम नहीं है।
लेकिन हमारी सरकार इस जहर को भारतीय जनता के लिए एक पकवान की तरह परोसने के लिए बड़ी आतुर दिख रही है। गत माह दिल्ली में जब बायोटेक्नोलाजी नियामक संस्था जेनेटिक इंजीनियरिंग अत्रा्वल कमेटी की बैठक में जीन प्रसंस्कृरित बैगन के व्यवसायिक इस्तेमाल को मंजूरी दे दी गयी। इस मंजूरी के बाद जीन प्रसंस्कृत उत्पादों का बीज विदेशों से हमारे खेतो में, हमारे खेतो से भारतीय बाजार में और फिर एक धीमे जहर की तरह हमारे शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश कर लेगा।
आप सोच रहे होंगे कि आखिर क्या है यह जीन प्रसंस्कृत उत्पाद? जीन प्रसंस्कृत उत्पाद जिनको जेनिटिकली मोडीफाइड फूड भी कहा जाता है, में जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से कुछ ऐसे रासायनिक तत्वों का उपयोग किया जाता है जिससे न तो यह उत्पाद जल्दी खराब होता है और न ही इनमें उत्पादन के दौरान कीड़े लगने की सम्भावना होती है। लेकिन क्या कभी किसी ने यह सोचा है कि इन उत्पादो में प्रयोग होने वाले रासायनिक तत्व मानवीय शरीर के लिए कितने घातक होंगे।
बी.टी. कपास एक ऐसा ही जेनेटिकली मोडिफाइड उत्पाद है जो भारत में पहले ही आ चुका है। इसके बुरे प्रभाव से न केवल पशु बल्कि भारतीय किसानों का भी स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। बीटी कपास के बाद बीटी बैगन ऐसा दूसरा उत्पाद है जिसके बारे में शोधकर्ताओ की राय है कि यह महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर भी बुरा प्रभाव डालता है और इससे हमारे खेतों की उत्पादन क्षमता भी प्रभावित होती है।
इन उत्पादों को बनाने वाली प्रमुख कम्पनी मोनसेन्टो का कहना है कि इन उत्पादों की उत्पादन प्रक्रिया में खेतों में कीटनाशक डालने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। जरा सोचिए इन बीजो में किस तरह के कीटनाशकों का प्रयोग किया गया होगा जो न सिर्फ बाहरी कीड़ों का बल्कि हमारे पेट के कीड़ों का भी सफाया कर देंगे और फिर धीरे-धीरे हमारे शरीर की कोशिकाओं का। ये तो वही बात हो गयी ‘न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।’
बीटी बैगन बनाने के लिए बैगन के जीनोम में बैक्टीरिया के जीन प्रत्यारोपित कर पौधो के अंदर ही ऐसा जहर पैदा किया जाता है जो फसल नष्ट करने वाले कीड़ों को मार देता है। ऐसे विषैले बीजों के निर्माता ये दावा करते हैं कि किसान इन बीजो के उपयोग से रासायनिक कीटनाशक का इस्तेमाल कम कर सकेंगे। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि आस्ट्रेलिया जैसे देशों ने इन उत्पादों के खतरनाक प्रभाव के कारण इन्हे नकार दिया है। आज दुनिया के अधिकतर देश इसे नकार रहे हैं। इस सबके बावजूद कुछ महाशक्तियां क्यों इसे इसी देश पर थोपने का प्रयास कर रही है? शायद वे हमारी व्यवस्थागत कमजोरियों से परिचित हैं। मोन्सेटों जैसी कुछ ही कम्पनियों के हाथ में इस प्रोद्योगिकी का एकाधिकार है? प्रतीत होता है कि सरकार पर विकसित देशों का दबाव है कि भारत की खाद्य सुरक्षा नष्ट करके हमारे देश को दूसरे देशो पर परावलंबी बना दिया जाए।
सरकार को इस विषय पर गहनता से सोच विचार कर निर्णय लेना चाहिए क्योंकि हमारे देश की 60 प्रतिशत जनता कृषि से जीविकोपार्जन करती है। इन उत्पादों का प्रभाव न सिर्फ हमारी कृषि व्यवस्था पर पड़ेगा बल्कि मानव स्वास्थ्य भी इससे बुरी तरह प्रभावित होगा। यदि जैव संशोधित फसल को इस देश में अनुमति मिल गयी तो वे आपके और हमारे लिए विकल्पों का अंत होगा। जिस प्रकार मुगल बादशाहों ने भारतीय समुद्री व्यापार अंग्रेजों को सौंप कर देश को गुलामी के अंधकार में झोंक दिया था, उसी प्रकार हमने अपनी खाद्य सुरक्षा को विश्व बाजार को सौंप कर देश की संप्रभुता से खिलवाड़ ही किया है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बीटी बैगन तो खाने ही नहीं चाहिए|

    जवाब देंहटाएं
  2. BAAS Voice का आमंत्रण :
    आज हमारे देश में जिन लोगों के हाथ में सत्ता है, उनमें से अधिकतर का सच्चाई, ईमानदारी, इंसाफ आदि से दूर का भी नाता नहीं है। अधिकतर तो भ्रष्टाचार के दलदल में अन्दर तक धंसे हुए हैं, जो अपराधियों को संरक्षण भी देते हैं। इसका दु:खद दुष्परिणाम ये है कि ताकतवर लोग जब चाहें, जैसे चाहें देश के मान-सम्मान, कानून, व्यवस्था और संविधान के साथ बलात्कार करके चलते बनते हैं और किसी को सजा भी नहीं होती। जबकि बच्चे की भूख मिटाने हेतु रोटी चुराने वाली अनेक माताएँ जेलों में बन्द हैं। इन भ्रष्ट एवं अत्याचारियों के खिलाफ यदि कोई आम व्यक्ति, ईमानदार अफसर या कर्मचारी आवाज उठाना चाहे, तो उसे तरह-तरह से प्रता‹िडत एवं अपमानित किया जाता है और पूरी व्यवस्था अंधी, बहरी और गूंगी बनी रहती है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो आज नहीं तो कल, हर आम व्यक्ति को शिकार होना ही होगा। आज आम व्यक्ति की रक्षा करने वाला कोई नहीं है! ऐसे हालात में दो रास्ते हैं-या तो हम जुल्म सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय लोग एकजुट हो जायें! क्योंकि लोकतन्त्र में समर्पित एवं संगठित लोगों की एकजुट ताकत के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी है। इसी पवित्र इरादे से भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) की आजीवन सदस्यता का आमंत्रण आज आपके हाथों में है। निर्णय आपको करना है!
    http://baasvoice.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं

आपके सुझाव, राय और मार्गदर्शन टिप्पणी के रूप में देवें

लिखिए अपनी भाषा में